महिला सशक्तीकरण का असली सच- international women’s day 2021

 अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष लेख| international women’s day message in hindi

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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रति वर्ष 8 मार्च को एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नारी जाति को उनके निष्ठा, त्याग, समर्पण और परिवार-समाज के उन्नति में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मान, प्रशंसा, प्यार और आभार व्यक्त किया जाता है। देश-विदेश के सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा महिलाओं के सम्मान में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वेद पुराणों और इतिहास की किताबों से नारी शक्ति पर आधारित काव्य-कविताएं ढूंढ कर निकाली जाती है। महिला दिवस के अवसर पर नेताओं और जनप्रतिनिधियों द्वारा जोरदार भाषण दिया जाता हैं तथा महिला सशक्तीकरण पर जोर दिया जाता है। परंतु सच कहूं तो यह मात्र एक दिखावा है वास्तविकता ठीक इसके उलट है। कहने को तो नारी सृष्टिकर्ता की सर्वोत्तम कृति होती हैं और सर्वथा पुज्य होती है। परन्तु उनके साथ अत्याचार, शोषण, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज हत्या, छेड़खानी, अशिक्षा, रंगभेद, लिंग भेद आदि न जाने कितनी समस्याएँ आज भी समाज को बुरी तरह जकड़े हुये है। जो काफी चिंता जनक है। इसलिए आज हम महिलाओं के इन्हीं समस्याओं पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर भाषण

“बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” यह नारा आजकल सबसे ज्यादा प्रचलित है। लेकिन यह बात केवल पढ़ने में अच्छी लगती है। इस नारे की पोल अल्ट्रा साउंड सेंटरों में जाकर खुल जाती है। जहां अवैध रूप से भ्रूण का लिंग परीक्षण कराया जाता है। जहां बच्चे की रिपोर्ट देखते ही मां-बाप के चेहरे का रंग बदल जाता है। अगर इस प्रश्न को छोड़ भी दें तो इससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि क्या जो बेटियां बची हुई है, क्या वे खुश है? यकीनन इसका उत्तर होगा, नहीं! तो क्यों ना बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं का भाषण देने के बजाए बेटियों को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने का अभियान चलाया जाए। जब जब महिला सशक्तिकरण की बात आती है हम मदर टेरेसा, इंदिरा गांधी, झांसी की रानी, किरण बेदी, पीटी उषा, मैरी कॉम, साइना नेहवाल, और मिताली राज जैसी कुछ गिनी-चुनी सशक्त और प्रतिभाशाली महिलाओं का गुणगान करके खुश हो जाते हैं। मगर यह किसी ने सोचा है कि इनके अलावा 95% महिलाएं किन परिस्थितियों में जीवन गुजार रही है।

पुरुष में नारी है कैसे?

नारी के आदर और सम्मान की बात अब केवल धार्मिक ग्रंथों के पन्नों तक ही सिमट कर रह गई है। केवल सतयुग से लेकर त्रेतायुग तक ही संभवत: नारी जाति के लिए स्वर्णिम काल रहा है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में नारी को नर से श्रेष्ठ बताया गया है। इसलिए शंकरगौरी नहीं गौरीशंकर कहा जाता है। रामसीता नहीं सीताराम कहा जाता है। कृष्णराधे नहीं, राधेकृष्ण कहा जाता है। अर्थात नारी को नर से प्रथम स्थान दिया जाता है। हमारे त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने अपनी पत्नीयों को हमेशा अपने समकक्ष बैठाया है। उन्होंने नारी को शक्ति का स्वरूप, जगजननी, अर्धांगिनी एवं सहधर्मिणी आदि नामों से संबोधित किया है। उन्होंने हमेशा नारी को समाज में यथोचित सम्मान दिया है।

परंतु द्वापरयुग में नारी के अपमान और शोषण के जो विभिन्न तरीके निकल‌ कर सामने आएं। उसकी गुंज आज तक सुनाई दे रही है। मैंने सुना है कि प्राचीन काल में शंकराचार्य नामक बहुत बड़े विद्वान और तपस्वी हुए। जिन्होंने अपने रचनाओं में लिखा है कि नारी नरक का द्वार है। परंतु यह लिखते समय शायद वे भुल गए कि उनका जन्म भी एक नारी के कोख से हुआ हैैैै।

