
spiritual stories
मरघट बस्ती है या बस्ती मरघट। दोस्तों एक फकीर की यह आध्यात्मिक कहानी आपकी बंद आंखों को खोलने वाली है। दिल को छू लेने वाली यह बेहतरीन कहानी आपको जीवन और मौत की सच्चाई से अवगत कराएगी
spiritual story in hindi
एक गांव के बाहर दूर खेतों की ओर एक फकीर का झोपड़ा था। वह बीते कई वर्षों से अकेला ही उस झोपड़े में रहता था। एक दिन वह अपने झोपड़े के बाहर समाधिस्थ बैठा हुआ था। तभी उधर से कुछ मुसाफिर गुजरे और उन्होंने उस फकीर से पूछा-महात्मन, हमें बस्ती की तरफ जाना था लेकिन हम राह से भटक गए हैं। क्या आप हमें बता सकते हैं कि बस्ती की तरफ कौन सा रास्ता जाता है?
उस फकीर ने यात्रियों से पूछा- क्या सचमुच बस्ती की तरफ जाना चाहते हो या मरघट की तरफ।
फकीर की ये बात सुनकर एक मुसाफिर नाराज होते हुए बोला- कैसे आदमी हो तुम। हम कह रहे हैं कि हमें बस्ती की तरफ जाना है फिर तुम मरघट जाने की बात क्यों कह रहे हो।
फकीर ने कहा, मैं तुम्हारे प्रश्न से आश्वस्त हो जाना चाहता हूं ताकि मैं ठीक ठीक बता सकूं। क्योंकि कई लोग ऐसे हैं जो बस्ती को मरघट समझते हैं और मरघट को बस्ती। इसलिए मैंने पूछ लिया कि कहीं तुम भी तो उसी भूल में नहीं हो।
उन मुसाफ़िरों ने सोचा कि आज पता नहीं किस पागल फकीर से मुलाकात हो गई। परंतु उनके सामने दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था क्योंकि उस वक्त दूर-दूर तक कोई और दिखाई नहीं दे रहा था और सांझ भी ढलने को था इसलिए मजबुरन रास्ता उसी से पूछना पड़ा।
फकीर ने बताया कि यहां से एक मील आगे जाकर बायी ओर मुड़ जाना तुमलोग बस्ती में पहुंच जाओगे लेकिन ख्याल रहे दाहिने तरफ मत मुड़ना क्योंकि दाहिनी तरफ का रास्ता मरघट को जाता है।
वे लोग चले गए और करीब 3 किलोमीटर चलने के बाद वे एक मरघट में पहुंच गए। वे लोग तो बड़े हैरान और परेशान हुए। उनमें से एक मुसाफिर क्रोधित होते हुए बोला- मुझे तो पहले से ही उस आदमी पर शक था। पता नहीं, कैसा पागल आदमी है कि मरघट में पहुंचा दिया।
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फिर वे लोग गुस्से में वापस लौटे। वापस आए तो देखा फकीर आंख बंद किए ध्यान लगाए बैठा था। उनमें से एक यात्री जो बहुत गुस्से में था उसने फकीर पर चिल्लाते हुए बोला, तुम तो बड़े पागल मालूम होते हो हम बस्ती जाना चाहते थे और तुमने हमें मरघट में भेज दिया।
फकीर बोला- बहुत दिनों बाद मुझे आज खुद ही यह अनुभव हुआ है कि जिसको तुम बस्ती कहते हो,वह बस्ती नहीं है। वहां तो रोज कोई उजड़ता है वहां तो रोज कोई मरता है वहां तो रोज आना जाना लगा रहता है। फिर उसे मैं बस्ती कैसे कहूं। और जहां तक मरघट का सवाल है यहां तो जो लोग एक बार आते हैं, फिर कभी कहीं जाते नहीं। वे वहीं के वहीं बसे हुए हैं। इसलिए मैं मरघट को बस्ती कहता हूं और बस्ती को मरघट कहता हूं क्योंकि वहां तो लाइनें लगी हुई है आने जाने वालों की। एक आज मरता है तो दूसरा कल और तीसरा परसों। वहां तो रोज कोई ना कोई जरूर मरता है। तो जहां से रोज कोई ना कोई उजड़ जाता है उसे मैं बस्ती कैसे कहूं। मरघट से मैंने किसी को कभी कहीं जाते हुए नहीं देखा। यहां कभी कोई नहीं मरता, यहां से कभी कोई नहीं उजड़ता। यहां जो एक बार बस गया सो बस गया हमेशा के लिए। तो इसलिए मैं मरघट को बस्ती कहता हूं।
