motivational story in hindi |inspirational story in hindi
heart touching Motivational story
दोस्तों यह कहानी हाल में ही हुई एक सच्ची घटना पर आधारित है। ये कहानी है इंसानियत के एक ऐसे देवता की जो इस कोरोना काल में दुसरो की जान बचाते-बचाते खुद कोरोना का शिकार हो गया। आज यह महान इंसान हमारे बीच नहीं हैं परन्तु मरते-मरते यह इंसान लाखों लोगों के दिल में इंसानियत की एक ऐसी मशाल जला कर गया हैै, जो उसके जाने के बाद भी समाज को रोशन करती रहेगी। मुझे पूरा यकीन है कि इस कहानी को पढ़कर आपके भीतर की इंसानियत भी जागृत हो उठेगी। बहरहाल चलिए बिना देरी किए इस कहानी को पढ़ते हैं।
इंसानियत का देवता
आवाज कहीं दूर से आती हुई सुनाई पड़ रही थी। किशोर ने धीरे से अपनी पलकों को ऊपर सरकाया तो देखा कि उसके चेहरे पर आक्सीजन मास्क लगा हुआ था। अगले ही पल उसे याद आया कि कल रात दम घुटने से वह बेहोश हो गया था। दरअसल किशोर को पिछले 4-5 दिनों से सर्दी-खांसी और बुखार हो रहा था। उसने सोचा कि बदलते मौसम का प्रभाव है, एकाध दिन में उतर जाएगा। इसलिए उसने डाक्टर के पास जाने के बजाय मेडिकल स्टोर से ही कुछ मेडिसिन ले ली। परंतु लगातार छह-सात खुराक़ दवा लेने के बाद भी कुछ लाभ नहीं हुआ बल्कि तबीयत और बिगड़ती जा रही थी। अतः मजबूरन उसे अस्पताल में एडमिट होना ही पड़ा।
इन दिनों भारत में कोरोना का दूसरा लहर आतंक मचा रहा था। जिसके कारण वाराणसी शहर के भी सभी अस्पताल कोरोना मरीजों से भरे पड़े थे। ऐसे हालात में अन्य मरीजों के लिए बेड मिलना लगभग असम्भव था। लेकिन किशोर कोई साधारण आदमी नहीं था। वह शहर का हीरो था। उसके महान कार्यों की वजह से शहर का बच्चा-बच्चा उसके नाम से परिचित था। दरअसल किशोर एक स्वयंसेवी संस्था ऑल इंडिया रोटी बैंक का फाउंडर था। उसके संस्था का काम था, गरीब और भुखे लोगों को मुफ्त में भोजन मुहैया कराना। वह और उसके संस्था के बाकी सदस्य घर-घर जाकर भोजन एकत्र करते और जरुरतमंद लोगों के बीच ले जा कर बांट देते। फ़रवरी 2017 से शुरू हुआ रोटी बैंक का उनका यह अभियान विगत 3 वर्षो से निरंतर चला आ रहा था। तभी मार्च 2020 में कोरोना आ गया। जिसके कारण अब उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। क्योंकि कोरोना के बढ़ते संक्रमण के कारण सरकार ने पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया था। वाराणसी प्रशासन की गाड़ियां भी गली-गली घूमकर लाउड स्पीकर से ऐलान कर रही थी कि सब लोग अपने अपने घरों में रहे, कोई भी अनावश्यक रूप से घर से बाहर ना निकले।
परंतु किशोर कहां मानने वाला था उसके मन में बार-बार यहीं विचार आता कि इस लॉकडाउन में गरीबों को भोजन कहां से मिलेगा, वह बेचारे तो भूखे मर जाएंगे। यही सोच कर उसे रात भर नींद नहीं आती। आंखें बंद करता तो ऐसा लगता कि भूख से बेहाल हजारों लोग कातर निगाहों से उसकी तरफ एकटक देख रहे हो। उसकी अंतरात्मा बार-बार उस धिक्कारती कि बाहर लोग भूखे मर रहे हैं और तू आराम से सो रहा है। उसके दिल में इंसानियत के लिए जो करुणा थी, जो दर्द था, वह उसे चैन से सोने नहीं दे रहा था।
अंततः उसने फैसला कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए वह चुप नहीं बैठेगा। अगले दिन ही वह कलेक्टर साहब से मिला और उनसे अपना काम शुरू करने की अनुमति मांगी। कलेक्टर साहब किशोर के सामाजिक कार्यों से काफी प्रभावित थे परंतु उन्हें इस बात की चिंता भी थी कि कहीं वह भी कोरोना का शिकार ना हो जाए।
देखो किशोर हम तुम्हारी भावनाओं को समझते हैं। परंतु इस वक्त हालात बहुत खराब है। भगवान ना करे तुम्हें कहीं कुछ हो गया तो तुम्हारे परिवार का क्या होगा। कलेक्टर साहब ने समझाने की कोशिश की। किशोर ने कहा, कलेक्टर साहब ये पूरा शहर मेरा परिवार है और मेरे रहते अगर मेरे परिवार के लोग भूखे मर जाएं तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा। परंतु किशोर…..
