दुख से मुक्ति कैसे मिले | दुख से छुटकारा कैसे पाएं
dukh dur karne ke upay
काम, क्रोध, लोभ मोह अहंकार, मन के ये पांचों विकार मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु है। मनुष्य के जीवन में सभी दुख इन्हीं के द्वारा उत्पन्न होते हैं। मनुष्य को इन पांचों विकारों से छुटकारा पाने की चेष्टा करनी चाहिए। हमारे साधु महात्मा और धर्म गुरु सदियों से यहीं बात दोहराते आ रहे हैं। लेकिन आप खुद सोचिए कि अगर ये इतना ही आसान होता तो विश्वामित्र, वशिष्ठ और परशुराम जैसे महान तपस्वी और इन्द्र, वरुण, कुबेर इत्यादि देवतागण इनसे मुक्त क्यों नहीं हो पाए। हां ये बात सच है कि बुद्ध, महावीर और कबीर जैसे कुछ महापुरुषों ने मन के इन विकारों पर विजय प्राप्त कर ली थी। लेकिन उसके लिए उन्हें संसार से नाता तोड़ना पड़ा था। जो शायद हम और आप नहीं करना चाहते। और बिना संन्यास धारण किए इनसे पूरी तरह छुटकारा पाना संभव नहीं है। हां इन्हें अपने वश में जरूर किया जा सकता। और इस आर्टिकल में आप यहीं जानेंगे कि कैसे आप अपने अंदर के इन पांचों विकारों को नियंत्रित करके अपने जीवन के दुखों से मुक्त हो सकते हैं।
सुख और दुख
सबसे पहले तो हम समझते हैं कि सुख और दुख क्या है। देखिए परिवर्तन संसार का नियम है। जिसके कारण हमारे जीवन में दिन-रात, सर्दी-गर्मी, धुप-छांव और अनूकूल-प्रतिकूल परिस्थितियां आती रहती है। जो प्राकृति के संतुलन के लिए आवश्यक है। वैसे भी यदि जीवन में ये सारे बदलाव ना हो तो जीवन का आनंद ही समाप्त हो जायेगा और जिंदगी बोझिल सी हो जायेगी। जरा विचार किजिए, कड़े धुप से गुजरे बगैर आप छांव का आनंद कैसे अनुभव कर सकेंगे। बिना भुख के आप भोजन का आनंद कैसे ले पाएंगे। किंतु धैर्य और सहनशीलता की कमी होने की वजह हम इन बदलावों से शीघ्र ही परेशान और दुखी हो जाते हैं। दरअसल विज्ञान की प्रगति ने हमें इतना आलसी, आरामतलबी और कमजोर बना दिया है कि हम मौसमी बदलावों को भी सहन नहीं कर पा रहे हैं। परंतु आपको ज्ञात हो कि ईश्वर ने आपके शरीर को कुछ इस प्रकार से निर्मित किया है कि यह धीरे-धीरे सभी प्रकार की परिस्थितियों के अनुसार ढल जाती है। इसलिए हमें समझ लेना चाहिए कि हमारे दुःख का कारण ये परिवर्तन नहीं बल्कि हमारा महत्वाकांक्षी स्वभाव है। यदि हम गहराई से अपने जीवन का निरीक्षण करें तो पायेंगे कि दुख कहीं होता नहीं है यह केवल एक मानसिक स्थिति है। जो हमारे विचारों से बनता है। अर्थात हमारे मन की असिमित इच्छाएं और अनियंत्रित भावनाएं ही हमें दुखी करती है। हमारे मन के ये पांचों विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार अनियंत्रित होकर हमारे दुःख का कारण बनती है। और यदि हम योग-साधना और अभ्यास के द्वारा अपने मन को काबू कर ले तो जीवन के सभी दुखों से छुटकारा पा सकते हैं। तो आइए अब हम बारी बारी से इन पांचों विकारों के बारे में समझते हैं।
काम के कारण होने वाला दुख
काम का अर्थ होता है कामना।
हम अपने मन में कई प्रकार की कामनाएं करते हैं। जैसे-
धन की कामना,
किसी काम में सफलता पाने की कामना,
किसी स्त्री को पाने की कामना या
परिवार समाज में सम्मान और प्रशंसा पाने की कामना। हम अपनी कामनाओं को पूरा करने के लिए अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार प्रयत्न भी करते हैं। और जब हमारी कामनाएं पूरी हो जाती है तो हमें सुख का अनुभव होता हैं परंतु कभी-कभी कामनाएं पूरी नहीं होती क्योंकि हमारी जो कामनाएं होती हैं वह प्राकृत के नियमों के विपरीत होती है। और जब हमारी कामनाएं पूरी नहीं होती तो हमें दुख का अनुभव होता है। लेकिन हमें समझना चाहिए कि ईश्वर ने सृष्टि के संचालन के लिए प्राकृति के कुछ नियम बनाए हैं। जो पृथ्वी के सभी जीवो और पदार्थों पर समान रूप से लागू होती है। और यदि हम उन नियमों के अनुरूप अपने जीवन को ढाल लें तो तो
