आखिर कहां रहते हैं भगवान और हमें दिखाई क्यों नहीं देते ?

भगवान कहां रहते हैं | bhagwan kaha par rahte Hai

Bhagwan kahan hai
Where are god
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अक्सर
हम सबके मन में ये ख्याल आता है कि जिस शक्ति ने इस ब्रह्मांड को रचा है। जिसने हम सभी मनुष्यों सहित सारे पेड़-पौधों और जीव जंतुओं को बनाया है। जिसे हम भगवान ईश्वर,अल्लाह  वाहेगुरु और गॉड के नाम से जानते हैं‌। वे आखिर रहते कहां हैं, उनका निवास स्थान कहां है। संसार के सभी धर्मों में इस प्रश्न की अलग-अलग तरीके से व्याख्या की गई है। हिंदू धर्म के अनुसार भगवान बैकुंठ,और स्वर्ग आदि लोकों में रहते हैं। इस्लाम धर्म के अनुसार भगवान यानी अल्लाह जन्नत, मक्का-मदीना, और मस्जिद में रहते हैं। इसी तरह अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग स्थानों का जिक्र है। कुछ लोग उन्हें ढूंढने मंदिर जाते हैं, तो कुछ उन्हें ढूंढनेेेेे मस्जिद जाते हैं। कुछ लोग चर्च जाते हैं तो कुछ लोग गिरजाघर  जाते हैं। कुछ लोग तो उन्हें ढूंढने हजारों किलोमीटर की यात्रा करके जंगलों पर्वतों और तीर्थ स्थानों में चले जाते हैं। परंतु उनसे मुलाकात नहीं होती।

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ईश्वर हमें दिखाई क्यों नहीं देते ?

वैसे इस प्रश्न का तो एक ही उत्तर है कि भगवान इस सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है परंतु कई लोग ये तर्क देने लगते हैं कि भगवान इस सृष्टि के कण-कण में है तो वे दिखाई क्यों नहीं देते। जो लोग ऐसा सोचते हैं उनके लिए मैं यही कहना चाहूंगा कि भगवान तो सब जगह हैं और दिखाई भी देते हैं। मगर जिन लोगों की आंखों पर अहंकार और अज्ञान की पट्टी बंधी हुई है भगवान उनके घर भी आ जाए तो वे उन्हें पहचान नहीं पाएंगे। क्योंकि भगवान को पहचानने के लिए निर्मल मन और ज्ञान की आंखों की जरूरत होती है। भगवद्गीता  में भगवान श्री कृष्ण ने कहा भी है कि मेरे स्वरूप को साधारण आंखों से नहीं देखा जा सकता। उसे देखने के लिए दिव्य दृष्टि की जरूरत होती है। यहां दिव्य दृष्टी का अभिप्राय ज्ञान की आंखों से है। क्योंकि अज्ञान के प्रभाव से मनुष्य का मन दूषित हो जाता है और जिस तरह गंदे पानी में आपकी अपनी छवि दिखाई नहीं देती ठीक वैसे ही दूषित मन से भगवान को नहीं देखा जा सकता। अगर आपका दिल और पवित्र और निर्मल है तो आपको मस्जिद मंदिर जाने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि भगवान तो आपके दिल में रहते हैं। मंदिर और मस्जिद तो  इंसानों ने बनाया है परंतु आपका दिल तो खुद भगवान ने बनाया है खुद अपने रहने के लिए। हम सब पृथ्वी के जितने भी जीव जंतु हैं सबके अंदर भगवान है। हम सब भगवान के ही तो अंश हैं। जैसे फूल में खुशबू है मगर हम खुशबू को नहीं देख सकते, जिस तरह पृथ्वी पर वायु है मगर हम को नहीं देख सकते। उसे केवल महसूस कर सकते हैं ठीक उसी प्रकार हमारे भीतर भी भगवान हैं, जिसे हम चाहे तो महसूस कर सकते हैं, उसका एहसास कर सकते हैं।

भगवान का रूप क्या है ?

 एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि भगवान का ना तो कोई रूप होता है और ना ही कोई आकार होता है। और भला भगवान को आकार की जरूरत भी क्या है हम सब जीव जंतु हैं भगवान के ही तो रूप है। अब आप कहेंगे कि भगवान राम, भगवान कृष्ण भगवान  बुद्ध, भगवान महावीर ईसा मसीह आदि सब भगवान ही तो है। तो आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि ये भगवान नहीं थे बल्कि इनके सुकर्मों की वजह से हम इन्हें भगवान मानते हैं। इनके कर्म भगवान के आदर्शों के अनुरूप थे। इसलिए हमारा  इनमें  प्रेम और विश्वास है जिसकी वजह से हमलोग इन्हें भगवान मानते हैं। जिसका जिस रूप में प्रेम और विश्वास है वे उसी को भगवान मानते हैं। जैसे प्रेमिका को अपने प्रेमी में सच्चा प्रेम और पूर्ण विश्वास हो तो उसे ही अपना भगवान मानती है। जैसे एक पतिव्रता पत्नी को अपने पति में सच्चा प्रेम और आस्था हो तो वह अपने पति को परमेश्वर मानती है। जैसे एक पुत्र श्रद्धा पूर्वक अपने माता-पिता को भगवान मानता है। जिस तरह भगवान बुद्ध, भगवान महावीर तुलसीदास, कालिदास, कबीर, गुरु नानक देव, और ईसा मसीह आदि भगवान के आदर्शों का पालन करके भगवान का रूप बन गए हैं। उसी तरह अगर हम भी भगवान के आदर्शों के अनुरूप अच्छे कर्म करें तो हम भी भगवान का रूप बन सकते हैं। अगर हम ज्ञान और अपने निर्मल मन की आंखों से देखेंगे तो हमें अपने मां-बाप में भगवान नजर आएंगे। अपने गुरुजनों में भगवान नजर आएंगे। इस पृथ्वी के हर जीव-जंतु में भगवान नजर आएंगे। क्योंकि भगवान हममें भी हैं और आपमें भी हैं। भगवान ब्रह्मांड के कण-कण में है ।
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