बाप और बेटे के रिश्तों पर आधारित यह बेहतरीन कहानी आपको लाजवाब कर देगी

hindi kahaniyan | story in hindi 

hindi story
happy father’s day 2022

संघर्षों के बाढ़ में।

जज्बातों की तूफान समेटे।

अपने परिवार को संभाल रहा वो।

वह बाप ही है, हर मुश्किल को टाल रहा जो।

अपने हसरतों को तोड़ के।

अपने सपनों को छोड़ के।

खुद को कर्त्तव्यों में ढाल रहा वो।

वह बाप ही है, अपने बच्चों को पाल रहा जो।

अपनी खुशियों को त्याग के, मेहनत की आग से।

चूल्हे पर रखी चावल को उबाल रहा वो।

वह बाप ही है, अपने परिवार की खुशियों को सँवार रहा जो।

 नैतिक शिक्षा पर आधारित प्रेरणादायक कहानी

ना जाने पिछले जन्म में कौन सा पाप किया था, जो ऐसे कंजूस मां-बाप के घर पैदा हो गया।” यह सोचते हुए कुंदन का मन दुःख और कुंठा से भर गया।

औरों के मां-बाप कैसे हैं, जो अपने औलाद की खुशी के अपना सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं और एक मेरे मां-बाप है, जो हमेशा मेरी छोटी-छोटी ख्वाहिशों का गला घोंटते रहते हैं। मेरे लिए इनके पास कभी पैसा नहीं रहता, हर दम पैसे की तंगी का रोना रोते रहते हैं।”

इस वक्त उसके अंदर घृणा और नफ़रत का ऐसा तूफान उठ रहा था। जिसने उसकी सोचने-समझने की क्षमता को क्षीण कर दिया था। भावावेश में उसके कदम और तेजी से उठने लगे।

“आह!”

अचानक उसके मुंह से हल्की सी चीख निकली। शायद उसके पैरों में कोई कंकड़ चुभ गया था। कहीं ट्रेन ना छुट जाएं इसलिए उसने रूक कर देखना उचित नहीं समझा। एक पैर उठा कर उसने जुते के नीचे से कंकड़ निकाला और तेज कदमों से आगे बढ़ गया। थोड़ी ही देर में वह अपने कस्बे के छोटे से रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया। टिकट तो उसे लेना नहीं था इसलिए वह सीधा प्लेटफॉर्म पर पहुंच गया।

प्लेटफार्म पर खड़े होकर उसने मोबाइल निकाल कर देखा। सुबह के 5:00 बज रहे थे। ट्रेन अपने समय से आधे घंटे देरी से चल रही थी। वह पास में मौजूद कुर्सी पर बैठ गया और ट्रेन का इंतजार करने लगा। पैर में अभी भी दर्द का एहसास हो रहा था।

“अरे ये तो पापा के जुते हैं? वह जुते निकालने के लिए नीचे झुका तो चौंक पड़ा। शायद रात के अंधेरे में उसे दिखाई भी नहीं दिया था और जल्दीबाजी में उसने पापा के जुते पहन लिए थे। जूते निकाल कर उसने देखा तो पैर के तलवों में एक जगह ख़ून रिसा हुआ दिखाई दिया। ज़ख्म ज्यादा नहीं था बस हल्का सा ही चुभा था। तभी उसका ध्यान जुतों के निचले हिस्से की तरफ गया। जो बिल्कुल क्षत-विक्षप्त हो चुके थे। बुरी तरह से घिसने के साथ-साथ वे कई जगह से फट चुके थे।

“तो पापा क्या रोज यहीं जुते पहन कर ऑफिस जाते हैं?” जब एक बार पहनने से ही मेरे पैरों में कंकड़ चुभ गया तो रोज पहन कर ड्यूटी जाने के दौरान उनके पैरों में कितने कांटे चुभते होंगे।”

यह सोचकर ही उसका दिमाग सुन्न हो गया।

moral stories in hindi

तभी उसे याद आया कि पापा ने पिछले महीने ही उसके लिए campus के ₹1500 के जुते खरीदे थे। वह पत्थर की बूत की तरह वहीं पर जम गया।