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दोस्तों पता नहीं उन मुसाफिरों को यह बात समझ में आई होगी या नहीं कि वह फकीर उनसे क्या कहना चाह रहा था। लेकिन हो सकता है कि यह बात आपकी समझ में आ जाए। इस बात को समझना जरा मुश्किल है लेकिन यह बात बिल्कुल सच है। हम जिसे बस्ती कहते हैं यह तो मरघट है यहां तो रोज हजारों लोग मरते हैं। आप जिस जगह पर खड़े हैं वहां पर हजारों बस्तियां बसी और उजड़ गई। आपको पता है आप जिस जगह पर खड़े हैं वहां पर हजारों लाशें दबी हुई है। इसी जमीन की एक-एक परतों में आपके बाप दादा,परदादा, और परदादा के भी परदादाओं की लाशें दबी हुई है और एक दिन आप आपके बेटे, पोते और परपोते भी मिट्टी की एक परत बन जायेंगे। इसलिए आप इस भूल में मत रहना कि आप किसी बस्ती में रहते हैं।
और आप जिसे जीवन कहते हैं वास्तव में तो वह निरंतर चलने वाली मृत्यु की एक प्रक्रिया है और यह प्रक्रिया मनुष्य के जन्म के साथ ही प्रारंभ हो जाती है और तब से मनुष्य रोज थोड़ा-थोड़ा मरता है। मृत्यु के दिन तो केवल उस प्रक्रिया की समाप्ति होती है। शायद आपको इस बात का एहसास भी नहीं होगा कि आपका शरीर सबसे बड़ा मरघट है आपके शरीर में हर दिन लाखों जीव मरते हैं और लाखों जीव जन्म लेते हैं। विज्ञान के अनुसार हमारा शरीर करोड़ों-अरबों जीवित कोशिकाओं से बना हुआ है और प्रतिदिन लाखों कोशिकाएं मरती हैं और लाखों पैदा होती हैं। अगर आप जरा ध्यान से सोचें तो पाएंगे कि आपके शरीर में कुछ भी स्थाई नहीं है। आपकी सोच, आपके विचार, आप की आकांक्षाएं सब कुछ निरंतर बदलती रहती है। भगवद्गीता गीता में भगवान श्री कृष्ण भी कहा है- जो आज तुम्हारा है वह कल किसी का था और परसों किसी और का हो जाएगा। क्योंकि परिवर्तन ही संसार का नियम है। अर्थात यह समस्त ब्रह्मांड एक स्वप्न के सदृश्य है। इस अनंत ब्रह्मांड में एक परमात्मा के सिवा और कुछ भी शाश्वत नहीं है।
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इसलिए आप इस भ्रम में ना रहे कि आपका जीवन नित्य, अखंड और अविनाशी है। आपका जीवन तो एक स्वप्न है, एक धोखा है, एक भ्रम है। और आप सारी उम्र इसी भ्रम में पड़कर इस मृत जीवन को हमेशा के लिए अपना बनाने की कोशिश करते हैं। आप इस मृत शरीर को जीवित समझ कर इसे सुख पहुंचाने की चेष्टा करते रहते हैं। सारी उम्र दौलत, शोहरत, पद प्रतिष्ठा, सुख-सुविधा,वासना, जवानी, ताकत, अहंकार इत्यादि को प्राप्त करने और इसे कायम रखने की चेष्टा करते रहते हैं। और इसी चेष्टा में आप चोरी, बेईमानी, स्वार्थ, घृणा, ईर्ष्या, छल-कपट, नफरत, दुराचार, दुर्व्यवहार और दुर्भावना से प्रेरित बुरे कर्म करते रहते हैं। लेकिन जरा सोचिए कि आप इन भौतिक चीजों के पीछे भागते भागते आखिर कहां पहुंचेंगे। आखिर में तो आपकी मंजिल मरघट ही होती है। आपका यह मृत शरीर आखिर में मरघट में पहुंच ही जाता है। और आपकी सारी उम्र की आपाधापी व्यर्थ ही साबित होती है। क्या इसी आपाधापी को आप जीवन कहते हैं।
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दोस्तों कहते हैं कि सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस चला आए तो उसे भूला नहीं कहते। आपके पास अभी भी समय है। इससे पहले की आपका ये नश्वर शरीर जीर्णावस्था प्राप्त हो जाए और आप निशक्त और निरूपाय हो जाएं। अभी से आप अपने अंतर्मन में उतर कर आत्मसाक्षात करे और जीवन की सच्चाई को खोजें। अपने भीतर मौजूद परमात्मतत्व को जानें, खुद को पहचाने और अपने अस्तित्व की उत्पत्ति को सार्थक बनाने का प्रयास करें। अन्यथा जिस दिन बुलावा आ गया उस दिन सिवाय पछतावे के कुछ हाथ नहीं आएगा।
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धन्यवाद 🙏
बिलकुल सही कहा आपने
Thanks itni acchi story maine aaj tak ni padhi