“सर प्लीज” और अगर मुझे कुछ हो गया तो उसके लिए मैं खुद जिम्मेदार हूं। यह लीजिए किशोर ने टेबल में पड़े एक सादे कागज पर फटाफट एक नोट लिखा और कलेक्टर साहब के आगे सरका दिया। उसकी जिद के आगे आखिरकार कलेक्टर साहब को हार माननी ही पड़ी।
अगले चार-पांच महीनों तक लगभग यही रूटीन चलता रहा। सितंबर-अक्टूबर आते-आते कोरोना का कहर कुछ कम हुआ तो उसे थोड़ी राहत मिली। अब धीरे धीरे लोग अपने काम पर लौटने लगे थे। जिंदगी दोबारा अपनी रफ्तार पकड़ने लगी थी। बाजारों में फिर वही रौनक लौट आई थी। इधर उसके रोटी बैंक का अभियान भी बदस्तूर जारी था। सरकारों को यह भ्रम हो गया कि कोरोना अब वापस चला गया है। इसलिए राज्यों में चुनाव की घोषणा होने लगी। नेता-कार्यकर्ता बेधड़क रैलियां निकालने लगे। परंतु उन्हें इस बात कााजरा भी गुमान भी नहीं था कि उनकी यही गलती सब पर भारी पड़ने वाली थी। कुछ ही दिनों बाद कोरोना के मामले धीरे-धीरे फिर बढ़ने लगे। मार्च 2021 आते आते तो कोरोना के रिकॉर्ड मामले आने लगे। बल्कि अबकी बार तो कोरोना और भी ज्यादा भयानक रूप लेकर आया था। इधर पिछले साल की तरह इस साल भी किशोर पूरे समर्पण के साथ गरीबों को भोजन उपलब्ध कराने में जुटा रहा। उसके दिल में मानवता की सेवा का जज्बा इस कदर भरा हुआ था कि दिन-रात के भाग-दौड़ से थक कर चूर हो जाता किंतु चेहरे पर जरा सी शिकन नहीं आती। परंतु उसका शरीर भी तो आखिर मिट्टी का ही बना हुआ था। अनियमित खानपान और भागदौड़ ने आखिरकार उसके शरीर को बिमार कर ही दिया।
पहले तो उसने इसे गंभीरता से नहीं लिया परंतु जब दिक्कतें ज्यादा बढ़ने लगी तो उसे अस्पताल में एडमिट होना ही पड़ा। डॉक्टर्स ने जांच करने के बाद बताया कि उसे टाइफाइड हो गया है। पिछले 2 दिनों से वह अस्पताल के बेड पर पड़ा हुआ था। बेड पर पड़े पड़े वह फेसबुक पर लाइव आया और लोगों को को कोविड-19 से सतर्क रहने की सलाह दी। उसने अपने साथियों को यह भी संदेश दिया कि उसकी गैरमौजूदगी में कोई भी दरिद्र नारायण भूखा ना रहे।
वह बिहार के सासाराम जिले के एक छोटे से गांव में अपने मध्यवर्गीय परिवार के साथ खुशी-खुशी रहता था। वह बचपन से ही काफी दयालु और नेक दिल इंसान था। दूसरों की मदद करने में वह हमेशा आगे रहता है। इसी चक्कर में कई बार घर के जरूरी काम भी भूल जाता था। जिसके कारण कभी-कभी उसे पापा की डांट भी खानी पड़ती थी। किशोर शूरू से ही पढ़ाई में काफी अव्वल था इसलिए ग्रेजुएशन करने के बाद तुरंत ही उसकी नौकरी हैदराबाद की एक बड़ी कंपनी में लग गई। वहां उसने कुछ वर्षों तक नौकरी की। लेकिन जब नौकरी में उसका मन नहीं लगा तो वह अपने गांव वापस लौट आया। अपने गांव में रहकर वह सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगा। एक दिन की बात है। वह अपने घर के पीछे बने छोटे से गार्डन में सब्जियों के पौधों में पानी दे रहा था। तभी अचानक से उसके पेट में इतना तेज दर्द उठा कि उसके मुंह से चीख निकल गई। वह वहीं जमीन पर पेट पकड़ कर बैठ गया और कराहने लगा। उसके परिजन आनन-फानन में उसे अस्पताल ले कर