18 वर्षीय कुंदन अपने मां-बाप का एकलौता लड़का था। जो एक शहर के एक अच्छे प्राइवेट स्कूल में दसवीं कक्षा में पढ़ता था। उसके पिता एक प्राइवेट कंपनी में क्लर्क थे और मां एक कुशल गृहिणी थी। इकलौती औलाद होने के कारण उसके ऊपर मां-बाप का कुछ ज्यादा ही प्यार दुलार था। वे सीमित आमदनी के बावजूद भी उसकी हर ख्वाहिश पूरी करने की कोशिश करते। उसकी संगत शहर के अमीर घरानों से संबंध रखने वाले कुछ लड़कों से हो गई थी। जो उसके साथ ही पढ़ते थे। जिससे परिणामस्वरूप वह थोड़ा बिगड़ गया था।

“यार कुंदन” ऐसे कब तक हाथ गंदे करेगा, इससे अच्छा एक बाईक क्यों नहीं ले लेता।”

एक दिन छुट्टी के समय वह अपने साईकिल की उतरी हुई चेन लगा रहा था तभी उसके दोस्त आयुष ने टोक दिया।

“हां यार आयुष ठीक कह रहा है।”

गौरव ने भी आयुष की बात का समर्थन किया। वे दोनों बाईक से स्कूल आते थे।

स्कूल की लड़कियों के सामने ये बात सुनकर कुंदन खुद को अपमानित महसूस करने लगा।

उनकी ये बात उसके दिल में चुभ गई।

“मम्मी” मुझे बाईक चाहिए।

स्कूल से घर आते ही उसने अपनी मांग रख दी।

“बेटा” तू तो जानता ही है कि एक तेरे पापा की सैलरी पर पूरा घर चलता है। वे इतना बड़ी रकम कहां सा लायेंगे।” मां ने समझाया।

“मैं कुछ नहीं जानता, मुझे किसी तरह बाईक चाहिए। इतना कहकर वह क्रिकेट खेलने चला गया। रात को मां ने पापा से यह बात कही तो पापा कुछ नहीं बोले। शायद उन्होंने सोचा कि उसने ऐसे ही बोल दिया होगा। सो उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया।

“पापा मेरे बाइक का क्या हुआ।” तीन चार दिनों के इंतजार के बाद उसने एक दिन पापा से पूछा।

” बेटे” अभी पैसे की थोड़ी दिक्कत चल रही है। दो तीन महीने रूक जाओ; मैं दिलवा दूंगा।

पापा बड़े प्यार से बोले।

“नहीं” मुझे बेवकूफ मत बनाइए। मुझे इसी हफ्ते बाईक चाहिए।” कुंदन ने जरा ऊंची आवाज में कहा।

“कुंदन मैं देख रहा हूं तुम धीरे-धीर ज़िद्दी होते जा रहे हो।” उसके चिल्लाने पर पापा ने थोड़ी सख्ती दिखाई

यह सुनकर कुंदन पैर पटकते हुए बाहर चला गया। पापा उसे जाते हुए देखते रह गए। इसके बाद एक दो दिनों तक उससे किसी से ठीक से बात नहीं की। अंदर ही अंदर उसके मन में विद्रोह की भावना पनपने लगी थी।

“मुझे लगता है कि अब इन लोगों के भरोसे रहने से कुछ नहीं होगा। मैं इन्हें छोड़कर शहर चला जाउंगा। पैसे कमाऊंगा और अपने पैसे से बाइक खरीद कर दिखा दूंगा कि अब मैं इनके ऊपर निर्भर नहीं हूं।”

पता नहीं कहां से यह विचार उसके दिमाग में आया था। परंतु इस विचार ने उसके दिमाग में अपनी जगह बना ली।

motivational stories in hindi

एक दिन वह तड़के उठकर बिना किसी को बताएं चुपचाप घर से बाहर निकल गया। रास्ते के खर्च के लिए वह पापा का पर्स में उठा लाया था। पापा का पर्स चोरी करने के अपराधबोध से उसका मन आत्मग्लानि से भर गया। ट्रेन स्टेशन पर आ चुकी थी। परंतु उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और क्या ना करें। कभी वह जुते को देखता तो कभी पर्स को देखता। ट्रेन के जाने के बाद उसने कांपते हाथों से पर्स खोला। पर्स में दस-दस के तीन चार नोट पड़े हुए थे और एक छोटी सी डायरी भी थी। शायद उसके पैसे के लेनदेन का हिसाब लिखा हुआ था। मन बहलाने के लिए वह डायरी निकाल कर पढ़ने लगा।

