god is exist or not in hindi | ईश्वर है या नहीं, जानिए पुरी सच्चाई

ishwar hai ya nahin- god is exist or not in hindi

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श्वर अल्लाह गाॅड, भगवान या हम जिसे परमात्मा इत्यादि नामों से पुकारते हैं। वह कौन है‌, कैसा है और कहां रहता है। क्या ईश्वर है भी या नहीं। इस विषय पर आपने इंटरनेट पर कई आर्टिकल्स पढ़ें होंगे। कई सारे टीवी सीरियल देखे होंगे तथा कई धार्मिक पुस्तकें भी पढ़ी होंगी। लेकिन इस आर्टिकल में हम जो बात बताने जा रहे हैं। वह आपने ना कहीं पढ़ी होगी और ना ही इतने सरल शब्दों में आपको किसी ने समझाया होगा। और हां यहां जो बातें हम आपके साथ शेयर करने वाले हैं। उसे हमनें किसी धर्म ग्रंथ से नहीं लिया है। यह हमारी बौद्धिक समझ और आंतरिक अनुभूति पर आधारित हैं। हमे पता है कि आज हम जो बात बताने जा रहे हैं उस पर आपको आसानी से विश्वास भी नहीं होगा। परंतु यदि आपने हमारी बातों को गहराई से समझने की कोशिश की तो आपको हमारी बातों पर यकीन आ जाएगा ‌

 

ईश्वर का अस्तित्व

दोस्तों जब से इस पृथ्वी पर हम इंसानों के अस्तित्व का उदय हुआ है। तब से आज तक हमारे मन में एक प्रश्न बार-बार उठता है, आखिर हमलोगों को बनाया किसने। किसने इन सुरज चांद और सितारों को उर्जा प्रदान की। आखिर किसने इस अनंत ब्रह्माण्ड की रचना की। वैदिक काल से लेकर आज तक लाखों लोग धार्मिक, अध्यात्मिक और वैज्ञानिक विधियों से इस प्रश्न का उत्तर खोजने की कोशिश करते रहे हैं। परंतु उनमें है 0.1% लोग ही इस प्रश्न का उत्तर जान पाएं हैं। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, कबीर,जीजस और मुहम्मद जैसे लोग जिन्होंने ईश्वर को जाना है। वे स्वयं को मिटा कर ईश्वर में ही विलीन गए। उनके लिए ना तो कोई प्रश्न बचा और ना ही वे। फिर भी उन्होंने अपने अपने अंतर्ज्ञान और अनुभव के आधार पर कई सारे ग्रथ लिखें। उन्होंने मानव कल्याण के लिए जगह-जगह उपदेश देकर बाकी लोगों को भी रास्ता दिखाने की कोशिश की। परन्तु अज्ञानता और नासमझी के कारण लोग उनके इशारे को समझ ना सकें। हम इंसानों की एक बहुत पुरानी आदत है। हम समझते भी वहीं है जो हम समझना चाहते हैं। इसलिए हम सब ने अपनी अलग-अलग धारणा बना ली। हमने अपने अपने अलग-अलग ईश्वर चुन लिया। जिसके फलस्वरूप संसार में अनेक प्रकार के धर्म संप्रदाय पैदा हो गए। हिंदू धर्म के लोग राम-कृष्ण, विष्णु अथवा शिव को ईश्वर मानने लगे। मुस्लिम धर्म के लोगों ने अपना एक अलग ईश्वर चुन लिया और उसे अल्लाह का नाम दे दिया। इसी प्रकार सिख, पारसीईसाई, बौद्ध, और जैनियों ने अपना-अपना ईश्वर चुन लिया। सब ने अपना अलग-अलग धर्म स्थान बना लिया और अपने ईश्वर को अपना रुप देकर उनकी पूजा करने लगे। आज अगर हम देखें तो दुनिया में लगभग 300 धर्म हो चुके हैं और सब अपने अपने तरीके से ईश्वर की खोज में लगे हुए हैं। परन्तु आज भी ईश्वर का अस्तित्व एक रहस्य बना हुआ है। परंतु सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इसी उलझन में आज सभी धर्म दूसरे के दुश्मन हो चुके हैं और सदियों से आपस में मार-काट कर रहे हैं।
 

