आत्मा क्या है? क्या सच में आत्मा होती है ? जानिए- आत्मा का रहस्य

Aatma kya hai | what is soul in hindi

पृथ्वी पर जब से हमारी चेतना का विकास हुआ। तभी से हमारे अंदर अपने अस्तित्व को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए थे। कि हम कौन हैं और कहां से आए हैं? हमारे अंदर मौजूद जीवन क्या है? हमारे अंदर ऐसा क्या है जिसके निकलते ही हमारी मृत्यु हो जाती है? मृत्यु के बाद हमारा क्या होता है? क्या मृत्यु के बाद भी जीवन है? इन्हीं सवालों के जबाव ढूंढने के क्रम में कुछ लोगों को अपने आप से साक्षात्कार हुआ। शायद उन्हीं के द्वारा वेदों और उपनिषदों में आत्मा और परमात्मा के बारे में बहुत सारी बातें लिखी गई। परंतु माडर्न साइंस अपने रिसर्चो के आधार पर कई बार इन शास्त्रों को गलत साबित कर चुका है। और वह भी सटीक प्रमाण के साथ। दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी भी आज साइंस के समर्थन में खड़ी है। इसीलिए आज भी हमारे मन में आत्मा को लेकर कई सवाल खड़े होते रहते हैं। जैसे- आत्मा क्या होती है? क्या सच में आत्मा होती है? अगर आत्मा होती है तो साइंस क्यों इसे बार-बार नकार देता है। और अगर आत्मा नहीं होती तो क्या हमारे शास्त्र झूठ बोल रहे हैं। इस आर्टिकल में हम आत्मा से जुड़े सभी सवालों के जबाव जानने की कोशिश करेंगे।

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Aatma ka rahasya

गीता के अनुसार आत्मा क्या है?

सबसे पहले बात करते है श्रीमद्भागवद गीता जिसमें कृष्ण कहते हैं कि आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत, और पुरातन है। आत्मा का ना तो जन्म होता है और ना ही उसकी मृत्यु होती है। ऐसा नहीं है कि वह तुमसे पहले नहीं थी या तुम्हारे बाद नहीं होगी। आत्मा अजर-अमर है। शरीर का नाश होने पर भी आत्मा का नाश नहीं होता। आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते। अग्नि जला नहीं सकती। पानी भीगो नहीं सकते और ना ही वायु सूखा नहीं सकता हैं। आत्मा, सर्वव्यापी, अचल और सनातन है। उपनिषदों में भी आत्मा के बारे में कुछ ऐसा ही बताया गया है।

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क्या सच में आत्मा होती है?

देखिए श्रीमद्भगवद्गीता और उपनिषद हमने भी पढ़ा भी है। लेकिन हमारा मानना है कि केवल पढ़ने से कुछ नहीं होता। उन्हें समझना भी जरूरी होता है। हम ये तो नहीं कह सकते कि शास्त्रों में जो लिखा है। वह झूठ है। लेकिन हमें लगता है कि या तो इनमें लिखी गई कुछ बातों को गलत अर्थों में परिभाषित किया गया है या इनमें अलग से कुछ मनगढ़ंत बातें जोड़ी गई है क्योंकि आत्मा वास्तव में वैसी नहीं होती जैसा हमारे धर्म गुरु हमें बताते है। आत्मा निर्गुण निराकार और अव्यक्त है। सच कहें तो आत्मा केवल एक कल्पना है। हमारे भीतर या बाहर जो कुछ भी है उसे केवल अनुभव किया जा सकता है उसे व्यक्त नहीं जा सकता और ना उसे कोई नाम हो सकता है। हालांकि किसी भी चीज को परिभाषित करने के लिए उसे कोई ना कोई नाम देना ही पड़ता है इसलिए इसे आत्मा या परमात्मा कोई भी नाम दिया जा सकता है।

आत्मा क्या है?

 
अब सवाल ये उठता है कि आत्मा क्या है? तो हमारे अनुभव के अनुसार प्राकृति के सभी जड़ और चेतन प्राणीयों में जो मुल तत्व है, उसे ही आत्मा अथवा परमात्मा कहा जाता है। परंतु आत्मा ना तो सबके अंदर अलग-अलग होती है और ना ही यह मृत्यु के बाद एक शरीर से निकल कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है। क्योंकि परमात्मा अगर सागर है तो हम सब उसकी लहरें है। अब यदि कोई लहर यह कहें कि वह अन्य लहरों से अलग है तो यह उसकी मुर्खता ही कही जाएगी। इसलिए मेरी आत्मा तुम्हारी आत्मा,इसकी आत्मा या उसकी आत्मा जैसी कोई बात नहीं है। सबकी आत्मा एक ही है। अब बात करते हैं आत्मा के विचरने की तो गीता में श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि आत्मा सर्वव्यापी, स्थिर है। क्योंकि जो सर्वव्यापी और स्थिर है उसके एक जगह से दूसरे जगह जाने का कोई औचित्य ही नहीं बनता। हमारे पंडित पुरोहित आत्मा और स्वर्ग-नरक से संबंधित जितने भी किस्से कहानियां सुनाते हैं। वे सब मनगढ़ंत बातें हैं। वे आत्मा के नाम पर तरह-तरह के कर्मकांड करवाते हैं ताकि उनका व्यापार चलता रहें। मगर वह सब एक अंधविश्वास है।
 

विज्ञान के अनुसार आत्मा क्या है?