गुप्ता जी से तीस हजार रूपए लिए कंप्यूटर के लिए। ब्याज पांच रुपए प्रति सैकड़ा।

छः महीने पहले ही पापा ने उसके लिए नया कंप्यूटर खरीदा था।

“तो क्या पापा ने कर्ज लेकर मेरे लिए कंप्यूटर ख़रीदीं। पढ़ते ही उसे झटका लगा। वह तो सोचता था कि पापा कंजूसी से पैसे बचा कर ब्याज पर चलाते हैं। परंतु उन्होंने तो उसके शौक पूरे करने के लिए हजारों रुपए की कर्ज ले लिया था।

उसने आगे पढ़ना शुरू किया।

शर्मा जी से पचास हजार रुपए बाईक के लिए। ब्याज तीन रूपए सैकड़ा। दिन और तारीख बीते कल की ही थी।

यानी पापा फिर उसके लिए …

उसके आंखों से आंसुओं की धारा फुट पड़ी।

short stories in hindi with moral

वह तुरंत उठा और तेजी से घर की तरफ दौड़ पड़ा। बदहवासी में भागता हुआ वह जब घर पहुंचा तो पापा अभी-अभी बाथरूम से नहा कर निकले थे।

“अरे कितनी दूर टहलने चले गए थे बेटे, चलो जल्दी से तैयार हो जाओ। बाईक एजेंसी चलना है।” पापा उसे देखते ही बोले।

इतना सुनते ही कुंदन के सब्र का बांध टुट गया। वह तुरंत पापा से लिपट गया और बच्चों की तरह फूटफूट कर रोने लगा।

“नहीं पापा! मुझे बाईक नहीं चाहिए। वह सुबकते हुए बोला।

“अरे! क्या हुआ क्यों रो रहे हो और बाईक क्यों नहीं चाहिए, मैंने लोन की सारी प्रक्रिया पूरी कर ली है।”

पापा को अभी भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इसे हुआ क्या है।

आप इस लोन को कैंसल करवा दिजिए। मुझे लोन वाली गाड़ी नहीं चाहिए।

कुंदन संभलते हुए बोला।

लेकिन…

“नहीं पापा” अभी साईकिल से ही काम चल जाएगा।

“चलो ठीक है। जैसा तुम चाहो।

इसके बाद से तो वह बिल्कुल बदल गया।

उसने अगले ही दिन से अपना पाॅकेट मनी बचाना शुरू कर दिया।

“पापा” आज father’s day है। इसलिए मैं आपके लिए ये गिफ्ट लाया हूं।

पापा नाश्ता करके ऑफिस जाने के लिए दरवाजे से निकलने ही वाले थे कि कुंदन ने मुस्कुराते हुए उनका रास्ता रोक लिया।

“अच्छा! जल्दी दिखाओ क्या है। वरना मुझे ऑफिस के लिए लेट हो जाएगी।”

“बस दो मिनट पापा” आप बस कुर्सी पर बैठ जाईए।

कुंदन ने फटाफट उनके पुराने जुते निकाले और नये जुते पहना दिए। जो पूरे ₹1500 के थे।

मारे खुशी के पापा की आंखें भर आईं।

कुंदन ने उनके पैर छुए तो उन्होंने उसे उठा कर गले से लगा लिया।

आपको ये कहानियां भी पसंद आएंगी

दुनिया की सबसे अच्छी प्रेम कहानी

एक गरीब रिक्शे वाले की दर्द भरी कहानी 

एक गरीब लड़के के कठिन संघर्ष से सफलता तक की अद्भुत कहानी 

दोस्तों, यदि आपको ये कहानी अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट करके हमारा हौसला जरूर बढ़ाएं। धन्यवाद

1 thought on “बाप और बेटे के रिश्तों पर आधारित यह बेहतरीन कहानी आपको लाजवाब कर देगी”

Leave a Comment