मदर्स डे 2022 पर विशेष लेख| mother’s day special
best lines on mother’s day
mother’s day special
बात उन दिनों की है जब मैं केवल 12 साल का था और गांव के ही सरकारी स्कूल में तीसरी अथवा चौथी कक्षा में पढ़ता था। बचपन में मैं बहुत ही शरारती और बदमाश बच्चा था। जो एक पल के लिए भी शांत नहीं बैठ सकता था। गांव के लोग मुझे कभी बंदर तो कभी छछूंदर कहा करते थे। यहां तक की मेरी तीनों बहनें और परिवार के बाकी लोग भी मेरी शरारतों की वजह से परेशान रहते थे। लेकिन मैं अपने मां और बाबूजी के लिए राजकुमार था।
एक दिन की बात है। मैं स्कूल जाने से पहले नहाने के लिए अपने घर से लगभग 100 मीटर की दूरी पर मौजूद चपाकल पर जा रहा था। मेरे एक हाथ में साबून और दूसरे हाथ में एक बाल्टी था। चलते-चलते मैंने अचानक बाल्टी को गेंदबाजी करने के अंदाज में घुमाया। तभी बाल्टी का पेंदी मेरी मां के मुंह पर जा लगा जो मेरे पीछे आ रहीं थी। ( मैं इस बात से अनजान था) शायद वह मुझे नहलाने के लिए आ रहीं थी। मेरी मां के होंठों से खुन फव्वारा छूट पड़ा और वह मारे दर्द के मुंह पर हाथ रखकर वहीं बैठ गई। घबराकर मैंने मां के हाथों को हटा कर देखना चाहा कि क्या हुआ लेकिन मां ने मना कर दिया। तभी आस-पड़ोस के लोग भी वहां आ गए और मां को संभालते हुए मुझे भला बूरा कहने लगे। मुझे लगा कि अब बहुत मार पड़ेगी इसलिए डर के मारे मैं बिना नहाए खाए स्कूल भाग गया। अपराध बोध से ग्रस्त दिनभर स्कूल में मैं यहीं सोचता रहा कि आज तो पिटाई निश्चित है। दोपहर को स्कूल की छुट्टी होने के बाद मैंने एक लड़के बस्ता घर भेज दिया और बगीचों की तरफ चला गया।
दिनभर मैं उधर ही लुकता-छिपता रहा और अपनी पिटाई की कल्पना करता रहा। हालांकि आज-तक मेरी पिटाई कभी हुई नहीं थी सिवाय डांट डपट के। चाहे मैं कितनी भी शरारत कर लूं। लेकिन मामला थोड़ा अलग था इसलिए पिटाई की संभावना 100% थी। खैर दिनभर भुखे पेट सरेह में गुजारने के बाद शाम को अंधेरा होने पर मैं डरते-डरते गांव में आ गया। फिर रात के 10:00 बजे तक मैं इधर-उधर छिपता रहा। मैं चौक पर गांव के लड़कों के बीच बैठा उनकी गप्पे सुन रहा था तभी टार्च की रोशनी मेरे मुंह पड़ पड़ी। वह मां थी जो न जाने कब से मुझे ढुंढ रही थी। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और घर ले आईं। उस वक्त बाबूजी के साथ-साथ घर के सभी लोग सो चुके था। सुबह से कहां था तूं, क्या तुझे भुक नहीं लगी है? कहते हुए मां खाने की थाली उठा लाई। मैं अपराध बोध से ग्रस्त चुपचाप सिर झुकाए बैठा रहा। “खाना खा ले, भुक लगी होगी”। उन्होंने प्यार सिर पर हाथ फेरते हुए कहा। मैं चुपचाप खाने को निहारता रहा। चल अब जल्दी से खा ले मुझे भी भुक लगी है, मैंने भी सुबह से कुछ नहीं खाया है” कहते हुए मां ने अपने हाथों से निवाला तोड़ते हुए मेरे मुंह की तरफ बढ़ाया।
ये जादुई शब्द केवल एक मां के ही मुंह से निकल सकते हैं। निवाला मुंह में लेते हुए
मैंने एक नजर उठा कर मां के हाठों की तरफ देखा। वहां मुझे टांके लगे हुए नजर आ रहे थे। “तू खा मैं पानी लेकर आती हूं”। मां उठते हुए बोली।
मेरी आंखों से पानी के दो टुकड़े टुटे और थाली में पड़ी रोटी पर बिखर गए। इतनी ममता, इतनी सहनशीलता, इतना त्याग और इतनी महानता केवल एक मां में ही हो सकती है।
आज मेरी उम्र भले ही 31 साल हो चुकी है लेकिन आज भी मैं अपनी मां के लिए बच्चा ही हूं।
मुझे आज भी मां के पैर दबाना बहुत पसंद है।
दोस्तों, जब से मैंने होश संभाला है तब से आज तक मैंने किसी भी मंदिर या मस्जिद में सिर नहीं झुकाया है लेकिन जहां भी मैं किसी मां की ममता देखता हूं अथवा किसी मां के त्याग और समर्पण जिक्र सुनता हूं वहां मेरा सर अपने आप उनकी कदमों में झुक जाता है। मैं दुनिया की सभी माताओं की चरणों में शीश झुका कर नमन करता हूं।
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