Real love story in Hindi| सच्चे प्यार की एक अधूरी कहानी
true love story
इस प्रेम कहानी के पहले भाग का सारांश..
इधर धीरे-धीरे मुझे महसूस होने लगा कि मुझे अपने मोहब्बत का इजहार कर देना चाहिए क्योंकि अब मैं उसके बगैर जिंदा नहीं रह सकता था। रात की तनहाई में मेरे दिल ने मुझसे गुफ्तगू की।
कहां वह एक अमीर घर की राजकुमारी और कहां तू एक गरीब मां बाप का अनपढ़ लड़का” क्या तू उसके काबिल है? क्या तू उसको जिंदगी की खुशियां दे पायेगा? क्या तू चाहता हूं कि तुम्हारी बदनसीबी के अंधेरों में उसकी हंसी गुम हो जाए। मुझे उसके साथ अपने ख्वाबों के महल सजाता देख मेरी अंतरात्मा ने मुझे आईना दिखाया।
जिंदगी में आज पहली बार मुझे अपनी गरीबी पर रोना आ रहा था।
इस कहानी को पढ़ने से पहले इस लव स्टोरी के पहले भाग को जरूर पढ़ें 👇
अब आगे पढ़िए
💘हमारी अधूरी कहानी💘
रुला देने वाली लव स्टोरी
भाग 2
अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारी गरीबी और बदनसीबी की परछाईं उस पर ना पड़े तो तुम्हें उससे दूर रहना होगा। अंदर से फिर आवाज़ आई।
“कैसे दूर रहूं यार” अब तो वह मेरे दिल की धड़कन में, मेरे जिस्म के रग-रग में, मेरे लहू के एक एक कतरे में समा चुकी है। क्या दिल को धड़कन से दूर किया जा सकता है? क्या लहू को जिस्म से अलग किया जा सकता है। अब वह मेरी जिंदगी बन चुकी है। अब जीते-जी तो मैं उसे नहीं भूल सकता।
“क्या पता वह भी तुमसे प्यार करती भी है या यह एकतरफा प्यार है?”
नहीं मुझे पूरा यकीन है? आंखें कभी झूठ नहीं बोलती।
“मुझे तो आजकल की लड़कियों पर जरा भी यकीन नहीं हैं।”
दिल और दिमाग के बीच रात भर अंतर्युद्ध चलता रहा और सुबह होते-होते दिल दिमाग पर हावी हो गया। मैंने तय कर लिया कि अब मुझे अपने प्यार का इजहार कर देना चाहिए।
वह घर अथवा गांव से बाहर अकेली कभी निकलती ही नहीं थी इसलिए प्रत्यक्ष मुलाकात की कोई संभावना ही नहीं था। वैसे भी अगर सौभाग्य से ऐसा सुखद संयोग मिल भी जाता तो मेरे अंदर उससे बात करने की हिम्मत ही नहीं थी। “फिर कैसे अपने दिल की बात उसके दिल तक पहुंचाई जाए।”
काफी तर्क-वितर्क करने के बाद मैंने लव लेटर लिखने का फैसला किया।
प्रिय अंजलि
काफी दिनों से सोच रहा था कि तुमसे अपने दिल की बात बताऊं लेकिन डर लगता था कि कहीं तुम मुझे गलत ना समझ लो और कहीं मुझसे नाराज़ ना हो जाओ इसलिए मैं चाहकर भी अपने दिल की बात कह नहीं पाता था। परंतु अब मेरा जीना दुश्वार हो चुका है। रात भर मैं सो नहीं पाता हूं। जब से मैं तुमसे मिला हूं तब से एक पल के लिए भी तुम्हे भूल नहीं पाया हूं। हर घड़ी हर पल बस तुम्हारा ही चेहरा मेरी आंखों के सामने घुमता रहता है। समझ ही नहीं आता कि क्यां करूं कैसे तुम्हें अपने दिल की बात बताऊं। लेकिन आज अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर तुम्हें अपना पहला प्रेम पत्र लिख रहा हूं। उम्मीद है तुम मेरे दिल के जज्बातों को जरूर समझोगी।
अंजलि मैं तुमसे बहुत-बहुत-बहुत प्यार करता हूं। मैं तुमसे इतना प्यार करता हूं कि उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता। तुम्हारा खुबसूरत चेहरा मेरी आंखों में बस चुका है। जिस दिन मैं तुम्हें नहीं देखता हूं उस दिन मैं बेचैन हो जाता है। रात भर मुझे नींद आती बस रात भर तुम्हारी याद में करवटें बदलता रहता हूं। तुम मेरे दिल की इतनी गहराई में उतर चुकी हो कि मैं चाहकर भी तुम्हें बाहर नहीं निकाल सकता। तुम मेरे दिल की धड़कन में बस चुकी हो। अब तुम मेरी जान बन चुकी हो। अब अब अपनी पूरी जिंदगी तुम्हारे नाम लिख चुका हूं।
मैं नहीं जानता कि तुम मेरे बारे में क्या सोचती हो और ना ही यह जानता हूं कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए क्या है इसलिए तुम अपने दिल की बात पत्र लिखकर जवाब जरूर देना। हालांकि तुम्हारा जवाब चाहे जो कुछ भी हो मैं तुमसे कल भी प्यार करता था, आज भी करता हूं और जिंदगी भर करता रहूंगा।