भागे। अस्पताल में डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड करने के बाद बताया कि उसके आंतों में ट्यूमर है। किशोर को याद आया कि डॉक्टर की बात सुनकर उसकी मां कितना रोई थी। किशोर ने ही मां को चुप कराया था और दिलासा दिया था कि चिंता मत कर मैं ठीक हो जाऊंगा। डॉक्टर ने फौरी राहत के लिए कुछ दवाएं लिखी और सुझाव दिया कि इस शहर में ट्यूमर का सही इलाज उपलब्ध नहीं है इसलिए बेहतर होगा कि आप बनारस जाकर अपना इलाज कराएं। किशोर एक शिक्षित युवक था। वह समझ गया कि डॉक्टर साहब ठीक कर रहे हैं। अतः वह बनारस के एक अच्छे हॉस्पिटल में अपना इलाज कराने लगा।
वहां के इलाज से किशोर धीरे-धीरे ठीक होने लगा। लेकिन दिक्कत यह थी कि उसे बार-बार सासाराम से बनारस अप-डाउन करना पड़ता था। और चुंकि इलाज लंबा चलना था तो डॉक्टर ने उसे बनारस में ही रहने की सलाह दी। किशोर को भी डॉक्टर की बात अच्छी लगी क्योंकि लगातार सफर के दौरान उसे भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। इसीलिए उसने बनारस में ही एक किराए का रूम ले लिया और अपना इलाज कराने लगा।
“ओए किशोर” यह दिन सुबह बनारस स्टेशन के पास टहल रहा था तभी पीछे से किसी ने उसे नाम लेकर पुकारा। इस अनजान शहर में मेरा नाम लेकर पुकारो वाला कौन हो सकता है किशोर ने पूछे मुड़कर देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। उसके बचपन का दोस्त रोशन कमर पर दोनों हाथ रखे धीमे-धीमे मुस्कुरा रहा था। यार तू यहां क्या कर रहा है” रोशन ने किशोर से हाथ मिलाते हुए पूछा। किशोर ने संक्षेप में सारी बातें बता दी। साले तू इतने दिनों से यहां है और मुझे एक कॉल तक नहीं किया। रौशन ने शिकायती लहजे में कहा, कॉल कैसे करता है यार मेरे पास तुम्हारा नंबर नहीं था। किशोर ने हंसते हुए बताया। ठीक है चल रूम पर चलते हैं। कहते हुए रोशन ने बहस खत्म की और दोनों रोशन के रूम पर आ गए। बातचीत के दौरान रौशन ने बताया कि वह बीएचयू में पढ़ाई करता है और साथ-साथ कुछ बच्चों को ट्यूशन भी कराता है। यार तू मेरा एक काम करेेगा, अचानक रोशन को कुछ याद आया। मैं परसो एक महीने के लिए गांव जा रहा हूं, क्या तुम मेरी जगह मेरे स्टूडेंट्स को पढ़ा देगा प्लीज यार, रोशन ने मिन्नत की। किशोर भी खाली समय में बोर हो जाता था इसलिए उसने सोचा चलो ठीक ही है इसी बहाने समय भी कट जाएगा और थोड़ी कमाई भी हो जाएगी। चलो ठीक है, किशोर ने हामी भर दी। उसके बाद उन्होंने इधर-उधर की बातें की और नाश्ता करके वहीं पर सो गए।
रौशन के गांव जाने के बाद किशोर उसके छात्रों को ट्यूशन पढ़ाने लगा। वह काफी मेहनती और कर्मठ इंसान था। उसके मार्गदर्शन में बच्चों का शैक्षिक विकास तेजी से होने लगा। अभिभावकों भी उसके पढ़ाने का तरीका काफी पसंद आया। अतः उसके क्लास में छात्रों की संख्या बढ़ने लगी और अब उसे अच्छी आमदनी होने लगी। इसी दौरान उसने देखा कि बहुत से बच्चे जिनकी उम्र पढ़ने की है, वे काम कर रहे हैं। कुछ बच्चे अपने पिता के साथ चाट-पकौड़ी के ठेले पर काम कर रहे हैं और कुछ बच्चे आसपास के अमीर घरों में झाड़ू पोछा कर रहे हैं।