fear of death|मृत्यु के भय से मुक्ति
fear of death
कोरोना महामारी की वजह से आजकल प्रतिदिन हजारों लोगों की मौत हो रही है। महामारी के इस दौर में हर तरफ मौत ही मौत दिखाई दे रही है। जिधर जाओ उधर किसी के मरने की ही चर्चा चल रही है। पता नहीं कब कहां से किसकी मौत की खबर आ जाए। ऐसे में आपके मन में भी मौत का भय उत्पन्न होना स्वाभाविक है। मौत से आखिर किसको डर नहीं लगता। परंतु हमारा मानना है कि हमें मरने से बिल्कुल नहीं डरना चाहिए। और हमे मौत से क्यों नहीं डरना चाहिए यह साबित के लिए हम आपको मौत से जुड़े कुछ ऐसे सच से रूबरू कराएंगे। जिसको जानने के बाद आपके अंदर से मौत का भय हमेशा के लिए निकल जायेगा। इस आर्टिकल में हम आपको बतायेगें के मौत क्या होती है और मनुष्य मरने से क्यों डरता है। इस आर्टिकल में हम ये भी बतायेगें कि आप मौत यानी मृत्यु के भय से छुटकारा कैसे पा सकते हैं।
मृत्यु से भय |fear of death
मृत्यु एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही हमारे अंदर एक अजीब सा भय उत्पन्न हो जाता है। मृत्यु का नाम सुनते ही हमारे अंदर एक अजीब सी बेचैनी, एक अजीब सी घबराहट होने लगती है। इसलिए हम मृत्यु का नाम भी नहीं सुनना चाहते। कोई अगर गलती से भी मृत्यु का नाम ले ले तो हम उसे तुरंत चुप करा देते हैं। कहते हैं कि ये क्या अशुभ बातें करते हो यानी हम मृत्यु को अशुभ शब्द मानते हैं। इसलिए हमने मृत्यु को कुछ अच्छे नाम दे रखे है। जब कोई मरता है तो हम कहते हैं कि फलाने आदमी का स्वर्गवास हो गया। फलाने आदमी का देहांत हो गया अथवा फलाना आदमी अल्लाह को प्यारा हो गया। यानी सीधे-सीधे मृत्यु का नाम लेने में हमको डर लगता है। क्योंकि हममें से कोई भी इंसान मरना नहीं चाहता। हालांकि इस सत्य से हर कोई वाकिफ हैं कि
मृत्यु से छुटकारा पाना संभव नहीं है। जन्म लिया है तो एक दिन मरना भी पड़ेगा।
मृत्यु अवश्यंभावी है। लेकिन फिर भी हम सब इस सत्य को झुठलाने की कोशिश में लगे रहते हैं। फिर भी मृत्यु का भय साये की तरह हमारे पीछे लगा ही रहता है। हम रात दिन देखते रहते हैं कि हमारे आसपास रोजाना सैकड़ों लोग मर रहे है। बल्कि हम खुद ही उन्हें श्मशान घाट में जला कर आते हैं। लेकिन अपनी मौत की कल्पना करने से भी हमको डर लगता है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर
मृत्यु है क्या और
मनुष्य को मरने से डर क्यों लगता है।
क्या मृत्यु के भय से छुटकारा पाया जा सकता है। आईए जानते हैं।
मृत्यु क्या है |what is death
दोस्तों हममें से अधिकांश लोग यहीं समझते है कि जन्म और मृत्यु दोनों अलग-अलग बातें हैं। जन्म को हम अच्छी चीज मानते हैं मौत को बुरी चीज। इसलिए हमारे समाज में जन्म होने पर खुशी मनाई जाती है लेकिन मृत्यु होने पर शोक मनाया जाता है। परंतु सच्चाई यही है कि जन्म और मृत्यु दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हम किसी शरीर में जन्म लेते है तभी उस शरीर के नष्ट होने की प्रक्रिया भी शुरू हो जाती है। मृत्यु तो बस उस प्रक्रिया का अंतिम चरण होता है। अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो हमारा शरीर अरबों जीवित कोशिकाओं को मिला कर बना हुआ है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि हमारे शरीर में प्रतिदिन अरबों कोशिकाएं नष्ट होती है और उसके स्थान पर अरबों कोशिकाएं जन्म ले लेती है। हमारे जन्म से लेकर मौत तक निरंतर यहीं प्रकिया चलती रहती है। अर्थात हमारा शरीर प्रतिदिन नष्ट होता है और प्रतिदिन जन्म लेता है।
यह ठीक वैसे ही ही जैसे पेड़ से रोज सुखे पत्ते गिरते हैं और उसके स्थान पर नये पत्ते निकल आते हैं। परंतु एक निश्चित अवधि के बाद धीरे-धीरे एक समय ऐसा आता है जब कोशिकाएं नष्ट तो होती है लेकिन हमारा शरीर नई कोशिकाओं को पैदा करने में सक्षम नहीं होता। और जब नई कोशिकाएं पैदा नहीं होती तो हमारा शरीर जीर्ण अवस्था में पहुंच जाता है। जो जीवन शक्ति को धारण करने में समर्थ नहीं होता। ऐसे में हमारे शरीर के सभी अंगों में जो जीवन शक्ति फैली हुई होती है। जिसे हम
आत्मा कहते हैं वह सिकुड़ कर बाहर निकल जाती है। इसी अवस्था को हम मृत्यु कहते हैं। यह ठीक वैसे ही है जैसे बाती से तेल के सुख जाने पर दीपक स्वत: ही बुझ जाता है। यदि अध्यात्मिक दृष्टिकोण की बात करें तो भी हमारा शरीर हमारा नहीं है। यह प्रकृति के पांच तत्वों पृथ्वी, अग्नि,वायु,जल और आकाश से मिल कर बना है। जो एक निश्चित अवधि के उपरांत पुनः उन्हीं में विलीन हो जाता है। अर्थात हमारा शरीर प्रकृति से लिया गया एक उधार है जो एक दिन हमें लौटाना पड़ता है। और जो चीज हमारी है ही नहीं उसके लिए भयभीत होना या शोक करना किसी प्रकार से भी उचित नहीं जान पड़ता। इस प्रकार से देखा जाए मृत्यु को विशेष घटना नहीं है। यह प्राकृति की एक बेहद साधारण सी प्रक्रिया है।
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हम मरने से क्यों डरते हैं|Why are we afraid of dying?