तुम्हारा दिवाना
पत्र लिखकर मैंने जेब में रखा और हिम्मत जुटा कर उस तक पहुंचाने के मौके तलाशने लगा।
उस तक अपने प्रेम पत्र पहुंचाने के उद्देश्य से अगले दो तीन दिनों तक मैं उसकी निगरानी करता रहा लेकिन मुझे असफलता ही हाथ लगी। हालांकि ऐसा कहना ग़लत होगा कि मुझे उचित मौके नहीं मिले। मुझे कई मौके मिले लेकिन मैं उसका लाभ नहीं उठा पाया। मुझे याद है, एक बार शाम के समय वह अपनी एक सहेली के साथ बात कर रही थी तभी मैंने उसकी तरफ अपना प्रेम पत्र उछाल दिया। जो उसके करीब जा कर गिरा। लेकिन पता नहीं उसने देखा नहीं या शायद अंधेरे की वजह से उसे दिखा नहीं। मैंने उनके जाने के बाद जाकर देखा तो वहीं का वहीं पड़ा था। एक दिन संयोगवश वह मुझे एक गली में सामने से अकेली आती दिख गई। मौका देखकर मैंने अपना प्रेम पत्र उसकी मुट्ठी में पकड़ाया चाहा लेकिन वह मुस्कराते हुए बड़ी फुर्ती से बगल से निकल गई।
शायद वह समझी कि मैं उसकी कलाई पकड़ना चाहता हूं। थोड़ी देर के बाद मैं उधर से वापस लौटा तो मुझे देख कर मुस्कुराने लगी।
“पता नहीं कैसी पागल लड़की से पाला पड़ा है।”
मैंने अपना माथा पीट लिया।
“यह लो इसे अपनी अंजलि को दे देगा।” एक बार मैंने उसकी एक सहेली को प्रेम पत्र थमाते हुए कहा।
“ना बाबा ना” मैं इन चक्करों में नहीं पड़ना चाहती। कहते हुए उसने पत्र लेने से इंकार कर दिया।
ऐसे और अवसर कई बार आए जब मैं उससे अपने प्यार का इजहार कर सकता था। लेकिन इसे अपनी कायरता कहूं या बुजदिली। चाह कर भी मैं उससे अपने प्यार का इजहार नहीं कर सका। उसके सामने जाते हैं न जाने मुझे क्या हो जाता था। उसके बाद भी ना जाने कितनी दफा मैंने प्रेम पत्र लिखा लेकिन किसी को उसके अंजाम तक नहीं पहुंचा पाया। इसका एक कारण यह भी था कि कहीं ना कहीं मेरे अंदर एक डर भी था कि कहीं वह इंकार ना कर दे और हमेशा के लिए नाराज ना हो जाए। मैं किसी भी हाल में उसका साथ खोना नहीं चाहता था। बहरहाल हमारे बीच सामान्यतः जो बातचीत, हंसी-मजाक और कभी-कभार तकरार होती थी वो जारी रही। मुझे कभी ऐसा लगा ही नहीं की वह मुझसे अलग है। सुख में और दुःख में मैं हमेशा उसे अपने साथ पाता था।
हार्ट टचिंग लव स्टोरी
मुझे आज भी याद है। जब एक बार हमारे परिवार के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टुट पड़ा था। सबसे पहले मेरी दादी की डेथ हुई। उसके कुछ ही दिनों बाद मेरा 6 साल का भाई डायरिया का शिकार हो गया। फिर उसके कुछ ही दिनों बाद मेरी भाभी का देहांत हो गया। आज भी वह दृश्य मेरी आंखों के सामने बार-बार घूम जाता है। बरसात की दिन था। रुक रुक कर लागातर बारिश हो रही थी। रात के 10:00 बजे थे। भाभी का शव एंबुलेंस से उतार कर द्वार पर रखा हुआ था। सारे पड़ोसी और हितैषी अपने अपने घरों में जा कर सो चुके थे। परंतु अंजलि बड़ी समझदारी का परिचय देते हुए मेरे बिलखते परिजनों को सांत्वना दे रही थी। उसने मेरी मां और बहनों के साथ मिलकर सुबह तक सारी औपचारिकताओं को पूरा किया। ऐसा लग रहा था कि वह कोई गैर नहीं बल्कि हमारे ही परिवार का सदस्य है। वह थी ही कुछ ऐसी कि उसके प्रति मेरे निश्छल प्रेम की गहरा होता जा रहा था।
किसी ने ठीक ही कहा है कि हर एक दोस्त कमीना होता है। कहने को तो वो मेरे दोस्त थे लेकिन वे सब कुछ जानते हुए भी उस पर डोरे डालते थे। वह थी ही इतनी खूबसूरत,शोख और चंचल कि मेरे प्रति दोस्तों मन में ईर्ष्या उत्पन्न होने लगी। हालांकि मैंने इन सभी चीजों को नजर अंदाज करके उनसे दोस्ती कायम रखी। दरअसल वे सभी लड़के हमारे गांव के क्रिकेट टीम के सदस्य थे और मैं उसका कैप्टन था। मैं नहीं चाहता था कि मेरी टीम बिखर जाए।
परंतु एक दिन मुझे पता चला कि मेरे उनमें से कुछ लड़के अंजलि के साथ कुछ गलत करने की योजना बना रहे हैं तो पानी सिर से ऊपर जाता देख मैंने उन्हें खुली चुनौती दे डाली।