जीवन के,99% दुखों से छुटकारा पा सकते हैं। उन नियमों में से एक है संतुलन। इसी संतुलन के सिद्धांत पर
पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति काम करती है। इसी संतुलन के सिद्धांत पर सृष्टि के सभी तारे और ग्रह अपने अपने अक्ष पर घूम रहे हैं। हमारे कहने का अर्थ है कि हमें अपने कामनाओं और वासनाओं पर पर्याप्त संतुलन बनाए रखना चाहिए। हमें अपने जीवन की बुनियादी जरूरतों के अनुसार कामनाएं और आकांक्षाएं तो करनी चाहिए परन्तु किसी भी चीज की आकांक्षा हद से ज्यादा नहीं करनी चाहिए। चाहे वह कोई भी चीज क्यों ना हो और चाहे वह चीज आपको कितनी ही प्यारी क्यों ना हो। अन्यथा यह निश्चित रूप से आपके दुख का कारण बनेगी।
क्रोध के कारण होने वाले दुख
क्रोध वास्तव में एक क्षाणिक आवेग होता है। जो काम और अहंकार से पैदा होता है। जब हमारी कामनाएं पूरी नहीं होती या कोई हमारे अहंकार को ठेस पहुंचाता है तो हमारे मन में क्रोध उत्पन्न होता है।
क्रोध एक अग्नि के समान होती है जिसे यदि हम दबाते है तो हमें भीतर से जलाती है और जब हम इसे बाहर निकालते है तो हमारी दुनिया को जलाती है। क्रोध हमारे बुद्धि और विवेक को हर लेती है इसलिए क्रोध के क्षणों में हम जो भी निर्णय लेते हैं, वचन बोलते हैं या कर्म करते हैं वह अक्सर अनुचित और मुर्खतापूर्ण होती है जिसके कारण हमे वर्तमान और भविष्य में काफी दुख उठाना पड़ता है। परंतु यदि हम क्रोध को नियंत्रित कर ले तो हां अपने क्रोध को भी उपयोगी बना सकते हैं। क्योंकि सृष्टि के दूसरे नियम के अनुसार हर चीज में नकारात्मक और सकारात्मक दोनों गुण होते हैं। इस नियम के अनुसार सृष्टि की हर चीज अच्छी भी है और बुरी भी है। यानी जो चीज हमारे लिए अच्छी होती है वह एक सीमा के बाद हमारे लिए बुरी हो जाती है। उदाहरण के तौर पर, आग हमारे जीवन के लिए अत्यंत जरूरी है। इसी आग से हमें ऊर्जा भी मिलती है। हमारे सर्दी भी दूर होती है और हम भोजन भी पकाते हैं। परंतु जब नियंत्रण से बाहर हो जाती है तो यह हमारे लिए विनाशक बन जाती है। उसी प्रकार क्रोध हमारे लिए लाभदायक भी है और हानिकारक भी। हमारे जीवन में कई बार ऐसी परिस्थिति आती है जब क्रोध करना हमारे लिए अनिवार्य हो जाता है। तो यहां हमारे कहने का अर्थ है कि जहां न्याय और अन्याय के बात हो जहां धर्म और अधर्म की बात हो वहां पर क्रोध जरूर करना चाहिए। परंतु छोटी-छोटी बातों पर क्रोध करके हमें अपनी उर्जा को बर्बाद नहीं करना चाहिए।
लोभ के कारण होने वाले दुख
लोभ का अर्थ होता है लालच। यानी अपनी जरूरत से अधिक पाने की इच्छा करना अथवा अपने अधिकार से ज्यादा पाने की इच्छा। लालच को सभी बुराईयों का जड़ भी कहा जाता है। क्योंकि लगभग सारी बुराइयां लालच से ही उत्पन्न होती है। लालच के वश में आकर हम स्वार्थी हो जाते हैं और हम हमेशा केवल अपना लाभ ही देखते हैं जिससे दुसरो की हानि होती है और प्रकृति के नियमों के अनुसार हमें किसी ना किसी हाल में उसके नुकसान की भरपाई करनी होती है। इस प्रकार लालच में हमें तुरंत लाभ तो मिल जाता है लेकिन बाद में उससे भी ज्यादा नुकसान होता है। जिसके कारण हमें दुख उठाना पड़ता है। हालांकि थोड़ा-बहुत लोभ रखना भी बुरा नहीं है। लेकिन आवश्यक से अधिक लोभ हमारे दुख का कारण बन सकता है इसलिए हमें आवश्यकता से अधिक लोभ नहीं करनी चाहिए तथा
संतुष्ट और
संतोषी जीवन बिताना चाहिए।
मोह के कारण होने वाले दुख
हमें सबसे ज्यादा दुख का अनुभव तब होता है जब हमारा कोई प्रिय व्यक्ति या कोई वस्तु हमसे दूर हो जाती है। जैसे