 
विज्ञान की भाषा में “आत्मा” परमाणु का ही धार्मिक नाम है जो न्यूट्रॉन, प्रोटोन और इलेक्ट्रॉन से मिलकर बना है। जिसके बारे में साइंस कहता है कि इसे ना तो उत्पन्न किया जा सकता है और ना ही नष्ट किया जा सकता है। अब हम इसे आत्मा कहें या परमाणु कहें दोनों एक ही बात है। अगर फ्यूचर में साइंस और विकसित हुआ तो हम मशीनों के द्वारा ना केवल मन को जान सकते हैं बल्कि ब्रम्हांड में मौजूद मेमोरिज को भी डिटेक्ट कर सकते हैं। परंतु साइंस कभी भी आत्मा तत्त्व को नहीं जान सकता क्योंकि साइंस प्राकृति के गुणों अधीन काम करता है और आत्मा प्राकृति से बिल्कुल परे है। इसलिए हमारा मानना है कि साइंस कभी भी आत्मा परमात्मा जैसी बातों को स्वीकार नहीं करेंगा।
 

आत्मा और परमात्मा में क्या अंतर है?

आत्मा और परमात्मा दोनों अलग अलग नहीं है बल्कि दोनों एक ही है। जो प्राकृति में हर जगह, हर वक्त मौजूद होते हुए भी प्राकृति से परे हैं। इसलिए प्राकृति का कोई भी तत्व इसे प्रभावित नहीं कर सकता। यदि हम अपनी आत्मा को सीधे शब्दों में परिभाषित करें तो इस दुनिया में जो कुछ भी हम देख रहे हैं। वह वास्तव में परमात्मा ही है। परमात्मा यानी आत्मा यानी हमारा अस्तित्व। हम ही जानवर है, हम पत्थर है। हम वनस्पति है, हम पानी है, हम हवा है और परमात्मा भी हम ही है। हम जानते हैं कि यह बात आप में से अधिकांश लोगों को समझ में नहीं आयेगी। इसलिए हमारा सुझाव है कि आप नियमित रूप से ध्यान करें। जैसे-जैसे आप मन से ऊपर उठने लगेंगे। वैसे-वैसे आपको सारी बातें समझ में आने लगेंगी। फिर आप समझ जाएंगे कि सारा ब्रह्मांड एक है यहां कुछ भी अलग नहीं है।
अब शायद आप सोच रहे होंगे कि जब हम सब एक ही आत्मा हैं तो हमारी पहचान अलग-अलग क्यों है। तो ऐसा हमारे मन की वजह से है।
 

मन और आत्मा में क्या अंतर है?

हमारे जीवन के तीन प्रमुख अंग है। शरीर, आत्मा और मन जिसे हम सुक्ष्म शरीर भी कहते हैं। शरीर और आत्मा के बारे में तो हम जान चुके हैं। आइए अब हम मन को जानते हैं। देखिए हमारा मन एक मेमोरी के जैसा है। और हम सब के मन में अलग-अलग याददाश्त भरी हुई है। जिसके कारण हमारे मन में अलग-अलग विचार उठ रहे हैं। अभी हमारी जो पहचान है वह वास्तव में हमारी नहीं है बल्कि हमारे मन की है। जब हमारा जन्म होता हैं तब हम अपने बारे में या इस दुनिया के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। परंतु धीरे-धीरे हम अपने आसपास जो देखते हैं, सुनते हैं और पढ़ते हैं। उन्हीं चीजों से हमारा मन बनता है। कल्पना कीजिए कि यदि आपको जन्म के साथ ही किसी निर्जन द्वीप पर छोड़ दिया गया होता और आप वहां बिल्कुल अकेले पले-बढ़े होते तो आपकी पहचान क्या होती। आप बड़े होने के बाद लोगों को अपने बारे में क्या बताते। निश्चित ही आपको पता नहीं होगा कि आप मनुष्य है या कुछ और है। मन के द्वारा ही हम संसार को अनुभव करते हैं। हमारा मन ही है जो हमारे भौतिक शरीर के माध्यम से संसार में सुख दुःख भोगता है। हमारा मन ही है जो संसार से ज्ञान प्राप्त करके हमें अपने अस्तित्व को जानने में मदद करता है।

क्या सच में भूत-प्रेत होते हैं?

हमारा मन आकाश तत्व से बना हुआ है। जो हमारे शरीर के नष्ट होने के बाद हमारा मन वापस आकाश में विलीन हो जाता है। परंतु इसमें मौजूद याददाश्त कभी नष्ट नहीं होती और यहीं याददाश्त कभी-कभी अन्य शरीरों पर हावी होने की कोशिश करती है। जिसे हम भुत प्रेत या चुड़ैल इत्यादि कहते हैं। शायद वह यहीं याददाश्त होती है। अब यहां एक और सवाल उठता है कि क्या सच में भूत-प्रेत होते है। तो हमें लगता है कि शायद होते हैं क्योंकि हमने अपने कई करीबीयों को भूत-प्रेत से पीड़ित होते देखा है। यहां तक की हमारी पत्नी भी दो बार इससे पीड़ित हो चुकी है। परंतु अभी हम इस पर खोज कर रहे हैं। और जब तक हम इसे स्वयं अनुभव नहीं कर ले तब तक हम इस सवाल का सटीक जबाव नहीं दे सकते। हां ये बात तो पक्की है कि इसका मन से जुड़ा हुआ है। आत्मा तो शरीर और मन दोनों से परे है। इसलिए कहा जाता है कि मनुष्य को अपने मन पर विजय प्राप्त करना चाहिए। क्योंकि जब तक मन है तब तक आत्मा को नहीं जाना जा सकता। जो मनुष्य मन को अपने वश में करके आत्मा को जान लेता है वह जीवन -मृत्यु से मुक्त हो जाता है।
 
 
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