“है किसी की हिम्मत तो कोई उसे छू कर दिखाए। मेरे होते हुए कोई उसे छू भी नहीं सकता।” प्रताप, एजाज और शम्स को छोड़कर सभी लड़के मेरे दुश्मन हो गए। मैंने उसके बाॅडीगार्ड की भूमिका संभाल ली और उसे कुछ बताए बगैर साये की तरह उसके आसपास रहने लगा। रात के एक बजे तक जब तक वह सो नहीं जाती। मैं उसके घर के बाहर बैठा रहता था। हमारी टीम टूट गई। मैंने प्रताप, एजाज और शम्स के साथ कुछ बच्चों के साथ अलग टीम बना ली। हमारे बीच एक चैलेंजिंग मैच भी हुआ। जो झगड़ा होने की वजह से अनिर्णायक रहा। मुझे याद है, उस मैच में मैंने इतना लम्बा सिक्स मारा था। जो पुरे मैदान को पार करके अंजलि के पास जाकर गिरा था। जो उस वक्त अपने आम के बगीचे में बैठी हुई थी। एक बार तो उन्होंने अकेले में लड़ाई करने का चैलेंज दे दिया।
अब शेर भला किसी की दहाड़ कैसे बर्दाश्त कर सकता है। मैं और प्रताप निश्चित जगह पर बिल्कुल टाईम से पहुंच गए। एक तरफ सात लड़के और दुसरी तरफ हम दोनों। लेकिन मेरा एटीट्यूड और हिम्मत देखकर उनमें से किसी की भी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं नहीं हुई। खैर किसी तरह मामला शांत हो गया। उसके बाद आगे फिर से किसी ने कोई हिमाकत करने की कोशिश नहीं की।
उन दिनों अगल-बगल के गांवों में अक्सर महायज्ञ और अष्टयाम जैसे धार्मिक आयोजन होते रहते थे। ये धार्मिक आयोजन हमारे लिए वृंदावन हुआ करते थे। चाहे कैसा भी मौसम क्यों ना हो वह अपनी सहेलियों के साथ जरूर जाती और वहां हम दोनों को एक दूसरे की सुरत को नजरों में उतारने का भरपूर मौका मिलता। मुझे याद है जब हम बगल के गांव में रात को कृष्ण लीला देखने जाते थे। हमारा और उसका सीट बिल्कुल पक्का होता। हम पुरूषों के पंडाल में और वो महिलाओं के पंडाल में बैठती थी लेकिन हम प्रतिदिन एक ही जगह पर बैठते और ऐसी जगह पर बैठते कि हम एक दूसरे को देख सकें। पूरे पांच धंटे सारे दर्शक राधा और कृष्ण के रासलीला का आनंद लेते और हम दोनों सारी दुनिया को भूलकर एक दूसरे की आंखों में खोए रहते। वो मेरे जिंदगी के सबसे बेहतरीन पल है। जिन्हें मैं कभी नहीं भूल सकता।
राधा और कृष्ण की तरह हमारा प्यार भी गांव की लड़कियों और लड़कों में मशहूर होता जा रहा था।। भले ही हमारे बीच अकेले में मुलाकातें नहीं होती थी लेकिन हमारे नैना हर पल एक दूसरे से बातें करते रहते थे। यद्यपि मैं रात को अक्सर सपने जरूर देखता था कि वो बगीचे में मेरे सीने से लगी हुई मेरे बालों को सहला रही है। हम दोनों एक दूसरे से प्यार भरी बातें कर रहे हैं लेकिन फिलहाल मैं इतनें में ही खुश था। मेरे मन में उसके प्रति कभी सेक्सुअल विचार आते ही नहीं थे। मुझे गांव और समाज की हदों का भी ख्याल था। मैं नहीं चाहता था कि मेरी वजह से उसकी इज्जत पर कोई आंच आएं। वह अपने परिवार और समाज की नजरों में बदनाम हो जाएं। सच कहूं तो मैं उसकी आंखों में आंसू बर्दाश्त ही नहीं कर सकता था। इसलिए मैंने कभी अपनी हदों से बाहर जाने की कोशिश ही नहीं की। वैसे भी
वह हमेशा मेरी आंखों के सामने थी और खुश थी इससे ज्यादा मुझे और क्या चाहिए था। मुझे ऐसा कभी लगा ही नहीं कि वह कभी मुझसे अलग है अथवा कभी अलग हो सकती है। परंतु होनी को तो कुछ और ही मंजूर था।
अगर मुझसे कोई पूछे कि “प्यार का सबसे बड़ा दुश्मन कौन है?” तो मैं कहूंगा, “ग़रीबी”।
“जी हां ग़रीबी”।
जो उसके ख्वाबों को चकनाचूर कर देती है। उससे उसकी खुशियों को छीन लेती है और उसे जुदाई के आंसू पीने को मजबूर कर देती है।
“होठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो,
बन जाओ मीत मेरे,मेरा प्रीत अमर कर दो…।
मां जल्दी से खाना लाओ, पेट में हाथी कुद रहें हैं। सुबह-सुबह स्नान करके मैंने गुनगुनाते हुए मां को आवाज़ लगाई।
एक मिनट अभी लाती हूं। रसोई घर से श्वेता की आवाज आई।
“यह क्या है! दाल भात भुजिया क्यों नहीं बनाई?”
