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Love definition in hindi |
प्रेम अंतर्मन की एक भावना है। प्रेम एक अभिव्यक्ति है, जो एक जीवात्मा को दूसरे जीवात्मा से जोड़ती है। आसान शब्दों में कहें तो प्रेम ही वह धागा है जो इस संपूर्ण जगत को आपस में जोड़ कर रखता है।प्यार ईश्वर का एक वरदान है जो उन्होंने अपने पुत्र स्वरूप सभी जीवो को प्रेम स्वरूप भेंट किया है। या यूं कहे कि प्रेम ही ईश्वर का स्वरूप है, अर्थात प्रेम के रूप में ईश्वर ही सभी प्राणियों के हृदय में निवास करते हैं, ताकि सृष्टि का सृजन और पोषण अनवरत चलता रहे। केवल इतना ही नहीं बल्कि सृष्टि के विनाश का कारण भी प्रेम ही है। कैसे है यह भी हम बताएंगे। लेकिन पहले हम जानते हैं ईश्वर प्रेम के रूप में जगत का सृजन और पालन पोषण कैसे करते हैं। चलिए इसके कुछ उदाहरण देखते हैं:
Prem ki vastvik paribhasha
प्रेम का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण ईश्वर का जगत के प्रति प्रेम है। ईश्वर ने हम सभी जीवो को लाखों प्रकार के पेड़-पौधे फल-फूल और खाद्य सामग्री दी है। हमारे जरूरत की प्रत्येक वस्तु दी है ताकि हम सुख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सके। यह ईश्वर का प्रेम ही है, ईश्वर हमारी छोटी बड़ी गलतीयों को माफ कर देते हैं और हमें सही मार्ग दिखाते हैं। हमें हर मुश्किल से निकालते हैं। यह ईश्वर का निस्वार्थ प्रेम ही है जिसे हम करुणा कहते है। इसी प्रेम के प्रभाव से सृष्टि के दो विपरीत लिंग वाले प्राणियों का शारीरिक संबंध स्थापित होता है। जिसके फलस्वरूप एक नए जीव का जन्म होता है। प्रेम के इस प्राकृतिक प्रक्रिया के द्वारा ईश्वर सृष्टि का सृजन करते हैं। एक मां अपने बच्चे को निस्वार्थ भाव से स्तनपान कराती है जिसे हम ममता कहते हैं। एक शिष्य अपने गुरु की निस्वार्थ भाव से सेवा करता है इस प्रेम को हम श्रद्धा कहते हैं।
प्रेम के प्रभाव से ही सृष्टि के सभी मनुष्य एक दूसरे की सहायता करते हैं, एक दूसरे के जीवन में सहयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त प्रेम के और भी कई सारे रूप होते हैं, जैसे पति-पत्नी का प्रेम भाई-बहन का प्रेम, मित्र-मित्र का प्रेम या प्रेमी-प्रेमिका का प्रेम, परंतु इन सभी प्रेमों में जगह और वक्त के अनुसार से प्रेम का स्तर बदलता रहता है। हालांकि प्रेम तो वही रहता है बस उसके मायने बदल जाते हैं। परंतु निस्वार्थ प्रेम जहां रहता है वहां आनंद ही आनंद देता है। प्रेम के बिना जीवन का अस्तित्व ही निरस और अधूरा है।
जरा एक बार कल्पना कीजिए, क्या प्रेम के बिना जीवन संभव है, कदापि नहीं। इसलिए कहा जाता है कि प्रेम ही जीवन है। श्रद्धा, भक्ति, ममता, करुणा, और स्नेह ये सब प्रेम के वास्तविक स्वरूप है। और एक बात हमेशा याद रखें : वास्तविक प्रेम हमेशा निस्वार्थ होता है, स्वार्थ तो लोग उसमें जोड़ देते हैं। जो इस निस्वार्थ प्रेम को विकृत बना देता है।j
huthe pyaar ke side effect
अब हम विकृत प्रेम के बारे में समझते हैं। जिसका निर्माण मनुष्य के अज्ञान और स्वार्थ के द्वारा होता है। इस प्रेम का नाम है वासना। वासना प्रेम का विकृत स्वरूप है, इसलिए इस प्रेम से कामना, क्रोध दुख और निराशा उत्पन्न होते हैं। फिर इन्हीं भावनाओं के दुष्प्रभाव से अपराध और अधर्म का जन्म होता है जो मनुष्य को पतन की ओर ले जाता है। आज हमारे दुनिया में जो मानवीय भावनाओं का असंतुलन पैदा हो रहा है। उसका कारण है, निस्वार्थ प्रेम की कमी। समाजिक रिश्तो की तो बात ही छोड़िए, आजकल पिता-पुत्र में प्रेम की कमी है, भाई-बहन में प्रेम की कमी है, पति-पत्नी में प्रेम की कमी है, जो इस निस्वार्थ प्रेम की कमी का संकेत है। जो बचा-खुचा प्रेम है वह भी मनुष्य के स्वार्थ का शिकार हो गया है।
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Prem Ka Sahi arth | meaning of real love
इसलिए आजकल हर जगह प्रेम की शिकायत सुनने को मिलती है। कुछ लोगों को तो प्रेम के नाम से ही नफरत है, क्योंकि प्रेम का सही अर्थ तो किसी ने समझा ही नहीं है। प्रेम का सही अर्थ है निस्वार्थ भाव से किसी के प्रति अपना सर्वस्य समर्पित कर देना। अपने प्रेमी के हित और खुशी के लिए अपनी खुशियों का खुशी-खुशी त्याग कर देना। प्रेम जीवन देता है जीवन लेता नहीं है। प्रेम तो परमात्मा के समतुल्य पवित्र और महान है परंतु मनुष्य ने इस पवित्र और महान प्रेम को उसके स्तर से गिरा कर कामना और वासना तक ही सीमित कर दिया है। इसलिए आज यह स्वार्थी प्रेम हत्या और आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण बन गया है। जिस तरह इस स्वार्थी प्रेम का दुष्प्रभाव हमारे समाज में दिन- प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, वह निश्चित ही सृष्टि के विनाश का सूचक है। इसलिए अगर प्रेम करें तो निस्वार्थ प्रेम करें अन्यथा इस पवित्र प्रेम को दूषित ना करें।
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