Motivational stories in hindi | very short Motivational stories
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Motivational stories on positivity |
दोस्तों हमारा संपूर्ण जीवन हमारी सोच का ही आईना होता है। हम जैसा सोचते हैं हमारा जीवन वैसा ही बन जाता है। यदि हमारी सोच नकारात्मक है तो हमें हर जगह, हर व्यक्ति में, हर परिस्थिति में बुराई ही नजर आएगी और यदि हमारी सोच सकारात्मक है तो हमें बुराईयों में भी अच्छाई नजर आएगी। यदि हम नकारात्मक दृष्टिकोण से देखेंगे तो हमें हर अवसर में मुश्किलें दिखाई देंगी और यदि हम सकारात्मक दृष्टिकोण से देखेंगे तो हमें मुश्किलों में भी एक अवसर दिखाई देगा। दोनों में फर्क सिर्फ सोच का है और इसी सोच के बीच के फर्क को स्पष्ट रूप से समझाने के लिए आज हम आपके लिए 5 best motivational stories लेकर आए हैं। जिससे कि आप समझ पाए कि सकारात्मक सोच और नकारात्मक सोच में क्या फर्क है। ये stories very short है और mining full भी इसलिए आप इनसे बोर हुए बिना बहुत कुछ सीख सकते हैं।
5 best motivational stories in hindi | सकारात्मक सोच पर प्रेरणादायक कहानीयां
Motivational story in hindi #1 लाभ और हानि
Motivational story in hindi #2 सकारात्मक सोच की शक्ति
एक बार एक छोटे से राज्य पर एक बहुत बड़े राज्य ने चढ़ाई कर दी। राज्य छोटा था इसलिए सेना भी छोटी थी। जो उस राज्य की विशाल सेना के आगे तिनके के सामान थी। गुप्तचरों ने जब सेनापति को इसकी सूचना दी तो सेनापति घबरा गया। वह फौरन राजा से जाकर मिला और सारी आपबीती सुनाई। राजा ने जब सुना कि उसके राज्य पर शत्रुओं ने आक्रमण कर दिया है तो वह क्रोधित हो उठा। राजा ने सेनापति से कहा- जाइए जाकर युद्ध की तैयारियां शुरू किजिए। सेनापति बोला- परंतु महाराज, हमारी सेना में केवल दस हज़ार सैनिक है और उनके पास एक लाख सैनिक है। ऐसे में हम उनका मुकाबला कैसे कर पाएंगे। राजा उसका उत्साह बढ़ाते हुए बोला- कुछ भी हो लेकिन हम पराजय स्वीकार नहीं कर सकते। परंतु महाराज मैं जानबूझकर मौत के मुंह में नहीं जा सकता। सेनापति ने यह कहते हुए अपनी तलवार राजा के कदमों में डाल दी। सेनापति के इस कदम से राजा बड़ी मुश्किल में पड़ गया। अब वह भागा-भागा राजगुरु के शरण में पहुंचा। उसने राजगुरु से सारी बात बताई और इस मुसीबत से निकलने का उपाय पूछा। राजगुरु ने कहा- राजन् सबसे पहले आप अभी के अभी उस सेनापति को कारागार में डाल दो अन्यथा वह अन्य सैनिकों को भी हतोत्साहित कर देगा और जल्द से जल्द युद्ध की तैयारियां पूरी करों। हम स्वयं सेनापति की हैसियत से सेना का नेतृत्व करेंगे। परंतु गुरुवर अपने तो आज तक किसी शस्त्र को हाथ भी नहीं लगाया है फिर आप कैसे युद्ध कर सकेंगे। राजगुरु ने कहा- आप चिंता ना करें राजन् मैं देख लूंगा।
राजा के पास और कोई चारा भी नहीं था इसलिए वह राजगुरू की बात मान गया। आधी रात को राजगुरु अपनी सेना को लेकर सीमा की ओर रवाना हुए। चलते-चलते वे
राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों में पहुंचे तभी उन्हें एक मंदिर दिखाई पड़ता है। राजगुरु ने सैनिकों से कहा- रूको जरा अपने देवता से पूछ लूं कि हमारी जीत होगी या हार। सैनिकों ने अचरज से पूछा कि ये कैसे हो सकता है,भला मंदिर के देवता ये कैसे बता सकते हैं। राजगुरु ने कहा- इस मंदिर के देवता बड़े चमत्कारी है और इनकी कही हुई बात कभी झुठ नहीं हो सकती।