खिचड़ी की थाली देखते ही मैं बिदक गया।
“अभी तक खिचड़ी मिल भी गई, कल से वो भी नहीं मिलेगा।”
“क्या! दिमाग खराब हो गया है क्या तुम्हारा।”
मैंने हैरानी और गुस्से से श्वेता की तरफ देखा।
हां भाई, घर में चावल, दाल,आटा सब कुछ खत्म हो चुका है। तुम्हें आशिकी से फुर्सत मिले तब तो कुछ जानो। तुम्हें तो घर परिवार से कोई मतलब ही नहीं है। श्वेता ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा।
उसकी बात सुनकर जैसे मेरा ख्वाबों की दुनिया से मोहभंग हुआ। वह ठीक ही कह रही थी। मोहब्बत के समंदर में मैं इस कदर डूब गया था कि जीवन की वास्तविकता से अनजान हो गया था।
“पता नहीं ये जिंदगी मुझे कहां लेकर जायेगी।”
कलाई पर गुदे उसके नाम को सहलाते हुए मै बस यहीं सोच रहा था। कभी-कभी जिंदगी हमें ऐसा वक्त भी आता है। जहां हमारे सामने केवल एक ही रास्ता बचता है। यहां भी मेरे सामने केवल एक ही विकल्प बचा था। अपने बिखरते हुए परिवार को बचाना।
“मुझे कुछ ना कुछ करना ही होगा।”
शाम को यहीं सोचते हुए मैं खेतों की तरफ जा रहा था। तभी वह सिर पर घास का गट्ठर लिए सामने से आती दिखाई पड़ी। उसके साथ उसकी 4-5 सहेलियां भी थी। थोड़ा करीब आने पर मैंने देखा कि उसके दोनों गाल सुजे हुए थे। जिसे वह अपने दुपट्टे से ढकने की नाकाम कोशिश कर रही थी। शायद घास काटते समय ततैए ने काट लिया था।
“अरे ये क्या बंदरियों जैसी शक्ल बना रखी है।”
मैंने उसे छेड़ते हुए कहा।
“रूको अभी बताती हूं।” एक तरफ घास का गट्ठर फेंकते हुए वह मेरे ऊपर झपटी। परंतु मैं तो पहले से ही भागने के लिए तैयार था। कुछ दूर जाकर बन्दर की तरह मुंह फुलाकर उसे फिर से चिढ़ाया।
आज के बाद जो कभी मिल गये तो जान से मार दूंगी। उसके मुस्काते हुए हंसिया दिखाया।
फिर अगले दो-तीन दिनों तक वह मुझसे चिढी रही। अगर मैं उसकी तरफ देख कर मुस्कुराता तो वह मुंह बिचका लेती। यह हमारे लिए कोई नई बात नहीं थी। गुस्से में वह बहुत प्यारी लगती थी इसलिए अक्सर मैं जानबूझकर ऐसी बात कह देता कि वह चिढ़ जाती। फिर दो-तीन दिनों तक वह नाराज रहने के बाद अपने आप ही मान जाती। यहीं सिलसिला पिछले दो तीन सालों से चला आ रहा था।
इधर पिछले कुछ दिनों से बाबूजी की तबीयत ख़राब चल रही थी और घर के हालात भी धीरे-धीर ख़राब होते जा रहे थे। मुझे इस बात का एहसास भी हो गया था कि मुझे जल्द ही कोई कठोर निर्णय लेना होगा। ये सच था कि मुझे उससे बहुत प्यार था, शायद हद से भी ज्यादा। परंतु अपने परिवार के लिए उससे जरा भी प्यार कम ना था। मेरे अंदर इतना हौसला था कि अपने परिवार के लिए उसके जैसी हजार लड़कियों को कुर्बान कर सकता था।
एक दिन मुझे पता चला कि गांव के कुछ लड़के (जिससे मेरे बड़े भैया भी थे। जो हमलोगों से अलग रहते थे) पंजाब कमाने जा रहे हैं मैंने उनसे बात की तो वे मुझे अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो गये। जाने से पहले मैंने तीन-चार पन्नों का एक बड़ा सा प्रेम पत्र लिखा और अपनी छोटी बहन अंकिता को दे दिया। जो अंजलि की सहेली थी।
“इसे याद करके अंजलि को दे देना।”
घर से निकलने से पहले मैंने उसे फिर से याद दिलाया।
ठीक है, उसने सिर हिलाया।
ट्रेन के छुटते ही मेरी आंखों के सामने उसके साथ बिताए गए सारे पल किसी फिल्म की भांति घूमने लगे। एक पल के लिए ऐसा महसूस हुआ जैसे जिस्म से जान निकली जा रही हो। दिल में दर्द का ऐसा तुफान उठा कि आंखों से आंसू छलक आए।
