मातृ दिवस पर विशेष| touching short stories on mother’s love
दोस्तों आज मातृ दिवस है और आज सारी दुनिया मां की ममता, त्याग, उदारता और सहनशीलता को याद करते उन्हें सम्मानित करती है। वैसे यह भी एक विडम्बना ही है कि जिस मां से मनुष्य का अस्तित्व है उसी मां को सम्मान देने के लिए मनुष्य के द्वारा सालभर में केवल एक निश्चित दिन का चुनाव किया जाता है। अरे मैं तो कहता हूं कि अगर साल के 365 दिन भी मातृ दिवस मनाया जाए तो भी मां के स्नेह त्याग, समर्पण और बलिदान के सम्मान में कमी रह जाएगी। खैर चलिए शुक्र है कि दौलत, शोहरत और सफलता के पीछे भागते मनुष्यों ने एक दिन के लिए ही सही मां को याद तो किया। दुर्भाग्यवश मैं भी उन्हीं मनुष्यों में से एक हूं परंतु मेरा सौभाग्य है कि मुझे हर दिन अपने मां के पावन चरणों की सेवा का अवसर प्राप्त होता है और मैं उन सौभाग्यशाली संतानों को प्रणाम करता हूं जो मां के चरणों की सेवा करके गर्व का अनुभव करते हैं। वैसे तो मेरा हर दिन मातृ दिवस है परंतु जब भी दुनिया मातृ दिवस मनाती है। मुझे मेरे बचपन की एक घटना याद आ जाती है और मेरा हृदय मां की ममता से भर जाता है। आज मैं पहली बार अपने अतीत की यादों को आपके साथ साझा कर रहा हूं ताकि आप भी अपनी मां की ममता का एहसास कर सकें।
मां के ममता की कहानी
बात उन दिनों की है जब मैं 9-10 साल का था। मैं बहुत शरारती और शैतान लड़का था। मेरी मां आज भी कहती हैं कि शायद ही कोई ऐसा दिन होता,जिस दिन दो-तीन जगहों से मेरी उलाहना नहीं मिलती थी। एक दिन की बात है मैं सुबह-सुबह स्नान करने के लिए चपाकल पर जा रहा था और अपने आदतानुसार बाल्टी को हवा में धोनी के हेलीकॉप्टर शॉट की तरह घुमाते हुए जा रहा था। तभी बाल्टी का निचला हिस्सा मेरे पीछे आ रही मेरी मां के मुंह पर जा लगा और मां के होंठों से खुन का फव्वारा छुट पड़ा। मां चीख कर वहीं बैठ गई और मैं पिटाई के डर से वहां से फरार हो गया। दिनभर मैं गांव के एक बगीचे में छिपकर अनजाने में हुई गलती के लिए पछताता रहा। शाम को अंधेरा होने पर मैं गांव में तो चला आया लेकिन घर नहीं गया। रात में खाने के समय मुझे न पाकर घरवालों को मेरी चिंता हुई तो वे मुझे ढूंढने निकले मगर मैं कहीं ना मिला और मिलता भी कैसे, मेरे छुपने की जगह मां के अतिरिक्त कोई नहीं जानता था। अचानक टार्च की रोशनी मेरे चेहरे पर पड़ी और मैं पिटाई की कल्पना से सहम गया। वो मां थी जो टार्च लिए मुझे पलंग के नीचे से बाहर निकलने को बोल रही थी। पलंग के नीचे से बाहर आते हुए मैं सोच रहा था कि आज तो छठ्ठी का दुध याद आ जाएगा। लेकिन ये क्या मां ने ना केवल पापा और भैया के मार से बचाया बल्कि अपने हाथों से खाना भी खिलाया क्योंकि मैं मारे शर्मिंदगी के खाना भी नहीं खा रहा था। उसी दिन मुझे मां की ममता, उदारता और सहनशीलता का एहसास हुआ । ऐसी ममता और सहनशीलता केवल और केवल एक मां में ही हो सकती है। मैंने उसी दिन ये तय किया कि जीवन में ऐसा पल कभी दुबारा नहीं आने दूंगा जिस पल मेरे द्वारा मेरी मां को कष्ट हो और ईश्वर गवाह है कि मैंने अपने जीवन का हर निर्णय मां की खुशी के लिए ही लिया है।
दोस्तों मां के ममता का मुल्य तो ईश्वर भी नहीं चुका सकते फिर हम तो मनुष्य हैं। मुझे आज भी बचपन के वे दिन याद है जब मेरी मां रात के खाने में गिनकर मिली हुई पांच रोटियों में से दो रोटी मेरे सुबह के नाश्ते के लिए रख देती थी। आज जब मैं सोचता हूं कि दिनभन मेहनत करने के बावजूद तीन रोटियों में मां का पेट कैसे भरता होगा तो बड़ी ग्लानि होती है। मां के इस उपकार का बदला शायद मैं सात जन्मों में भी ना चुका पाऊं। मां का यह निस्वार्थ प्रेम ही दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है और बड़े खुशनसीब है वे लोग जिन्हें ये दौलत मिली है। मां के आंचल के घने छांव में बैठकर जो सुकून मिलता है वह दुनिया में कहीं भी नहीं मिल सकता। महाभारत में युधिष्ठिर ने यक्ष के सवालों का जबाव देते हुए कहा था कि धरती से भी बड़ी मां है परंतु आज जब मैं जमीन के एक छोटे से टुकड़े के लिए किसी मां का अनादर देखता हूं तो सोचता हूं कि कितने बदनसीब है वे लोग जो अपने मां की ममता और त्याग को भूलकर उनका अपमान करते हैं। कितने अभागे है वे लोग जो जमीन-जायदाद के लिए अपने मां-बाप से मारपीट करते हैं। ऐसे लोगों के लिए तो मैं बस यही कहना चाहूंगा कि किसी भी परिस्थिति में अपने मां-बाप को कभी भी मत रूलाना वरना उनके आंसुओं का सैलाब तुम्हारे जीवन की खुशियों को बहा ले जाएगा।
अपने गुस्से को कैसे नियंत्रित करें
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