पाप और पुण्य क्या होता है ?
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Paap aur punya |
पाप क्या होता है और पुण्य क्या होता है। अक्सर यह सवाल हमारे मन में तब आता है, जब हम किसी सत्संग प्रवचन में सुनते हैं या किसी धार्मिक पुस्तक में पढ़ते हैं कि हमें पाप नहीं करना चाहिए, और ज्यादा से ज्यादा पुण्य कर्म करना चाहिए,तो दोस्तों आज हम जानेंगे हैं कि पाप और पुण्य क्या है और हम कैसे पाप से बच सकते हैं और हमें ज्यादा से ज्यादा पुण्य कर्म क्यों करना चाहिए। हम सब जानते हैं कि हमारा शरीर पांच प्राकृतिक तत्वों से बना हुआ है, इसीलिए हमारा शरीर नश्वर है परंतु हमारी आत्मा परमपिता परमात्मा की ही एक अंश है इसलिए हमारी आत्मा अजर-अमर है यह कभी नष्ट नहीं हो सकती । अतः हम सब को समझ लेना चाहिए कि हम सब एक शरीर नहीं हैं बल्कि हम एक आत्मा है और हम जो माया और मोह रूपी शरीर और इस संसार को अपना समझ रहे हैं वास्तव में उस से हमारा कोई संबंध नहीं है, हमारा संबंध तो परमात्मा से है ।
पाप क्या है ॽ
जब कोई आत्मा अपने शरीर की इंद्रियों के बस में हो कर काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, और अहंकार, आदि पर आधारित कर्म करती है तो उसे पाप कहते हैं । जैसे झूठ बोलना, चोरी करना, अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का अहित करना, दूसरों की बुराई करना, किसी के साथ अन्याय करना, अत्याचार करना, अहंकार करना, इत्यादि बुरे कर्म पाप की श्रेणी में आते हैं । हमें अपने पाप कर्मों का फल इसी जन्म में या आगामी जन्मों में भोगना पड़ता है क्योंकि पाप क्रेडिट कार्ड की भांति है। जिसे हम पहले यूज़ करते हैं फिर बाद में ब्याज सहित उसका ॠण चुकाते हैं । पाप कर्म करने वाली आत्मा जन्म जन्मांतर तक जीवन चक्र के बीच मेंं झूलती रहती है । उसेेे बार-बार भिन्न-भिन्न जीव जंतुओं के रूप में जन्म लेना पड़ता है जब तक कि उसका उद्धार नहीं हो जाता।
पुण्य क्या है ॽ
जो आत्मा धर्म, नीति, सच्चाई, अच्छाई, दया, प्रेम, और इंसानियत, पर आधारित कर्म करती है उसे पुण्य कर्म कहते हैं । पुण्य कर्म ईश्वर को बड़े प्यारे होते हैं इसलिए वे पुण्य कर्म करने वाली आत्मा को उपहार स्वरूप सुख शांति आनंद और मृत्यु उपरांत स्वर्ग आदि प्रदान करते हैं इसलिए हमें ज्यादा से ज्यादा पुण्य कर्म करने की कोशिश करना चाहिए । ताकि हमारे जीवन में सुख-शांति समृद्धि,और आनंद आ सके। पर याद रहे, पाप की शैतानी शक्तियां हमारी इंद्रियों को बहला कर हमसे पाप करवाने का प्रयत्न करती है, इसीलिए हमे हमेशा सतर्क और जागृत रह कर अपना कर्तव्य पालन करना चाहिए ताकि हम पाप कर्म से बच सके और अपने मनुष्य जीवन का उद्धार कर सकें, क्योंकि हम बड़े भाग्यशाली हैं कि हमारी जीव रूपी आत्मा को मनुष्य जन्म मिला है ताकि हम पुण्य कर्मों द्वारा संसार के भाव सागर को पार करके जीवन चक्र से मुक्त हो कर सकें। क्योंकि यही एक तरीका है जिसके बल पर हम इस जन्म मरण रूपी बंधन से मुक्त होकर परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं।
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