भारत के 7 सबसे बड़े अंधविश्वास देश के विकास और उन्नति लिए बने अभिशाप

Superstition of india

superstition in India

आज हम सब इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं। आज हमारे देश और समाज में जो कुछ भी विकास हो रहा है। वह विज्ञान और तकनीक की वजह से ही हो रहा है। परंतु आज भी हमारे समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग पुराने रीति रिवाजों, झूठी मान्यताओं और अंधविश्वासों से घिरा हुआ है। समाज के करोड़ों लोग आज भी अंधविश्वास और पाखंड के जाल में फंसे हुए हैं। आज हम बात करेंगे उन धार्मिक अंधविश्वासों और मान्यताओं के बारे में जो दीमक बन कर हमारे देश और समाज को अंदर ही अंदर खाएं जा रही है। जिसकी वजह से हम आज़ाद होते हुए भी गुलामी की जिंदगी जी रहे हैं।

अंधविश्वास का अर्थ क्या होता है?

हमारे आसपास प्रतिदिन जितनी भी क्रियाएं या घटनाएं होती है उनके पीछे कोई ना कोई वैज्ञानिक कारण छिपा होता है। जिन्हें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से रिसर्च करके पूरी तरह स्पष्ट किया जा सकता है। परंतु अंधविश्वास केवल पुर्वाग्रहों और कपोल कल्पनाओं पर ही टिका होता है। अंधविश्वास उस विश्वास को कहते हैं। जिसका कोई स्पष्ट और उचित कारण नहीं होता है। ना ही इनके पीछे कोई ठोस प्रमाण होता है। इसलिए आप देखेंगे कि अधिकांशतः अंधविश्वास प्राचीन मान्यताओं और काल्पनिक अवधारणाओं पर आधारित होते हैं। इनके पीछे कोई भी प्राकृतिक नियम या सिद्धांत नहीं होता। जब हम अपने गांव के कुछ अंधविश्वासी लोगों से इन अंधविश्वासों के बारे में तर्क वितर्क करने की कोशिश करते हैं तो वे बस एक ही बात कहते हैं। हमारे पुरखों की परंपरा है। सब मानते आ रहे हैं इसलिए हमें भी मानना चाहिए। एक बात बताओ यार, आपके पुरखे बैलगाड़ी से यात्रा करते थे। आप प्लेन और कार में क्यों घुमते हो। कमाल है यार जमाना बदल गया लेकिन सोच नहीं बदली। आज के इस वैज्ञानिक युग में भी हमारे समाज में ऐसे अनेकों प्रकार के अन्धविश्वास प्रचलित है। जिनके पीछे कोई लाजिक या साइंस दिखाई नहीं देता।

भारतीय समाज में अंधविश्वास

हमारे भारतीय समाज में ऐसी मान्यता है कि बिल्ली ने काट दिया तो अपशकुन हो गया। रुक जाओ, नहीं तो अमंगल हो जाएगा। क्यों हो जायेगा, इसके पीछे कौन सा सिद्धांत है कुछ पता नहीं। रोड के दोनों तरफ के लोग रुककर खड़े हो जाते हैं और तब तक खड़े रहते हैं, जब तक कि कोई दूसरा व्यक्ति उस रास्ते को पार न कर जाए। अजीब लोग हैं यार। अरे बिल्ली बेचारी जा रही है अपने रास्ते और आप जा रहे हैं अपने रास्ते। अब अगर कभी संयोग से वह आपसे पहले निकल गई तो उससे आपका क्या बिगड़ जायेगा। इसी तरह एक और अंधविश्वास है कि श्राद्ध के दिनों में नया काम नहीं करना चाहिए, नए कपड़े नहीं पहनना चाहिए। क्यों, क्योंकि पूरखों की परंपरा है। अबकी बार दिवाली और छठ पूजा में सारे गांव के बच्चे नये कपड़े पहन कर खुशी से नाच रहे थे और हमारे खानदान के बच्चे नये कपड़े पहनने के लिए रो रहे थे। बेचारे बच्चे कई महीनों से दिवाली और छठ पूजा का इंतजार कर रहे थे लेकिन इस परंपरा की वजह से उनकी त्यौहार की खुशियां पर ग्रहण लग गया। अब आप जरा विचार किजिए कि केवल एक इंसान के मरने से पूरा का पूरा खानदान अछूत कैसे हो जाता है। इसके पीछे क्या सिद्धांत है। और अमरीका और रूस जैसे देशों में ये सिद्धांत लागू क्यों नहीं होता। क्या हमारा देश पूरी दुनिया से अलग है। क्या उनके और हमारे भगवान अलग अलग है। जरा इन सवालों के जबाव ढुंढिए।