ईश्वर की खोज

दोस्तों संयोगवश हम बचपन में ही अकेलेपन और डिप्रेशन के शिकार हो गए। जो हमें खुद को जानने और ईश्वर से जुड़ने में मददगार साबित हुआ। चुंकि हम जिज्ञासु होने के साथ-साथ धार्मिक स्वभाव के भी थे। इसलिए हम अकेले में हमेशा इन्हीं बातों पर मंथन करते रहते थे कि ईश्वर है या नहीं और यदि है तो कौन है ईश्वर ? कैसा है और कहां रहता है? ये जीवन क्या है? मृत्यु क्या है? और यह दुनिया कितनी बड़ी है? आज जो बात हम आप को समझाने की कोशिश कर रहे हैं वह बात हमें 14 साल की उम्र में ही समझ में आ गई थी। जब हमने सभी धर्मों को एक-दूसरे से लड़ते देखा तब हम समझ गए कि कहीं कोई गड़बड़ जरूर है। जब हमने महसूस किया कि धर्म के ठेकेदार लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं। जब हमने देखा कि हमेशा पुजा-पाठ में व्यस्त रहने वाले लोग ही सबसे ज्यादा अधर्म कर रहे हैं तो हमें उनके ईश्वर पर शक हुआ। इसलिए हमने मंदिर-मस्जिद जाना और पूजा पाठ करना सब बंद कर दिया और सत्य की खोज शुरू कर दी। हमने बचपन में ही अपने नाम के आगे से अपने जाति का टाइटल हटाकर “नीर” लगा दिया। क्योंकि नीर का अर्थ होता है और पानी और पानी का कोई धर्म या जाति नहीं होती। हमने जाति धर्म और समाज द्वारा बनाए गए सभी परंपराओं और अंधविश्वासों को तोड़ने की कोशिश की। जिसकी वजह से लोग हमें नास्तिक समझते हैं।‌ लेकिन हम समझ गए थे कि सत्य वह नहीं है जो लोग समझते हैं इसलिए हम बरसों से जीवन और ईश्वर की खोज में लगे हुए हैं। इसी खोज के दौरान हमें कुछ अद्भुत और अविश्वसनीय अनुभव हुए हैं। जिन्हें हम आपके साथ शेयर करना चाहते हैं। अब हम जो बात बताने जा रहे हैं। उसे आप ध्यान से पढ़िएगा और समझिएगा।

ईश्वर है या नहीं है?

दोस्तों आपमें से कुछ लोग राम को ईश्वर मानते होंगे तो कुछ लोग मोहम्मद को तो कुछ लोग बुद्ध को। लेकिन आपको शायद यह जानकर विश्वास नहीं होगा कि उनमें और हममें जरा भी भेद नहीं है। जिस ईश्वर को हम मंदिरों मस्जिदों चर्चों और गुरूद्वारों में ढूंढते हैं। वह हमारे अंदर ही है। ईश्वर कोई और नहीं बल्कि हम ही हैं। अब इससे भी बड़ी बात समझिए। यहां हम शब्द का प्रयोग भी उचित नहीं है क्योंकि हम का अर्थ होता है। अहंम का एहसास। जो हम को सबसे अलग-थलग कर देता है। परन्तु यहां कुछ भी अलग नही है। ये पेड़ पौधे,जीव जंतु, कीड़े मकोड़े और इस ब्रह्माण्ड में जितने भी मेटेरियल्स, केमिकल्स और एनर्जी है। वह सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इन सभी को मिला कर जो माला बनती है। वहीं ईश्वर है। ईश्वर सागर है और हम सब उसकी लहरें हैं। जो मनुष्य परमात्मतत्व को उपलब्ध हो जाता है। उसके लिए सुख-दुख लाभ हानि अपना पराया सब मिट जाता है। क्योंकि वह जानता है कि सब कुछ मैं ही हूं और सब मेरा ही है। इस अनंत ब्रह्माण्ड में जितने भी चीजें हैं। वह सब एक ही हैं। उनमें जरा भी भेद नहीं है। भले ही उनके गुण-दोष अलग-अलग हैं परन्तु वस्तुत: सब एक ही हैं। ईश्वर कोई अलग व्यक्ति नहीं है बल्कि यह प्राकृति ही ईश्वर है। जिसमें हम सभी शामिल हैं। ईश्वर कोई सरकार नहीं है। जो इस सृष्टि को चलाती है। ईश्वर नियम है। हमारे वैज्ञानिकों ने वो सात नियम खोज लिए हैं। जिनके अनुसार इस ब्रह्माण्ड का संचालन हो रहा है। ईश्वर कोई शक्ति नहीं है बल्कि एक उर्जा है। इस ब्रह्माण्ड में उर्जा के सात रुप है। जिनसे इस अनंत ब्रह्माण्ड निर्मित हुआ है। और आपको ये जानकार हैरानी होगी कि वह सातों ऊर्जाएं हमारे शरीर के 7 तलों पर स्थित है। ये ऊर्जाएं इतनी शक्तिशाली है कि इनसे एक नया ब्रह्मांड निर्मित‌ किया जा सकता है। इन्हीं शक्तियों के द्वारा हम अपने जैसे एक नये जीव को पैदा कर पाते हैं। इन्हीं शक्तियों के द्वारा हमारे विचार और भावनाएं प्रकट होती है। और इन्हीं शक्तियों के बल पर हम नए-नए आविष्कार कर पाते हैं। अध्यात्म जगत में इसे कुंडलिनी कहा जाता हैं। अगर कोई व्यक्ति इन सातों ऊर्जाओं को जागृत कर ले तो वह समस्त ब्रह्माण्ड को नियंत्रित कर सकता है।
 