“भूल जाओ उसे शायद वह तुम्हारी किस्मत में ही नहीं है।” मैंने अपने सीने पर हाथ रखते हुए दिल को समझाया। परंतु दिल तो बच्चा ही होता है। वह खिड़की से बाहर सिर निकालकर बच्चों की तरह बिलख पड़ा। मेरे दिल की आवाज ट्रेन के शोर के नीचे दब कर रह गई। रात के अंधेरे में किसी को कुछ खबर भी ना हुई कि उनके आसपास कुछ हुआ है। बहरहाल हमलोग दो दिनों के उबाऊ सफर के बाद पंजाब की राजधानी लुधियाना पहुंच गए। लुधियाना स्थित कार्यस्थल पर पहुंचने पर पता चला कि हमारे साथ धोखा हुआ हैं। वहां पर कार्यरत मजदूरों से पता चला कि उन्हें नौकरी का झांसा देकर लाया गया था। परंतु यहां इस निमार्णधीन कारखाने में खुदाई का काम कराया जा रहा है। वो भी बहुत कम पैसों में। हमारे साथ गांव के करीब 10 से 12 लोग थे। हमने किसी तरह वहां रात गुज़ारा और सुबह होते ही पहरेदारों को चकमा देकर भाग निकले। लुधियाना से भागकर हमलोग दिल्ली गए और वहां से गुड़गांव। लेकिन वहां भी दुर्भाग्य ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा। एक दो दिन काम करने के बाद हमें ये कह कर हटा दिया गया कि यहां ज्यादा मजदूरों की जरूरत नहीं है। गुड़गांव से वापसी के क्रम में हमारा एक्सीडेंट हो गया। हम जिस टैक्सी पर सवार थे। वह बीच रास्ते में ही पलट गई। मेरे कंधे की पसली टुट गई थी और भैया को भी काफी चोटें आई थी। दिल्ली में हमारे एक पड़ोसी रहते थे। बड़े भैया के पास उनका नंबर था। हमने उन्हें फोन किया और उनका पता पूछकर घायल अवस्था में ही किसी तरह उनके पास पहुंचे। उन्होंने एक सरकारी अस्पताल में हमारा इलाज कराया और हमें अपने साथ ले आए। उस वक्त उनकी भी माली हालत बहुत खराब थी। हालत ऐसी थी कि कभी-कभी चाय बिस्किट पर ही दिन गुजारना पड़ता था।
कैसे कहूं बिना तेरे जिंदगी ये क्या होगी, जैसे कोई सजा कोई बददुआ होगी..ऽऽ
“पता नहीं ये जिंदगी कब तक मुझे रूलाती रहेगी।” एक रात मैं भुखे पेट, गिट्टी के ढेर लेटा उसे याद करके अपनी किस्मत को कोस रहा था। तभी कहीं से आती हुई संगीत की ध्वनि मेरे कानों में गूंजने लगी। एक तरफ टुटे हाथ का दर्द, दूसरी तरफ भुख का दर्द, तीसरी तरफ मोहब्बत का दर्द और चौथी तरफ गरीबी का दर्द। इन सबने इस गाने के साथ मिलकर गम का एक भावनात्मक तुफान खड़ा कर दिया। इस चौतरफा हमले को मैं सहन ना कर सका और फूटफूट कर रो पड़ा। एक पल के लिए ख्याल आया कि किसी गाड़ी के नीचे आ जाएं। परंतु हार मानना बचपन से ही मेरी फितरत में नहीं था। उस रात मैं इतना रोया कि आंखें पथरा गईं।
अगले दिन मैंने घर जाने की जिद पकड़ ली।
“अभी तो हमारे पास खाने के भी पैसे नहीं हैं, टिकट के पैसे कहां से आएंगे।” भैया ने दुखी मन से कहा।
“हम बिना टिकट ही जायेंगे, जो होगा देखा जायेगा।” मैंने हिम्मत बढ़ाई।
उस हालातों में भैया भी दुखी और परेशान हो गए थे। सो उन्होंने भी मौन सहमति दे दी।
हम दोनों विकलांग वाले डब्बे में बैठकर किसी तरह घर पहुंच गए। हमने रास्ते में ही फोन कर दिया था। अतः स्टेशन पर बाबूजी साईकिल लिए हमारा इंतज़ार कर रहे थे
“वाह रे किस्मत” गए थे पैसे कमाने और घरवालों के लिए एक नई मुसीबत ले कर चले आए।”
ट्रेन से उतरते समय मैं मन ही मन सोच रहा था।
“काश ये धरती फट जाए और मैं उसमें समा जाऊं।” आत्मग्लानि से मेरा दिल भर गया।