तो अब सवाल ये उठता है कि जब मृत्यु या मौत इतनी साधारण बात है तो हमलोग मौत से इतना डरते क्यूं है। इसका बस एक ही कारण है, कि हम मौत को नहीं जानते। हम मौत से इसलिए डरते हैं क्योंकि हम मौत को तो जानते नहीं जीवन को भी नहीं जानते। हम मृत्यु इसलिए भयभीत होते हैं क्योंकि हमारे जीवन में एक खालीपन है। हम जीवन के पूर्णता में नहीं उतर पाए हैं। दरअसल हमारा संपूर्ण जीवन शरीर और मन के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है। हम अपने शरीर और मन के मोह में इस कदर खो जाते हैं कि हम स्वयं को जान ही नहीं पाते। हम उस परम सत्ता को जान ही नहीं पाते जो शरीर और मन से परे है। जो ना कभी पैदा होती है और ना कभी नष्ट होती है। हम उसे पहचान ही नहीं पाते जो वास्तव में हम है। हम अपने अस्तित्व को ही जानने से वंचित रह जाते हैं। हम उस आनंद से वंचित रह जाते हैं जो हमारा वास्तविक स्वभाव है।
अज्ञानवश हम अपनी पहचान बस उन्हीं चीजों से जोड़ लेते हैं जो हमारे शरीर और मन से संबंधित है। हमारा शरीर, हमारा मन, हमारा परिवार, हमारा धन हमारी पहचान बस इन्हीं चीजों से जुड़ी होती है। और इन्हीं सांसारिक चीजों के पीछे भागत-भागते हम अपना संपूर्ण जीवन नष्ट कर देते हैं। हालांकि यह बात सभी जानते हैं कि इस संसार से कुछ भी हमारा नहीं है। लेकिन हम इस कदर बेहोशी में जी रहे हैं कि सब कुछ जानते हुए भी हम इन्हीं चीजों को अपना सबकुछ मान बैठे हैं। संसार की इन क्षणभंगुर सुखों के प्रति हमारे मोह के कारण ही हमे मौत से डर लगता हैं। हमे लगता है कि मौत हमसे इन सब चीजों को छीन लेगी। हमारे मन में मौत की इतनी दर्दनाक और भयानक छवि बैठ चुकी है कि हम मौत की कल्पना करने से भी डरते हैं। मौत को हम अपना दुश्मन मान बैठे हैं। मौत की कल्पना करते ही हमारे मन में दुःख-दर्द और शोक उभर आता है। और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमें ना मौत का पता है और ना जीवन का। इसलिए हम ना जीवन का आनंद लें पाते हैं और ना मौत का आनंद लें पाते हैं। परंतु जिन लोगों ने जीवन और मौत का रहस्य जान लिया है। जिन्होंने स्वयं को जान लिया है उन्हें ना तो जीवन से मोह होता है और ना मौत का भय। उनके जीवन मे भी आनंद बरसता है और मौत में भी आनंद की ध्वनि गुंजती है। वे जीवन और मौत दोनों को साक्षी भाव से देखते हैं।
मृत्यु के भय से मुक्ति|how to overcome the fear of death
अब अगला सवाल ये है कि आखिर
मृत्यु के भय से छुटकारा कैसे पाएं तो इसका एकमात्र उपाय है,
ध्यान के द्वारा अपने भीतर उतर कर स्वयं को जान लेना। इसके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है जो हमें मृत्यु के भय से छुटकारा दिला सकें। हम चाहे कितना भी
गीता और
रामायण का पाठ कर ले। हमे मृत्यु केे भय सेे छुटकाराा नहीं मिल सकता। क्योंकि शास्त्रों से हमें केवल जानकारी मिल सकती है, आत्मज्ञान नहीं मिल सकता। हम चाहे कितना भी रट लें कि आत्मा अमर है। हमारी आत्मा नहीं मरती हमारा शरीर मरता है। लेकिन कहने से क्या होता है मृत्यु का भय तो फिर भी लगा ही रहता है। इसी भय से मुक्त होने के लिए हम पूजा पाठ करते हैं। दान-पुण्य करते हैं। मृत्यु के बाद स्वर्ग की कल्पना करते हैं परन्तु भय से मुक्ति नहीं मिलती क्योंकि
मृत्यु के भय से मुक्ति तभी संभव है जब हम जीवन-मरण के परम सत्य को जान लें। मृत्यु के भय से मुक्ति तभी संभव है जब हम उस परमात्म तत्व को प्राप्त कर लें जिसको पाने के बाद और कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता। चुंकि हमने तो उसे पाया ही हुआ है लेकिन हम इस मायारूपी संसार में आकर उसे भुल चुके हैं। इसलिए जरूरत है तो बस उसे जानने की। जिस दिन हमने उसे जाऩ लिया उसी दिन हम मृत्यु के भय से मुक्त हो जायेंगे।