समाज में महिलाओं की वर्तमान स्थिति

तुलसीदास की एक रचना है, ढोल गवार शुद्र पशु नारी, यह सब तारण के अधिकारी। कैसी विडम्बना है कि महाकवि तुलसीदास जिन्होंने रामचरितमानस की रचना की है। जिसमें उन्होंने धर्म, नीति और न्याय पर अत्यंत उत्कृष्ट बातें लिखी हैं। परंतु उन्होंने ना जाने क्यों नारी के विषय में इतनी अशोभनीय बात लिखी है। शायद वे भूल गए कि वे ही कामवासना में वशीभूत होकर, काली अमावस रात में नदी में तैरते एक मुर्दे का सहारा लेकर अपनी पत्नी के मायके चले गए थे। जहां पत्नी ने उन्हें इस पागलपन के लिए उन्हें खरी-खोटी सुनाई और कहा कि जितना प्रेम आपको मेरे इस हाड़-मास के पुतले से है, उतना प्रेम अगर राम से हो जाता तो आप का कल्याण हो जाता।
वह भूल गए कि एक नारी ने ही उन्हें राम भक्ति के लिए प्रेरित किया था। इसके लिए तो उन्हें नारी जाति का कृतज्ञ होना चाहिए था। जिसने उन्हें एक तुच्छ मनुष्य से महाकवि बना दिया था। लेकिन पता नहीं किस नाराजगी की वजह से वे नारी को ताड़न के अधिकारी बना गए। उनके इस लेखन से समाज पर काफी दुष्प्रभाव पड़ा। जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि पुरुषों को महिलाओं को पीटने का, उनका शोषण करने का लाइसेंस मिल गया।

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इसी विकृत मानसिकता की वजह से समाज में महिलाओं को पुरुषों की पांव की जूती का दर्जा दिया जाता है। इसीलिए आज भी महिलाओं को छोटी-छोटी बातों पर पीटा जाता है। पढ़ी-लिखी की महिला हो या अनपढ़, घर में हो या बाहर हर जगह उन्हें केवल भोग की वस्तु समझा जाता है। इसी दूषित मानसिकता वाले लोग महिलाओं को माल, चीज और सामान जैसे बेहूदा नामों से संबंधित करते हैं।
आज भी महिलाएं अकेली घर से बाहर जाने से डरती है। क्या पता गली के किस मोड़ पर मन में गंदी सोच और निगाहों में वहशीपना लिए वासना के भुखे भेड़िए उन्हें नोचने के लिए तैयार बैठे हो।
निर्भया, प्रियंका और आसिफा जैसी न जाने कितनी नारियां इनकी शिकार हो चुकी है। ना जाने कितने महिलाओं के स्वाभिमान को एसिड के द्वारा निर्दयता से जला दिया जाता है। तलाक नाम के जहर से जाने कितनी महिलाओं की जिदंगियां तबाह हो चुकी है।

आज भी हमारे शहरों और गांवों की करोड़ों महिलाएं रूढ़िवादी सोच की बेड़ियों में जकड़ी हुई हैं। जिन्हें तोड़े बिना महिला सशक्तिकरण की बात करना ही बेमानी है। आधुनिकता के इस दौर में आज भी महिलाओं को घरेलू हिंसा, समाजिक हिंसा और शारीरिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है। आज भी हमारे समाज में दहेज के नाम पर महिलाओं को  आग में झोका जाता है। पति की मृत्यु के बाद आज भी महिलाओं को जिंदगी भर समाजिक कुरितियों की चक्की में पिसना पड़ता है। उनके प्रति सहानुभूति दिखाने के बजाय उन्हें विधवा, राण, कुलक्षिणी नरभक्षिणी‌ आदि नाम देकर जले पर नमक छिड़का जाता है।

महिला सशक्तिकरण का निष्कर्ष

अब आप ही बताइए कि कहां है महिला का सम्मान, कहां है महिला सशक्तिकरण।
देखिए हम मानते हैं कि हमारी ‌कानून व्यवस्था महिलाओं को सुरक्षा और उचित सम्मान दिलाने के लिए प्रयासरत हैं।‌ परंतु मंंजिल‌ अभी बहुत दूर है। क्योंकि हमने खुद अपनी आंखों से देखा है कि लोग महिला दिवस के दिन महिला सशक्तिकरण पर भाषण देकर आते हैं और घर आकर पत्नी को पीटते हैं। इसलिए जिस प्रकार सरकार ने पोलियो उन्मूलन का अभियान चला रखा है। उसी प्रकार महिलाओं के प्रति विकृत मानसिकता को भी जड़ से नष्ट करना होगा। क्योंकि हमारे समाज में फैली यह दूषित सोच कोरोनावायरस से भी ज्यादा खतरनाक है। इसलिए इसको जड़ से मिटाए बिना महिला दिवस मनाने का उद्देश्य पुरा नही होगा। और हां महिलाओं को भी अपने स्वाभिमान और सम्मान की रक्षा के लिए स्वयं आगे आना होगा। तो आइए हम संपथ ले कि हम संपुर्ण नारी जाति का सम्मान करेंगे और महिला सशक्तिकरण के अभियान को आगे ले जाएंगे।
आप सभी को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं। धन्यवाद
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