Bharat me andhvishwash

black cat

मैंने देखा है कि बहुत सारे लोग मंगलवार और शनिवार के दिन बाल नहीं कटवाते हैं और न ही दाढ़ी बनवाते हैं। क्यों, क्योंकि मंगलवार को हनुमान जी का दिन है और शनिवार शनिदेव का दिन है। इसलिए ये लोग नाराज़ हो जायेंगे। जरा विचार किजिए कि आज से हजारों साल पहले जब दिन,पंचांग या कैलेंडर की खोज नहीं हुई थी। तब भला किसे पता था कि सचमुच कौन-सा दिन या कौन-सा वार है? ये सब नाम तो बाद में रखे गए। फिर उससे पहले लोग किस वार को बाल या दाढ़ी कटवाते थे। सोचिए जरा। आर्यभट ने छठी शताब्दी में ही गणना करके बता दिया था कि चंद्र ग्रहण पृथ्वी की छाया और सूर्य ग्रहण चंद्रमा की छाया के कारण लगता है। ये बात को पांचवीं क्लास के बच्चे भी जानते हैं। लेकिन लोग झूठे ज्योतिषीयों और पाखंडी पंडितों के चक्कर में पड़ कर ग्रहण के दौरान भोजन नहीं करते। पता नहीं क्या अनिष्ट हो जाएं। अब इन अंधविश्वासी लोगों कौन समझाए कि ये सब प्राकृतिक परिवर्तन है। ना तो सूरज को ग्रहण लगता है ना चन्द्रमा को।

भारत में अंधविश्वास
Solar Eclipse

देखिए हमें इस बात को समझना होगा कि ये सभी भविष्यवाणिया केवल अंधेरे में चलाए गए तीर हैं। जो कभी कभार संयोगवश सही निशाने पर लग जाते हैं। जरा विचार किजिए कि पंडितों द्वारा जन्मपत्री मिलाने से अगर विवाह सफल सिद्ध होता है तो इतने सारे लोग परिवारिक विवाद और कलह का शिकार क्यों हो रहे हैं। हमने सुना है कि प्राचीन काल में लोग देवी को प्रसन्न करने और मनोकामना पूर्ति हेतु पशुओं की बालि देते थे लेकिन अब तो तांत्रिक के कहने पर लोग इंसानों की बलि भी देने लगे हैं। हमारे देश में तो अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं। हमारे समाज में भुत प्रेत को लेकर भी काफी सारे अंधविश्वास प्रचलित है। आज के आधुनिक युग में भी लोग भूत प्रेतों के अस्तित्व पर विश्वास करते हैं। जबकि विज्ञान इस दावे को कई बार नकार चुका है। मेडिकल साइंस के अनुसार कुछ मानसिक बिमारियों की वजह से ऐसा अनुभव होता है। वैसे भी भूतों को लेकर कोई तार्किक और सैद्धांतिक वजह नहीं है। अगर भूत होते हैं तो वैज्ञानिकों को इनकी जांच करने के लिए पुख्ता सबूत की जरूरत है, जो अभी तक नहीं मिले है। हम भी बचपन से ही भूत प्रेतों की तलाश में रात रात भर श्मशानों और जंगलों में भटक रहे हैं परन्तु अभी तक किसी भुत प्रेत के दर्शन नहीं हुए। और जब तक यह हमारे खुद के अनुभव में नहीं आ जाता। हम इसे भी अंधविश्वास ही मानेंगे। वैसे, अगर आपमें से किसी ने स्पष्ट रूप से भूतों को देखा हो तो प्लीज़ यार कमेंट करके जरूर बताना।