किसी अपने की मृत्यु का दुख,
प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी या मां बाप से जुदाई का दुख, धन संपत्ति या मान सम्मान की हानि का दुख। ये सभी दुख मोह के कारण होते हैं। मोह के दुख से बाहर निकलने के लिए हमें भगवान
श्री कृष्ण की एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए
भगवद्गीता में भगवान
श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो आज तुम्हारा है वह कल किसी और का था और परसों किसी और का हो जाएगा। इसलिए हमें यह बात समझ लेनी चाहिए की सृष्टि में कोई भी चीज हमारी नहीं है और कोई भी चीज सदा के लिए नहीं रहने वाली, हर चीज नश्वर है जो एक न एक दिन नष्ट हो जाएगी। अतः हमें किसी भी चीज से हद से ज्यादा मोह नहीं रखनी चाहिए।
अहंकार के करण होने वाले दुख
अहंकार का अर्थ होता है,
घमंड। यानी खुद को दुसरो से बलवान, बुद्धिमान या श्रेष्ठ समझना। अहंकार वास्तव में एक भ्रम होता है, जो कभी ना कभी टुट जाता है और जब भ्रम टुटता है तो हमारे अहंकार को चोट लगती है। जिसके कारण हमें दुख होता है।हर चीज की एक हद होती होती है, एक सीमा होती होती है। और एक सीमा से आगे बढ़ने अच्छी से अच्छी चीज भी आपके लिए दुखदाई हो जाती है। उदाहरण के लिए, दूध को अमृत माना जाता है परंतु यदि आप उसका आवश्यक से अधिक सेवन कर ले तो वह आपके लिए जहर का काम करेंगी। इसी प्रकार अहंकार भी एक हद तक हमारे लिए बुरा नहीं है क्योंकि
स्वाभिमान अहंकार का ही एक रूप है। और स्वाभिमान हमें हमारे शक्तियों से रूबरू कराता है हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। लेकिन हमें अहंकार और स्वाभिमान के बीच का अंतर पता होनी चाहिए।
इस प्रकार यदि हम जीवन में हर चीज का एक संतुलन बनाएं रखें तो 99% दुखों से मुक्त हो सकते हैं। लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि आपके जीवन में कभी दुःख के क्षण नहीं आयेंगे। जरूर आयेंगे लेकिन आपको अपने स्वभाव को इतना सकारात्मक बनाना पड़ेगा कि इस पर सुख या दुख का कोई असर नहीं पड़ेगा। भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो हुआ अच्छा हुआ जो हो रहा है वह भी अच्छा हो रहा है और जो होगा वह भी अच्छा होगा। इसलिए अगर जीवन में कभी भी आपके साथ कुछ बुरा हो जाए तो निराश ना हो क्योंकि हो सकता है किस बुराई में कोई अच्छाई भी छुपी हो। दुनिया में वही लोग खुश रहते हैं जो जीवन के हर फैसले में संतुष्टि और संतोष का भाव रखते हैं वरना दुखी रहने वाले लोग दुखी होने का कोई ना कोई बहाना ढूंढ लेते हैं। इसके लिए आपको हर परिस्थिति में सकारात्मक सोचना होगा। तकि आप सुख और दुख दोनों परिस्थितियों में खुश रह सकें। जैसे- सफलता मिले तो भी खुश और असफलता मिले तो भी खुश। धन का लाभ हो तो भी खुश और नुकसान हो तो भी खुश। कोई प्रशंसा करे तो भी खुश और को अपमान करें तो भी खुश। किसी का प्रेम मिले तो भी खुश और ना मिले तो भी खुश। कोई साथ रहे तो भी खुश और कोई छोड़ कर चला जाए तो भी खुश। मुझे पता है कि ये इतना आसान नहीं कि एक दो दिनों में ही सारा बदलाव हो जायेगा। आपको लगातार प्रयास करते रहना होगा।
ध्यान-साधना और निरंतर अभ्यास के द्वारा अपने मन के इन विकारों को काबू में करने का अभ्यास करते रहना होगा। फिर धीरे-धीरे आप इस स्तर तक पहुंच जायेंगे कि दुनिया की कोई भी दुख आपको दुखी नहीं कर पायेगी।
दोस्तों इस आर्टिकल में हमने मनुष्य के दुखों से संबंधित सभी उलझनों को सुलझाने की कोशिश की है। फिर भी आपके मन में कोई प्रश्न या सुझाव हो तो हमें जरूर बताएं। और हां यदि आपको हमारे विचार अच्छे लगे हो तो इसे अपने दोस्तों और परिजनों के साथ शेयर जरूर करें।
धन्यवाद