फिर राजगुरु ने जेब से चांदी का एक सिक्का निकाला और मंदिर के देवता को प्रणाम करके बोले-चित आया तो हमारी जीत और पट आया तो हार। यह कहकर राजगुरु ने सिक्का उछाल दिया। सैनिकों ने देखा तो सिक्का चित गिरा था। अब राजगुरु सैनिकों का उत्साहित करते हुए बोले- साथियों अब हमारे हारने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता इसलिए पुरे जोश और जुनून के साथ लड़ना। फिर योजना अनुसार वे रात के तीसरे पहर में आराम करते शत्रुओं पर टुट पड़े। बड़ा भीष्म युद्ध हुआ सैनिकों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। धीरे-धीरे वे शत्रुओं पर भारी पड़ने लगे। उन्होंने ऐसी मार-काट मचाई की शत्रु सैनिकों के पांव उखड़ गए और वे भागने लगे। अंततः जीत उनकी ही हुई। वापस लौटते वक्त सैनिक फिर उसी मंदिर के पास रूके और मंदिर के देवता को धन्यवाद देते हुए कहने लगे,आपकी कृपा से ही हमारी जीत संभव हो सकी है। राजगुरु मुस्कुराएं और बोले- जीत इनकी कृपा से नहीं बल्कि तुम्हारे सकारात्मक सोच का परिणाम है। लेकिन सैनिकों को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। अतः राजगुरु ने वो सिक्का निकाला। सैनिकों ने देखा तो उनकी आंखें फटी रह गई। सिक्के में दोनों तरफ केवल चित ही था।
तो दोस्तों इस कहानी से आपको क्या सीख मिली नीचे कमेंट करके जरूर बताएं।
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हेलो भाईसाहब टिकट ले लिजिए टिकट..
बस कंडक्टर ने उस आदमी से कहा।
उस आदमी ने पीछे मुड़कर देखा और रौबदार आवाज में बोला, मैं टिकट नहीं लेता। दुबले-पतले कंडक्टर ने उस 6 फुट लम्बे और बाॅडी बिल्डर आदमी को देखा तो उसकी दुबारा बोलने की हिम्मत ही नहीं हुई। वह चुपचाप आगे बढ़ गया। अगले दिन वह आदमी फिर मिल गया। कंडक्टर ने फिर उससे टिकट के लिए पुछा, मैं कभी टिकट नहीं लेता। फिर वहीं उत्तर मिला। अगले दिन वह बस में फिर चढ़ा और फिर उसने टिकट नहीं लिया। अगले कई दिनों तक यहीं सिलसिला चलता रहा। उसके टिकट ना लेने से कंडक्टर के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती लेकिन उसके हट्टे कट्टे शरीर को देखकर उसका आत्मविश्वास कमजोर पड़ जाता। एक दिन कंडक्टर के भीतर का मर्द जाग उठा, उसने सोचा कि आखिर कब तक इसके डर से नुकसान उठाते रहेंगे। अब तो इज्जत का सवाल है। आखिरकार कंडक्टर ने एक महीने की छुट्टी ले कर जिम ज्वाइन कर ली। जिम में उसने खुब मेहनत की खुब पसीने बहाएं। एक महीने बाद फिर वह अपने काम पर वापस आया तो उसकी खुब बाॅडी बन चुकी थी और उसका आत्मविश्वास भी बढ गया था। हां भाई टिकट के पैसे निकालो, कंडक्टर ने सोच लिया था कि आज इससे टिकट ले कर रहूंगा। मैं टिकट नहीं लेता, फिर वहीं जवाब मिला। अबे ऐसे कैसे नहीं लेगा। कंडक्टर ने रोबदार आवाज में बोला। क्योंकि मैंने एक साल के लिए पास बनवा रखा है। यह कहते हुए उसने पास निकाल कर बढ़ा दिया। अब तो कंडक्टर की ऐसी स्थिति हो गई जैसे खोदा पहाड़ और निकली चुहिया। दोस्तों ऐसा अक्सर हमारे साथ होता है कि हम बिना जाने-समझे सामने वाले के प्रति अपनी राय बना लेते हैं। ये अच्छा है वो बुरा है,ये गलत है,वो सही है। इस प्रकार से हम मन ही मन कल्पनाओं के पहाड़ खड़े करते रहते हैं। मगर जब परिणाम सामने निकलता है तो हमें या तो शर्मिन्दा होना पड़ता है या पछताना पड़ता है। इसलिए हमें ऐसी नकारात्मक विचारों से बचना चाहिए।
