हम अक्सर धार्मिक पुस्तकों में पढ़ते हैं कि हमें पाप नहीं करना चाहिए,और ज्यादा से ज्यादा पुण्य कर्म करना चाहिए। परंतु ये पाप और पुण्य क्या होता है और हम कैसे पाप से बच सकते हैं और हमें पुण्य कर्म क्यों करना चाहिए।
पाप और पुण्य क्या होता है ?
पाप क्या होता है और पुण्य क्या होता है। अक्सर यह सवाल हमारे मन में तब आता है, जब हम किसी सत्संग प्रवचन में सुनते हैं या किसी धार्मिक पुस्तक में पढ़ते हैं कि हमें पाप नहीं करना चाहिए, और ज्यादा से ज्यादा पुण्य कर्म करना चाहिए| परंतु क्या आप जानते हैं कि ये पाप और पुण्य होता क्या है? आइए जानते हैं।
पाप क्या है ॽ
जब कोई इंसान अपने शरीर की इंद्रियों के बस में हो कर काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, और अहंकार, आदि पर आधारित कर्म करती है तो उसे पाप कहते हैं। जैसे झूठ बोलना, चोरी करना, अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का अहित करना, दूसरों की बुराई करना, किसी के साथ अन्याय करना, अत्याचार करना, अहंकार करना, इत्यादि बुरे कर्म पाप की श्रेणी में आते हैं और बुरे कर्मों का बुरा परिणाम ही मिलता है। हिंदु शास्त्रो के अनुसार हमें अपने पाप कर्मों का फल इसी जन्म में या आगामी जन्मों में भोगना पड़ता है क्योंकि पाप क्रेडिट कार्ड की भांति है। जिसे हम पहले यूज़ करते हैं फिर बाद में ब्याज सहित उसका ॠण चुकाते हैं । पाप कर्म करने वाली आत्मा जन्म जन्मांतर तक जीवन चक्र के बीच मेंं झूलती रहती है । उसेेे बार-बार भिन्न-भिन्न जीव जंतुओं के रूप में जन्म लेना पड़ता है जब तक कि वह अपने कर्मों और उनके कर्म फल से मुक्त नहीं हो जाता। इसलिए हमें पाप कर्म करने से बचना चाहिए। क्या किसी से प्रेम करना पाप है ? kya pream karna paap hai
पुण्य क्या है ॽ
जो इंसान धर्म, नीति, सच्चाई, अच्छाई, दया, प्रेम, और इंसानियत, पर आधारित अच्छे कर्म करती है उसे पुण्य कहते हैं। अच्छे कर्मों का फल अच्छा ही होता है इसलिए पुण्य कर्म करने वाला इंसान जीवन में परिणाम स्वरूप सुख शांति और आनंद पाता है और मृत्यु उपरांत भी स्वर्ग, मोक्ष इत्यादि प्राप्त करता हैं। इसलिए हमें ज्यादा से ज्यादा पुण्य कर्म करने की कोशिश करना चाहिए। ताकि हमारे जीवन में सुख-शांति समृद्धि और आनंद आ सके। अब यहां एक और सवाल उठता है कि अधिकांश लोग तो जानते ही हैं कि पाप कर्मों का फल बुरा ही भोगना पड़ता है। बुरे कर्मों का बुरा परिणाम होता है। फिर इंसान पाप कर्म करता ही क्यों है।
इंसान पाप क्यों करता है?
दरअसल हम में से अधिकांश इंसान बेहोशी में जी रहे हैं। हमें होश ही नहीं रहता कि हम कब क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं। हम अपने विचारों, भावनाओं और कर्मों के प्रति जागरूक और सचेत ही नहीं है। इसलिए हमारा चंचल मन हमारी बाकी इंद्रियों को बहला कर हमसे पाप करवाती है। कभी भावनाओं में बहकर तो कभी अपनी अनियंत्रित और अनैतिक कामनाओं में वशीभूत होकर। इसीलिए हमें हमेशा सजग सचेत और होश में रह कर अपना कर्तव्य करना चाहिए ताकि हम पाप कर्म से बच सके और अपने मनुष्य जीवन का उद्धार कर सकें| ध्यान क्या है और कैसे करें। Meditation Complete Guide in Hindi
पुण्य क्यों कमाना चाहिए?
हम सब जानते हैं कि हमारा शरीर पांच प्राकृतिक तत्वों से बना हुआ है, इसीलिए हमारा शरीर नश्वर है परंतु हमारी आत्मा परमपिता परमात्मा की ही एक अंश है इसलिए हमारी आत्मा अजर-अमर है यह कभी नष्ट नहीं हो सकती । अतः हम सब को समझ लेना चाहिए कि हम सब एक शरीर नहीं हैं बल्कि हम एक आत्मा है और हम जो माया और मोह रूपी शरीर और इस संसार को अपना समझ रहे हैं वास्तव में उस से हमारा कोई संबंध नहीं है, हमारा संबंध तो परमात्मा से है । और हम इंसान बड़े भाग्यशाली हैं कि परमात्मा ने हमें मनुष्य जन्म दिया है ताकि हम पुण्य कर्मों द्वारा संसार के भाव सागर को पार करके जीवन चक्र से मुक्त हो कर सकें। क्योंकि पुण्य कर्म एक तरीका है जिसके बल पर हम इस जन्म मरण रूपी बंधन से मुक्त होकर परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं। जीवन और मृत्यु क्या है | secret of life and death
पुण्य कैसे कमाएं?
पुण्य कमाने का सबसे आसान तरीका है, निस्वार्थ भाव से मानवता की सेवा करना। अपने जीवन को मानवता के कल्यान में समर्पित करना। दान, परोपकार अर्थात किसी जरूरतमंद की मदद करना, यह भी पुण्य कमाने का एक प्रमुख तरीका हैं। परंतु यह आवश्यक है कि इन कर्मों को अहंकार या पुण्य फल की इच्छा से न किया जाए, बल्कि दिल से और दूसरों के कल्याण की भावना से किया जाए।
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