अन्धविश्वास
ghost

इसी प्रकार हमारे यहां छींक आने और अंगों के फड़कने को लेकर भी अंधविश्वास है। जबकि ये हमारे शरीर की सामान्य प्रक्रिया है। जैसे, जब कोई वायरस या जीवाणु मुंह और नाकों के रास्ते हमारे शरीर में प्रवेश करता है तो हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली तुरंत रिएक्ट करतीं हैं। ताकि वे झटके से बाहर निकल जाएं। इसलिए हमें छींक आती है। इसमें शुभ या अशुभ जैसी कोई बात ही नहीं है। परंतु हमारा देश तो इतना धार्मिक है कि हर यहां चीज को धर्म से जोड़ दिया जाता है। हमारे यहां बच्चा पैदा होते ही लोग सबसे पहले भगवान के दर्शन करवाते है। हमारे देश में अनगिनत संस्थाएं है। जो कुछ दान दक्षिणा लेकर भगवान के दर्शन करवाती है। हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, बौद्ध, जैन अनगिनत संस्थाएं हैं। जिन्होंने भगवान से मिलाने का ठेका ले रखा है।‌ वे बताते हैं कि गंगा नहा लो तो सारे पाप धुल जायेंगे। तीर्थ यात्रा कर‌ लो तो मोक्ष मिल जायेगा। पता नहीं यार लोग कैसे इन बेतुकी बातों पर विश्वास कर लेते हैं। इसके लिए कुछ हद तक सोशल मीडिया और टी.वी. चैनल्स भी जिम्मेदार है। जो भूत-प्रेतों की फिल्में और ज्योतिषियों की अवैज्ञानिक व्याख्याएं प्रसारित करके अंधविश्वास फैलाने में भरपूर योगदान दे रहे हैं। अब आप खुद सोचिए कि इस तरह हमारा देश का विकास की तरफ बढ़ रहा है या विनाश की तरफ बढ़ रहा है।

भारत में अंधविश्वास क्यों है?

देखिए हम जानते हैं कि इन अंधविश्वासों को मानने के पीछे आपकी कोई ग़लती है। क्योंकि जब आपका जन्म हुआ था तो उस वक्त आपके पास बुद्धि विवेक और तर्क शक्ति नहीं थी। आपको पता ही नहीं था कि क्या सच हैं और क्या झूठ है। आपके मां बाप और समाज के लोगों ने जैसा आपको सिखाया आपने सीख लिया। वैसे, आपके पास और कोई चारा भी नहीं है। क्योंकि एक तो आपके पास शक्ति नहीं थी और दूसरा की आप दुसरो पर आश्रित थे। इसलिए आप चाह कर भी विरोध नहीं कर सकते हैं। लेकिन आज आपके पास बुद्धि विवेक के साथ शक्ति भी है। आप एक आजाद देश में रहते हैं और आपको खुद से सोच समझ कर कोई भी निर्णय लेने का पूरा अधिकार है।

Blind faith

अंधविश्वास को कैसे दूर करें

यहां हमारे कहने का ये मतलब नहीं है कि आप अपने मां बाप की बात मत मानना और ना ही हम ये कहना चाहते हैं कि आप हमारी बातों पर भी आंख बंद करके विश्वास कर लो। हम तो बस इतना ही कहना चाहते हैं कि आपको किसी के द्वारा कहीं या सुनी हुई बातों को भेड़-बकरियों की तरह चुपचाप नहीं मान लेना चाहिए। आपको सोचना चाहिए, तर्क वितर्क करना चाहिए और फिर कोई निर्णय लेना चाहिए।देखिए हम जानते हैं कि सदियों से चले आ रहे इन अंधविश्वासों को तोड़ना इतना आसान नहीं है। हमें पुरे समाज और यहां तक कि अपने परिवार में भी विरोध का सामना करना पड़ेगा। मुझे भी हर जगह विरोध और नाराजगी का सामना करना पड़ता है। लेकिन किसी ना किसी को तो आगे आना ही पड़ेगा। वरना कब तक हम इन अंधविश्वासों के बोझ को ढोते रहेंगे। इन अंधविश्वासों से बाहर निकलने का उपाय यहीं है कि आप इनके ऊपर बार-बार प्रयोग करके देखें कि क्या निष्कर्ष निकलता है और अगर कोई आपसे कहता है कि इन अंधविश्वासों में कोई सच्चाई हैं तो उससे कहिए कि वह इन अंधविश्वासों की सच्चाई को साबित करके दिखाए। अन्यथा कभी इन अंधविश्वासों पर विश्वास ना करें।

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