गीता के अनुसार ईश्वर की परिभाषा

हमारे धर्म ग्रंथों में लिखा गया है की ईश्वर सृष्टि के कण-कण में है। लेकिन सत्य तो यह है कि सृष्टि का कण-कण ईश्वर है। इसके अतिरिक्त और कोई भी चीज नहीं है। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखा कर यहीं बात समझाने की कोशिश की थी कि यह अनंत ब्रह्माण्ड मैं ही हूं। मुझ से कोई भी चीज अलग नहीं है। साथ ही यह भी कहा था कि मेरा ना तो कोई रूप है और ना कोई नाम है। यह बात कृष्ण ने इसलिए कहा था क्योंकि उन्होंने अपने परमात्मतत्व को जान लिया था। वेदों में ईश्वर के संबंध में जो बात लिखी गई है वह भी इसी तरफ इशारा करती है। लेकिन यदि हम हमारी बातों को मान कर बैठ जाए तो बहुत बड़ी गलती हो जाएगी। क्योंकि हम ईश्वर है। यह मान लेना काफी नहीं है। जब तक हम इसे जान नहीं लेते हम अपने ईश्वरीयता को अनुभव नहीं कर पाएंगे। यदि हम भी अपने परमात्मतत्व को जान ले तो हमें भी अपने ईश्वरीय स्वरूप का ज्ञान हो जाएगा। लेकिन हममें से अधिकतर इंसान इस सृष्टि के पांच विषयों रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द में इस कदर उलझे हुए हैं कि अपने परमात्मतत्व को जानना तो दूर की बात ‌है। हम अपने आत्मतत्व को भी नहीं जानते। हम तो ये भी नहीं जानते कि हम कौन हैं, क्या हैं और क्यो हैं। और जब हम स्वयं को ही नहीं जानते तो अपने अस्तित्व के सबसे गहरे तल में छुपे उस ईश्वरीय स्वरूप को कैसे जानेंगे। हमने तो नाम, खानदान, जाति, धर्म और पद जैसी झुठी पहचान बना ली है। हममें से अधिकांश लोग सुख, शांति, शक्ति और ज्यादा से ज्यादा मोक्ष पाने के लिए उत्सुक होते हैं और इन्ही चीजों से संतुष्ट भी हो जाते हैं। परन्तु हममें से कुछ गिने-चुने लोग ही होते हैं, जो स्वयं को और अपने वास्तविक स्वरूप अर्थात ईश्वरीयता को प्राप्त कर पाते हैं।
हमारे और बुद्ध, महावीर, कृष्ण और राम के बीच बस फर्क इतना ही है कि उन्होंने अपने अंदर के ईश्वर को जान लिया है और हम अपने ईश्वरीय होने से अनजान हैं।
यदि हम बुद्धि, विवेक, ज्ञान और ध्यान के स्वयं को जान ले तो हम देर-सवेर ईश्वर को भी जान जाएंगे।
अब आपमें से कई लोगों के मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि जब दुनिया में सब-कुछ झुठ है तो मैं सफलता-असफलता या अमीर बनने के लिए क्यों कहता हूं। इसका कारण यह है कि गरीबी इस आध्यात्मिक सफर में सबसे बड़ा रोड़ा है। आप खुद सोचिए कि एक गरीब आदमी को जीवन भर रोटी और पैसे कमाने से फुरसत ही नहीं मिलेगी तो वह आत्मा-परमात्मा के बारे में कैसे सोचेगा। ओशो ने एक बार कहा था कि मैं अमीरों का गुरु हूं। वह इसलिए कहा था कि एक गरीब इंसान जीवनभर आर्थिक तंगी से परेशान रहता है। और बिना इस सब चीजों से मुक्त हुए वह स्वयं को नहीं जान सकता।
 
 और हां अब आप ये मत सोच लेना कि हमने ईश्वर को जान लिया है। यह इतना आसान नहीं है। लेकिन हमें अपने अंदर ईश्वरीय शक्ति का आभास होता है। एक बार हम ध्यान के इतने गहरे तल में उत्तर गए थे कि हम अपने शरीर से बाहर निकल गए थे। उसके बाद हमने जाना कि हम कौन हैं और हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है। कभी-कभी हमें अपने पुनर्जन्म की झलकियां भी दिखाई देती हैं। परन्तु अभी भी हमें लगता है कि हम कुछ नहीं जानते। इसलिए अभी हमें बहुत सारी चीज़ें जाननी है। हम इतना तो हम समझ गए हैं कि ये जीवन एक सपना है और हमें इस सपने से बाहर निकल कर अपने मंजिल तक पहुंचना है। हम जान चुके हैं कि हममें और आपमें कोई फर्क नहीं है इसलिए हम चाहते हैं कि आप भी इस सफर पर जरूर निकलें।
 
 
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