यह देखकर किशोर को बहुत दुख हुआ। उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि इन वह मासूम बच्चों के भविष्य को तबाह नहीं होने देगा। अगले ही दिन वह कुछ बच्चों के अभिभावकों से मिला और उनको बच्चों के भविष्य के बारे में जागरूक किया। उसने यहां तक कहा कि आपके बच्चे के पढ़ाई का खर्च मैं उठाने को तैयार हूं। आप बस उन्हें पढ़ने के लिए भेजें। उसकी बातों से कुछ लोग काफी प्रभावित हुए और अपने बच्चों को उसके पास पढ़ने के लिए भेजने लगे। अब उसके कोचिंग क्लास में बच्चों की संख्या ज्यादा होने के कारण जगह कम पड़ रही थी। अतः उसके एक और बड़ा सा रूम किराए पर ले लिया और गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने लगा। किशोर ने अपने कोचिंग सेंटर के आगे एक बड़ा सा बोर्ड लगवाया जिस पर लिखा था। पैसे कि हम करे ना बात, बस शिक्षा ही हमारा प्रयास। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाने लगी और उसके पास बड़ी संख्या में बच्चे पढ़ने के लिए आने लगे। अब वह अधिकांश समय व्यस्त रहने लगा इसलिए उसने अपने गांव से अपनी मम्मी पापा को भी अपने पास रहने के लिए बुला लिया।
एक दिन शाम को वह बनारस के लंका घाट पर घूमने के लिए गया। वहां उसने देखा कि एक विक्षिप्त व्यक्ति डस्टबिन में फेंकी हुई रोटियां निकाल कर खा रहा है। ऐसा हृदय विदारक दृश्य देखकर किशोर की आंखों में आंसू आ गए। उसकी आंखों के सामने वह दृश्य आ गया जब शादी और पार्टियों में लोग सैकड़ों लोगों का भोजन बर्बाद कर देते थे। हे भगवान! क्या इंसान को यह दिन भी देखना पड़ता है। यह सोचकर उसका दिल रो पड़ा। किशोर वहां से सीधा घर आया और अपनी मां से बोला- मां मुझे एक टिफिन में खाना चाहिए। मां जब पूछा कि किसके लिए तो किशोर ने सारी बात बता दी। मां ने एक टिफिन में चावल दाल और सब्जी निकाल कर दे उसे दिया। किशोर ने टिफिन उठाया और उस विक्षिप्त व्यक्ति को जाकर खाना खिला दिया। भूख मिटते ही उस व्यक्ति के चेहरे पर एक चमक सी आ गई। वह मुंह से बोल तो नहीं सकता था मगर उसकी आंखों में कृतज्ञता के भाव साफ दिखाई दे रहे थे। एक भूखे को भोजन कराकर किशोर ने को ऐसा अद्भुत आनंद प्राप्त हुआ जो वह शब्दों में बयां नहीं कर सकता था।
कुछ देर सोच-विचार करने के बाद किशोर ने निश्चय कर लिया कि इसके भोजन की व्यवस्था करना अब मेरी जिम्मेदारी है। अगले दिन जब वह भोजन ले कर जा रहा था तो रास्ते में उसने देखा कि और भी काफी लोग भूखे बैठे हैं। और केवल एक टिफिन से इन सब को भोजन नहीं कराया जा सकता था। अतः सबको भोजन कराने के लिए उसने होटल से खाना खरीद कर लाना पड़ा। मगर इतने लोगों की भूख मिटा कर उसे बड़ा ही सुकून मिला। अब वह रोजाना समय निकालकर इन असहाय लोगों को भोजन कराने लगा। किशोर की मां भी काफी दयालु स्वभाव की महिला थी। उन्होंने कभी भी उसे भोजन देने से मना नहीं किया। हां उन्होंने एक बार बस इतना ही कहा कि वह इतना सारा रोटी नहीं बना सकती। किशोर के मन में बचपन से ही समाजसेवी बनने की की आकांक्षा थी। वह हमेशा से ही अपने देश और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की बात सोचा करता था। और सौभाग्यवश उसे यह मौका मिल गया था। अब तो उसने निश्चय कर लिया है कि उसके रहते कोई भी आदमी भूखा नहीं सोएगा। उसी रात उसने अपने फेसबुक प्रोफाइल को किशोर कांत तिवारी से बदलकर रोटी बैंक कर दिया। अब उसके जीवन का केवल एक ही उद्देश्य था, भूखे-प्यासे लोगों की भूख मिटाना।