खैर बाबूजी ने हमारा उचित इलाज कराया और हमें घर ले आए।
इतने संघर्ष के बाद मुझे एक बात तो अंदाजा हो चुका था कि इस जन्म में तो वह मुझे नहीं मिल सकती।
क्या तुमने अंजलि में मेरा पत्र दे दिया।
रात को मैंने अंकिता से पूछा।
“नहीं” अंकिता ने सिर झुका कर जवाब दिया।
“चलो कोई बात नहीं।” मैंने अंकिता से वह पत्र लिया और फाड़कर फेंक दिया।
मैंने दिल पर पत्थर रखकर यह तय कर लिया कि अपने परिवार की खुशी के लिए अपने प्यार को कुर्बान कर दूंगा। अतः मैं अपनी पूरी संकल्प शक्ति समेट कर उसे भूलने का प्रयत्न करने लगा। वह मेरी तरफ देखती तो मैं नज़रें चुरा लेता। कभी अगर वह मुझे सामने से आती दिख जाती तो मैं रास्ता बदल लेता। फिर भी पूरे 5 सालों के साथ को भूलना आसान थोड़े ही होता है। कई बार मैं अपने इरादों में असफल हो जाता और दिल के आगे समर्पण कर देता। दिल और दिमाग के बीच जंग जारी थी। इधर बाबूजी इधर-उधर मजदूरी करके किसी तरह परिवार की गाड़ी खींच रहे थे। जो मेरे लिए शर्म की बात थी। परंतु मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि मेरे हाथों प्लास्टर लगा हुआ था।
“एक बात का पता चला है तुम्हें।
रात को मैं अपने दोस्त शम्स के साथ गांव के सरेह में टहल रहा था।
“कौन सी बात।” मैंने चलते-चलते लापारवाही से पूछा।
“अंजलि की शादी होने वाली है।”
अचानक से जैसे मेरे पैरों में ब्रेक लग गए।
“क्या यह मजाक है।” मैंने गंभीरता होते हुए कहा।
“नहीं ये सच है।” नहीं ये सच है, मैंने खुद अपनी कानों से सुना है।”
एक पल के लिए जैसे मेरा दिमाग सुन्न हो गया। भले ही मैं उसे भुलने की कोशिश कर रहा था लेकिन सच तो ये था कि अभी तक मैं उसे एक पल के लिए भी भूल नहीं पाया था। मेरे जीवन के लिए कम से कम इतनी राहत थी कि वह मेरी नज़रों के सामने थी। लेकिन अब जीने का यह सहारा भी छूटने वाला था।
“तुम चलों मैं आता हूं।” मैं वापस सरेह की तरफ लौटने लगा।
“कहीं नहीं” तुम जाओ मैं आता हूं।” मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
“नहीं! मैं इतनी रात को तुम्हें अकेला नहीं छोड़ सकता।” शायद उसे लगा कि कहीं मैं खुद को नुक़सान ना पहुंचा लूं इसलिए वह जबरन मुझे पकड़ कर घर ले आया।
“अब मैं कैसे जी सकूंगा।” क्या वह शादी के लिए तैयार हो जाएगी? क्या पता उसके दिल में क्या है? मैंने तो उससे अभी इज़हार भी तो नहीं किया है। अगर मैंने उससे इज़हार भी कर लिया तो उसे भगा कर कहां ले जाउंगा। कैसे उसकी जरूरतों को पूरा करूंगा। कैसे उसे खुश रखूंगा। अभी तो मैं कुछ कमाता भी नहीं हूं। अगर मैं उसे लेकर कहीं भाग भी जाऊं तो मेरे घरवाले तो भूखे मर जाएंगे। फिर गांव-समाज और उसके घरवाले मिलकर मेरे परिवार का जीना दूभर कर देंगे। श्वेता और अंकिता का क्या होगा। पूरी रात मैं इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढता रहा।
संयोग से अगले ही दिन वह मुझे अपने चापाकल पर अकेली मिल गई। मैं जाकर पानी पीने लगा और वह हैंडल चलाने लगी।
“सुना है तुम्हारी शादी हो रही है।” मैंने पानी पीते-पीते रूक कर पूछा। वह कुछ नहीं बोली। बस खामोशी से हैंडल चलाती रही।
तभी वहां गांव की कुछ औरतें आ गई। इसलिए मैंने वहां रूकना उचित नहीं समझा।
अभी मैं इस झटके से संभला भी नहीं था कि अगले दिन एक दुसरा झटका लगा।
“अब तो तुम्हारा हाथ ठीक हो गया है ना”।
