
Impossible
impossible. ऐसा तो हो ही नहीं सकता। It is impossible. ये बिल्कुल असंभव है। आपने अक्सर लोगों को ये कहते हुए सुना होगा। लेकिन यकीन मानिए, इस दुनिया में कुछ भी असम्भव नहीं है। इस आर्टिकल में हम आपको दुनिया के कुछ ऐसे पागल लोगों की short stories बताएंगे। जिन्होंने impossible को भी possible बना दिया है। इन real stories को पढ़ने के बाद आप भी ये कहने पर मजबूर हो जायेंगे कि nothing is impossible.
Dinesh neer
Impossible kuchh bhi nahin
हैरी एंड्रयूज 90 के दशक में ब्रिटिश ओलंपिक के कोच हुआ करते थे। उस समय उनका नाम विश्व के महानतम कोचो में लिया जाता था। सन 1903 में उन्होंने एक स्टेटमेंट दिया कि चार मिनट में एक मील दौड़ना इंसान के लिए बिल्कुल असंभव है। इंसान का शरीर कभी इतना कैपेबल हो ही नहीं सकता कि वह चार मिनट में एक मील यानी डेढ़ किलोमीटर की दूरी तय कर सकें। हैरी एंड्रयूज केवल ब्रिटेन में ही नहीं पूरे ओलंपिक जगत में वे एक बेहद सम्मानित व्यक्ति थे। अब जब इतना बड़ा आदमी कोई बात कह रहा है तो ऐसे तो नहीं कहा होगा। इसलिए उनके इस बयान को काफी समर्थन मिला। विश्व के कुछ जाने माने डाक्टर और वैज्ञानिक भी उनके इस बयान से सहमत थे। डाक्टरों का मानना था कि इंसान का दिल ब्लड को इतनी तेजी से पंप कर ही नहीं सकता। वैसे भी पिछले 200 सालों से कोई भी इस रिकॉर्ड को तोड़ नहीं पाया था। पिछले कई सालों से यह रिकॉर्ड 4 मिनट 15 सेकेंड पर आकर अटका हुआ था। कुछ एथलीटों ने तो सार्वजानिक रूप से इस बात को स्वीकार कर लिया था कि चार मिनट का बैरियर एक दिवार की तरह है। जिसे तोड़ा नहीं जा सकता। लेकिन एक सख्श था जो उनके इस बयान से सहमत नहीं था। उसका मानना था कि इंसान के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। नाम था ” रोजर बेनिस्टर‘। 6 सितंबर 1954 का दिन था। रोजर बेनिस्टर ने एक मील की दूरी 3.59 सेकेंड में तय करके ये साबित कर दिया कि सच में इंसान के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।
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रोजर बेनिस्टर ने सन् 1954 के ओलंपिक में हिस्सा लिया था। इस ओलंपिक के लिए उन्होंने लागातर 2 सालों तक कड़ी मेहनत की थी और पूरे देश को उनसे गोल्ड मेडल की उम्मीद थी। लेकिन वे इसमें हार गए और पांचवें स्थान पर रहे। इस हार के बाद वे बुरी तरह टुट गए। ओलंपिक से वापस आने के बाद उन्होंने दो महीनों तक खुद को एक कमरे में बंद कर लिया और सोचते रहे कि कि क्या उन्हें दौड़ना छोड़ देना चाहिए। इसी बीच उन्होंने टीवी पर हैरी एंड्रयूज का वह स्टेटमेंट देखा जिसमें उन्होंने कहा था कि चार मिनट के रिकॉर्ड को तोड़ना इंसान के लिए असंभव है। रोजर बेनिस्टर उस समय डाक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे और उन्हें यह बात तर्कहीन लगी कि जब इंसान एक मील की दूरी 4:15 सेकेंड में पूरा कर सकता है तो 4:00 मिनट में क्यों नहीं कर सकता। बस 15 सेकेंड का ही तो फासला है। इसलिए उन्होंने फैसला किया वे फिर से दौड़ेंगे और इस रिकॉर्ड को तोड़ कर रहेंगे। चार मिनट के रिकॉर्ड को तोड़ने के बाद उन्होंने अपने बयान में कहा कि उन्होंने यह दौड़ रिकॉर्ड तोड़ने के लिए नहीं बल्कि उस मानसिक अवरोध को तोड़ने के लिए लगाई है। जो कहता है कि इसे तोड़ पाना इंसान के लिए असम्भव है।और जैसा कि रोजर बेनिस्टर ने कहा था। वैसा ही हुआ। इस मानसिक अवरोध के टुटने के बाद अब तक सैकड़ों एथलीटों ने इस चार मिनट के रिकार्ड को तोड़ा है और वर्तमान में एक मील दौड़ने का रिकॉर्ड 3:43 सेकेंड है।
असंभव को भी संभव आपकी सोच बनाती हैं
संभव और असंभव दोनों बातें हमारी खुद के विश्वास पर निर्भर करती है। यदि हम सोचते हैं कि हम किसी लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं तो हमें उसे हासिल करने से कोई नहीं रोक सकता। रोजर बेनिस्टर को खुद पर विश्वास था कि वे इस रिकॉर्ड को तोड़ सकते हैं और उन्होंने उसे हासिल कर लिया। रोजर बेनिस्टर के अलावा हम आपको ऐसे सैंकड़ों उदाहरण दे सकते हैं जब इंसान ने असंभव को संभव कर दिखाया है। आज से पचास साल पहले लोग कहते थे कि चांद तक पहुंचना असंभव है। धरती से 3.84483 किलोमीटर। लोग कहते भी क्यों नहीं। दूरी ही इतनी हैं कि कोई मान ही नहीं सकता था कि वहां तक पहुंचा भी जा सकता है। लेकिन 20 जुलाई 1969 को इंसान ने इसे भी करके दिखा दिया। अब तो लोग चांद पर घर भी बनाने जा रहे हैं। अलेक्जेंडर ग्राहम बेल, ने जब लोगों से कहा कि वे एक ऐसी मशीन बनाने जा रहे हैं। जिससे हजारों किलोमीटर दूर किसी आदमी की आवाज सुनी जा सकती है। लोगों ने कहा, तूं पागल हो गया है क्या। ये कैसे हो सकता है, ये तो असंभव है। लेकिन कई सालों के रिसर्च और मेहनत के बाद उन्होंने इस असंभव को संभव कर दिखाया।