बनारस जैसे बड़े शहर में गरीब और भूखे लोगों की संख्या कोई कम न थी। और इतने सारे लोगों को भोजन कराना किसी एक व्यक्ति के लिए मुमकिन नहीं था। इसीलिए उसने अपने कुछ परिचितों और दोस्तों से मदद मांगी। जिसमें से कुछ लोगों ने तो मना कर दिया परंतु कुछ लोग सहर्ष तैयार हो गए। अब किशोर और उसके साथी घर-घर जाकर रोटियां इकट्ठा करते और शहर के गरीबों में बांट देते। यही उनका रोज का काम था। किशोर 25 वर्ष का हो चुका था मगर उसने अभी तक शादी नहीं की थी। उसके मम्मी पापा और दोस्त जब उससे शादी की बात कहते तो वह हमेशा एक ही बात कहता। “अगर मैंने शादी कर ली तो इन गरीब लोगों की सेवा नहीं कर पाऊंगा।
कहते हैं कि इस दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है बस उनमें पहल करने की हिम्मत नहीं होती। धीरे-धीरे उनके इस मुहिम में और भी लोग जुड़ने लगे। अब तो कुछ अच्छे लोग कॉल करके शादीयों और पार्टियों में बुलाने लगे। जहां से उन्हें काफी सारा भोजन मिल जाता था। उसके महान कार्यों को देख कर लोगों में इंसानियत की भावना जागृत होने लगी और देश-विदेश के लोग भी उनकी मदद के लिए आगे आने लगे। अब काफी लोग धीरे-धीरे उनकी संस्था से जुड़ने लगे। इसी बीच कोरोना आ गया। लेकिन मानवता के प्रति किशोर के जज्बे को कोरोना का भय भी ना रोक सका। वह इस महामारी के बीच बीच सड़कों पर, अस्पतालों में लोगों को भोजन पहुंचाता रहा। मार्च 2020 में आए कोरोना के पहले लहर में तो वह बच गया था परंतु काफी एहतियात बरतने के बावजूद भी मार्च 2021 में आए कोरोना के दूसरे लहर में वह बच नहीं पाया और कोरोना का शिकार हो गया।
आह!
सीने में उठे तेज दर्द ने उसे ख्यालों से बाहर निकाल दिया। “जैसी आपकी मर्जी प्रभु” उसने भगवान भोले शंकर को याद किया। ख्यालों से बाहर निकाल कर उसने गहरी सांस लेनी चाहिए लेकिन उससे घुटन सी महसूस हो रही थी। ऐसा लग रहा था कि उसके फेफड़ों में सांस खींचने की भी शक्ति नहींं बची थी। एकाएक उसे महसूस हुआ कि शायद उसका अंत समय आ गया है। किशोर ने एक बार फिर से भगवान भोले शंकर को याद किया और उसकी सांसे हमेशा के लिए रुक गई। इंसान का देवता इस दुनिया को छोड़ कर जा चुका था। डॉक्टरों ने जब उसके चेहरे से ऑक्सीजन मास्क हटाया तो हैरान रह गए क्योंकि उसके चेहरे पर मौत के भय की जगह एक सुकून भरी मुस्कान खिली हुई थी।
आज किशोर कांत तिवारी भले ही हमारे बीच में नहीं है लेकिन उन्होंने इंसानियत की एक ऐसी मिसाल पेश की है जो हमारे देश के युवाओं को हमेशा इंस्पायर करता रहेगा।
Very informative and good Article.. Keep it up
bhut achi story bna te he