मैं रात को बाबूजी के साथ भोजन कर रहा था।
“हां अब बिल्कुल ठीक हो चुका हूं।”
मैंने रोटी का टुकड़ा मुंह में डालते हुए जवाब दिया।
ठीक है’ तुम्हें कल से काम पर जाना होगा। मेरा एक दोस्त है जो शहर में ट्रक चलता है। मैंने उससे बात कर ली है। वह कुछ ही दिनों में तुम्हे गाड़ी चलाना सीखा देगा। बाबूजी ने संक्षेप में बताया।
“लेकिन मुझे ड्राईवरी का काम पसंद नहीं है।”
मैंने एतराज जताया।
“तो क्या करोगे, ड्राइविंग आराम का काम है तो नहीं होगा और दिल्ली पंजाब जाकर मजदूरी करोगे।” बाबूजी नाराज हो गए।
“कितने दिनों के बाद छुट्टी मिलेगी।”
थोड़ा देर सोचने के बाद मैंने प्रश्न किया।
” इसका कोई ठीक नहीं है, वैसे मैं कह दूंगा, तुम महीने दो महीने में घर भी आ सकते हो।
महीने दो महीने, यहां तो एक दिन भी जीना दुश्वार हो रहा है। मैंने मन ही मन सोचा।
खैर, मेरे पास और कोई चारा भी नहीं था।
“चलो अब जिंदगी जहां ले जाये।”
जाने को तो मैं चला गया लेकिन मेरी हालत “जल बिन मछली; की हो गई। मेरा किसी भी काम में मन नहीं लगता। बस हर पल उसके ही ख्यालों में खोया रहता। रात भर मुझे नींद नही आती। उसकी याद में मैंने कितनी रातें रो-रो कर गुजारी है। कई बार तो मै पांच छः दिन में ही भागकर घर आ जाता। जिसके कारण मुझे बाबूजी की डांट सुननी पड़ती थी। मेरी हालत पागलों जैसी हो गई। मैं जहां भी जाता वहां की सड़कों पर, गाड़ियों पर और पेड़ों इत्यादि पर उसका नाम लिखता रहता। रात को सोते समय किसी लड़की की आवाज सुन लेता तो उठ कर बैठ जाता। हर लड़की की आवाज उसी की आवाज लगती।
पता नहीं मुझे क्या हो गया था। मैंने मंदिरों में जाना बंद कर दिया। मुझे भगवान के नाम से भी चिढ़ होने लगी। हालांकि अभी भी मेरी अंतर्चेतना जागृत थी और मुझे बेहतर बनाने के लिए लगातार काम कर रही थी।
एक बार जब मैं छुट्टी में घर आया तो पता चला कि उसकी शादी फिक्स हो चुकी थी। अगले ही महीने उसकी शादी होनी थी। मुझे लगा कि अब यहां रूकना ठीक नहीं है। उसकी शादी के तीन महीने बाद जब मैं दुबारा घर वापस आया तो डिप्रेशन का शिकार हो चुका था। मैंने गाड़ी छोड़ दी और घर पर रहने लगा। उसके जाने के बाद मेरा जीवन बिल्कुल नीरज और विरान हो गया।
मैंने गांव में निकलना और दोस्तों के साथ उठना बैठना सब बंद करके घर में कैद हो गया। श्वेता को मुझसे बड़ा लगाव था। वह मेरी हालत देखकर अक्सर रोने लगती थी। मुझे भी अपने मां बाप और बहनों से बहुत प्यार था और मैं उनके आंखों में आंसू नहीं देख सकता था।
परंतु इस वक्त कुछ समझ नहीं आ रहा था।
“क्यों जी, सिर्फ कहानियों में ही डूबे रहेंगे या मेरा भी कुछ ख्याल है।” नीतू ने पीछे से कसकर पकड़ा तो मेरा ध्यान भंग हुआ।
सारी जिंदगी तो तुम्हारी ही है और क्या चाहिए।
खुद को उसकी बाहों से छुड़ाते हुए मैं पीछे पलटा।
“बस इतना ही काफी है।”
वह मुस्कराई।
“चलो, कुछ मीठा हो जाए।”
उसके गले में बाहों का हार डालते हुए मैंने शोखी से कहा।
“मैं चाय बना कर लाती हूं।”
वह मासुमियत से बोली तो मैंने उसे आजाद कर दिया। वह चाय बनाने नीचे चली गई और मैं फिर से लिखने लगा।
मुझे बचपन से ही पढ़ने का बहुत शौक था। इसलिए मैंने उसके गम को भुलाने के लिए किताबों से दोस्ती कर ली। ऐसे वक्त में किताबों ने मेरा बड़ा साथ दिया। उन्होंने मुझे बिखरने से बचा लिया और मुझे वापस जिंदगी की तरह मोड़ दिया। फिर भी उसकी शादी के दो तीन सालों के बाद भी मैं उसके गम में डूबा रहा। लेकिन कहते हैं ना, समय का मरहम बड़े से बड़े जख्म को भर देता है। धीरे-धीर जिंदगी पटरी पर लौटने लगी। उसकी शादी के तीन सालों बाद मेरी भी शादी हो गई।