arunima Sinha story in Hindi
अरूणिमा सिन्हा के बारे में तो आपने सुना ही होगा। अरुणिमा सिन्हा (Arunima Sinha) पहली भारतीय विकलांग महिला है जिन्होंने माउंट एवेरेस्ट पर चढ़ाई की है। अरुणिमा सिन्हा ने एक ट्रैन हादसे में अपना एक पैर गंवा दिया था। लोगों ने कहा कि अब इस लड़की का जीवन बर्बाद हो गया। अब यह जीवन भर एक अपाहिज की तरह जीवन बिताएंगी। लेकिन अरूणिमा सिन्हा को यह मंजूर नहीं था कि लोग उन्हें बदनसीब और लाचार समझें और उस पर तरस खाऐं। उन्हें लाचारी और बेबसी की जिंदगी मंजूर नहीं थी। इसलिए उन्होंने फैसला कर लिया कि वह मांउंट एवरेस्ट पर विजय हासिल करेगी। लोगों को जब ये बात पता चली तो वे हंसने लगे और कहने लगे कि ये पागल हो गई है। जिस एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने के दौरान सैकड़ों जांबाज अपनी जान गंवा चुके हैं। उस दुर्गम और खतरनाक चोटी एक अपहिज लड़की कैसे चढ़ पायेगी। ये तो बिल्कुल असंभव है। परंतु अरूणिमा सिन्हा अपने फैसले से टस से मस नहीं हुई। उन्होंने चुनौतियों के आगे घुटने नहीं टेके और दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवेरेस्ट को फतह करके दिखा दिया कि अगर हौसले मजबूत हो तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता हैं।
दशरथ मांझी की कहानी
आपने दशरथ मांझी का नाम तो सुना ही होगा। दशरथ मांझी बिहार के गया जिले के गहलौर घाटी में रहते थे। गरीबी की वजह से वे प्रतिदिन पहाड़ी के उस पार मजदूरी करने जाते थे। उनकी पत्नी रोज पहाड़ को पार कर दशरथ मांझी के लिए खाना और पानी लेकर जाती थी। एक दिन खाना ले जाने के दौरान पैर फिसलने से उनकी पत्नी फगुनी देवी गिर गई। उस समय उनके गांव से शहर जाने के लिए कोई सड़क नहीं थी। लोगों को शहर जाने के लिए पुरी पहाड़ी को पैदल पार करना पड़ता था। इसी कारणवश उनकी घायल पत्नी को समय से अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका और इलाज में देरी से उनकी मौत हो गई। दशरथ मांझी अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे। पत्नी की इस दर्दनाक मौत से दशरथ मांझी को बहुत दुख हुआ। दुःख और गुस्से में उन्होंने उस पहाड़ी को काटकर रास्ता बनाने का निर्णय ले लिया। तत्पश्चात दशरथ मांझी 1960 से लेकर 1982 तक उस पहाड़ को छेनी और हथौड़ी से काटते रहे थे। वे रोज घर से सुबह निकलते, दिन भर पहाड़ काटते और शाम को घर वापस आ आते। दशरथ की जिद थी कि पहाड़ काटकर रास्ता बनाएंगे। उनके इस सनक की वजह से लोगों ने पागल तक करार दे दिया था। केवल एक छेनी और हथौड़े से इतने बड़े पहाड़ को काट कर रास्ता बनाना। सच में असंभव जैसा ही लगता था। लेकिन आखिरकार 22 साल तक अथक परिश्रम करने के बाद उन्होंने 25 फीट ऊंची, 30 फीट चौड़ी और 360 मीटर लंबी पहाड़ी काटकर सड़क बना डाली और असंभव को संभव कर दिखाया।
दोस्तो, और कितने उदाहरण दे। पूरी दुनिया उदाहरणों से भरी पड़ी है। राईट बंधु, आइंस्टीन, माईकल फेलिप्स, ब्रूस ली जैसे- सैकड़ों ऐसे लोग हैं जिन्होंने असंभव को संभव बनाया है। दोस्तों, असंभव शब्द केवल एक मानसिक अवरोध है। जिसने आपके दिमाग को लाॅक करके रखा हुआ है। सच तो यह है कि इस दुनिया में कुछ भी असम्भव नहीं है। आप जो चाहें वो कर सकते हैं। जो चाहें वो बन सकते हैं। बस इतिहास बदलने वाला हौसला और खुद पर अटूट विश्वास होना चाहिए। तो दोस्तों हमें पूरा विश्वास है कि हम जो संदेश आप तक पहुंचाना चाहते थे। वह आप तक पहुंच गया होगा। यदि आपको यह आर्टिकल पसंद आया हो तो इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ शेयर करें। और हां आप हमारा साथ Facebook, Instagram और YouTube के माध्यम से भी जुड़ सकते हैं।
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