Paap kitne prakar ke hote hain|पाप कितने तरह के होते हैं ?
Paap ke prakar
दोस्तों हम सभी जानते हैं कि अच्छे कर्मों को पुण्य और बुरे कर्मों को पाप कहा जाता है और पाप करने वाले मनुष्य को कभी ना कभी अपने पाप कर्मों का फल किसी ना किसी अवस्था में भोगना ही पड़ता है फिर भी आजकल पाप करना मनुष्य के लिए एक आम बात हो गई है कई बार तो लोग अपने पाप कर्मों को भी पुण्य ठहराते हैं इस दुनिया में कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो जानबूझकर पाप कर्म करते हैं। परंतु अधिकतर लोग ऐसे हैं, जो अज्ञान की वजह से पाप कर्म करते हैं क्योंकि उन्हें ज्ञान ही नहीं है कि क्या पाप है, और क्या पुण्य है। और यदि उन्हें सही मार्गदर्शन मिल जाए तो वे पाप कर्मों से बच सकते हैं। और ये आर्टिकल भी विशेषकर उन्हीं लोगों के लिए है जो ईश्वर पर विश्वास करते हैं, और जो सच में पाप कर्मों से बचना चाहते हैं। तो सबसे पहले हमारा यह जानना जरूरी है कि वे कौन कौन से कर्म है, जो पाप की श्रेणी मेंं आते हैं और वे कितने प्रकार के होते हैं।
दोस्तों वैसे तो हमारे धर्म ग्रंथों में कई प्रकार के पाप बताए गए हैं लेकिन हमने उन सभी पापों को चार भागों में बांट दिया है, और वे इस प्रकार हैं :
पाप के प्रकार
(1)तनसा पाप
यानी जो पाप हम अपने तन के द्वारा करते हैं
जैसे चोरी डकैती करना, हिंसा करना, स्त्रियों से दुराचार करना या दुनिया के किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार से कष्ट पहुंचाना, तन से होने वाले पाप हैं। याद रखिए हरे भरे पेड़-पौधों को अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए काटना भी पाप है और इसी पाप के दंड स्वरूप में बाढ़, भूकंप, सुनामी और अकाल जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है।
(2)मनसा पाप
जो पाप हम केवल अपने मन में ही करते हैं
जैसे जैसे अपने मन में किसी के प्रति घृणा या ईष्या का भाव रखना, किसी प्राणी पर क्रोध करना, किसी स्त्री के लिए मन में बुरा विचार रखना या किसी का बुरा चाहना मन से होने वाले पाप हैं। कई बार हमारे मन में यही गलतफहमी रहती है कि केवल सोचने से कोई पाप नहीं लगता। जबकि यह भी एक बहुत बड़ा पाप है क्योंकि किसी भी मनुष्य के पतन की शुरुआत मन के बुरे विचारों से ही होती है।
(3) वचना पाप
यानी वचन से होने वाले पाप
अपने अप्रिय वचन से किसी को दुख पहुंचाना, असत्य बोलना, किसी की निंदा करना, चुगली करना, या किसी झूठा वादा करना वचन से होने वाले पाप हैं। और दुख की बात है ये है कि आजकल लोग इन पापों को अपनी छोटी सी गलती भी नहीं मानते। लेकिन एक बात हमेशा याद रखें कि पाप छोटा हो या बड़ा पाप होता तो पाप ही है, और उस पाप की सजा हमें किसी भी हाल में भोगना ही पड़ेगा।
(4)धनसा पाप
यानी धन से होने वाले पाप
जैसे अपने धन का दुरुपयोग करना, उसे जुआ, शराब और वेश्यावृत्ति जैसे बुरे कर्मों के लिए खर्च करना, अपने धन को केवल भोग विलास की वस्तु पर खर्च करना, यह सब धन से होने वाले पाप हैं। और यदि आप सोचते हैं कि अपनी मेहनत से अर्जित किए गए धन पर केवल आपका अधिकार है, आप उसे किसी भी तरह से अपनी मर्जी से खर्च कर सकते हैं, तो आप गलत हैं। क्योंकि जैसे हम अपनी सरकार को अपनी कमाई का एक हिस्सा टैक्स के रूप में देते हैं। उसी प्रकार इस प्रकृति का भी हम पर टैक्स बनता है क्योंकि जिस प्रकार हमारी सरकार हमारे लिए सड़क बिजली जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराती है। ठीक वैसे ही प्रकृति भी हमें वायु, जल, और अन्न हमारे लिए उपलब्ध कराती है। या यूं कहिए कि हमारी जरूरत का हर सामान हमें उपलब्ध कराती है। करना तो दूर हम लोग अपना पेट भी नहीं भर सकते इसलिए हमारा फर्ज बनता है सामाजिक विकास, जन कल्याण और प्राकृतिक संरक्षण हेतु भी खर्च करें और अपने मानव जीवन का कल्याण करें।
Great thought