मेरी पत्नी काफी खूबसूरत,मासुम और नेकदिल इंसान है तथा तीन प्यारे-प्यारें बच्चों का पिता भी हूं। मैं अपनी पत्नी और बच्चों से बेहद प्यार करता हूं। परन्तु आज तक मैं उसे लड़की को भूल नहीं पाया हूं क्योंकि उस लड़की की वजह से मैंने जीना सीखा है। उसी की प्रेरणा से मैंने अपने परिवार को गरीबी के दलदल से निकाल पाया हूं। मुझे अपने दिल टुटने का उतना गम नहीं है। जितना इस बात कि खुशी है कि केवल अपनी खुशियों को कुर्बान करने से दर्जनों चेहरों की खुशियां बरकरार है। मैंने जो कुछ भी किया उसकी और अपने परिवार की खुशियों के लिए किया।
वह भले ही मेरी जिंदगी में नहीं है लेकिन उसकी यादें हमेशा मेरे साथ है। आज भी मुझे उससे उतना ही प्यार है जितना 15 साल पहले था। आज भी वह अक्सर मेरे सपने में आती है, बातें करती है और अचानक गायब हो जाती है।
उसके जाने के बाद दिल में गम की ऐसी लहरें उठती है कि मैं उसमें में डूब जाता हूं और कुछ देर के लिए खुद को भूल कर बच्चों की तरह रोने लगता हूं। आज भी मेरे साथ ऐसा ही हुआ था। अब आप लोग ये मत समझ लेना कि मैं एक कमजोर, भावुक और अपरिपक्व इंसान हूं। मैं एक स्ट्रांग, इंटेलिजेंट और जीनियस इंसान हूं। मैंने पिछले 15 सालों अपने परिवार की सारी जिम्मेदारी अपने कांधे पर उठा रखी है और उनके हर सुख-दुख का ख्याल रखता हूं। अपने परिवार के साथ मैं एक सुखी और खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहा हूं और मैं ईश्वर से हरदम यहीं प्रार्थना करता हूं कि उसका भी वैवाहिक जीवन सुखमय और खुशहाल हो। अब चुंकि हम दोनों अपनी-अपनी जिंदगी में खुश हैं इसलिए मैं नहीं चाहता कि मैं उससे प्रेमी की तरह मिलूं या वह मुझे प्रेमिका के रूप में मिले। मैं उसके शादीशुदा जिंदगी में दखल देकर उसकी सामाजिक गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता और ना ही मैं उसके वैवाहिक जीवन पर चरित्रहीनता का दाग लगाना चाहता हूं। लेकिन मरने से पहले मैं उसके दिल तक अपने दिल की बात पहुंचाना चाहता हूं ताकि वह मेरे दिल के जज़्बातों को, मेरी मजबूरियों को समझ पाए। मैं नहीं चाहता कि उसके दिल में मेरे प्रति कोई गलतफहमी रहे। अन्यथा मरने के बाद भी मेरी आत्मा को शांति और सूकून नहीं मिलेगा। इसलिए आप सभी पाठकों से अनुरोध है कि कृपया इस कहानी को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। ताकि यह कहानी उस तक पहुंच जाए। वह जब इस कहानी को पढ़ेगी तो समझ जायेगी कि यह उसकी ही कहानी है।
समाप्त
आपको इन्हें भी पढ़नी चाहिए।
Sir main Ek writer hun (love story, sad love story, jivan Shaikh, god se related type ka story (dharmik)) aisi story likhta hun sir main Ek village se hun, kya mujhe job mil sakti hai sir Mera Naam Jwala Prasad Hai. Main Jharkhand se hun. reply sir reply
7324901107
Sir yah Maine likha hai yah short Hai sir main ISI type ka likhta hun sar main dharmik kahaniyan likhta hun love story likhta hun thriller story likhta hun crime story likhta hun suspense story likhta hun please sir reply