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एक बार एक गरीब नौजवान एक कंपनी में नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गया। कंपनी के सीईओ ने सभी कागजात चेक करने के बाद कहा- आपके पास कितने साल काम करने का अनुभव है। सर अनुभव तो मेरे पास नहीं है क्योंकि मैंने अभी-अभी पढाई खत्म की है लेकिन आप एक बार मौका देकर देखिए, मैं आपको निराश नहीं करूंगा। माफ कीजिए लेकिन हमें केवल अनुभवी लोगों की जरूरत है। यह कहकर सीईओ ने दुसरे उम्मीदवार को बुला लिया। वह युवक निराश होकर वहां से चला गया। इस घटना कुछ साल बीत गए। एक बार वह कंपनी घाटे में जाने जा रही थी। धीरे-धीरे घाटा इतना बढ़ गया कि कंपनी बेचने की नौबत आ गई। काफी खोजबीन के बाद एक बिजनेसमैन उस कंपनी को खरीदने के लिए तैयार हुआ। सौदा पक्का होने के बाद उस कंपनी के सीईओ ने बिजनेसमैन को काॅल किया और कहा, हमारी डुबती कंपनी को खरीद कर आपने हमारे ऊपर बहुत बड़ा एहसान किया है। हम आपका ये एहसान जीवन भर नहीं भूलेंगे। बिजनेसमैन ने कहा, हमने आपके ऊपर कोई एहसान नहीं किया बल्कि आपके एक एहसान का कर्ज अदा किया है। सीईओ ने अचरज से पूछा कि कब और कैसा एहसास। बिजनेसमैन ने याद दिलाया,आपको याद है कुछ साल पहले मैं आपके कंपनी में नौकरी मांगने के लिए आया था लेकिन अपने अनुभव ना होने की वजह से मुझे नौकरी नहीं दिया। इसलिए मैं आपका एहसानमंद हूं क्योंकि अगर आपने उस दिन मुझे नौकरी दे दी होती तो मैं आज भी आपके कंपनी में नौकरी कर रहा होता। दोस्तों जीवन में कई बार ऐसी नकारात्मक परिस्थितियां आती है जब हम यह सोचकर निराश हो जाते हैं कि हमारे साथ बहुत बुरा हुआ। लेकिन अगर सकारात्मक दृष्टिकोण से देखे तो हमारे जीवन में जो कुछ भी होता है अच्छा ही होता है। हालांकि हमें इस बात का एहसास आगे चलकर होता है।
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Motivational story in Hindi #5 अल्बर्ट आइंस्टीन की कहानी
एक छात्र स्कूल से घर लौट कर अपने मां को एक पत्र देता है। मां ने पूछा- यह क्या है? स्कूल के प्रधानाचार्य ने इसे आपको देने के लिए कहा था, बेटे ने कहा। मां ने वह पत्र पढ़ना शुरू किया और पढ़ते-पढ़ते उनकी आंखों में आंसु बहने लगते हैं। मां की आंखों में आंखु देखकर बेटे ने पूछा- क्या हुआ मां, इसमें क्या लिखा है? मां ने कहा- बेटा आपके स्कुल के प्रधानाचार्य ने लिखा है कि आपका बेटा पढ़ने में बहुत ज्यादा तेज है इसलिए हमारे स्कुल के शिक्षक इसे पढ़ाने में सक्षम नहीं हैं इसलिए अपने बेटे का एडमिशन किसी बड़े स्कूल में करा दें। बेटे ने जब ये सुना तो उसका सर गर्व से ऊंचा हो गया। उसने मन ही मन तय कर लिया कि अब वह और मन लगाकर पढ़ेगा। मां ने उसका एडमिशन दुसरे स्कुल में करा दिया। बेटा भी इस आत्मविश्वास के साथ खुब मन लगाकर पढ़ने लगा कि वह पढ़ने में बहुत तेज है। धीरे-धीरे दिन बीतते गए और अब वह छात्र पढ़-लिखकर एक महान वैज्ञानिक बन चुका। नाम था अल्बर्ट आइंस्टीन। अब उनके पास किसी चीज की कमी नहीं थी धन-दौलत पद, प्रतिष्ठा,सब कुछ था उसके पास लेकिन उनकी मां नहीं थी। कुछ सालों पहले ही वह स्वर्ग सिधार चुकी थी। एक दिन उन्हें अपनी मां की बहुत याद आ रही थी इसलिए वे अलमारी के दराजों में अपनी मां से जुड़ी यादें तलाश रहे थे तभी उन्हें एक पत्र मिला। पत्र देखते ही उन्होंने फौरन पहचान लिया। यह वहीं बचपन के स्कूल वाला पत्र था जिसे उन्होंने मां को दिया था। अल्बर्ट आइंस्टीन उत्सुकतावश पत्र पढ़ना शुरू किया।
मैम हमें ये बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि आपका बेटा पढ़ाई-लिखाई में बहुत ही मंदबुद्धि है। इसे कुछ भी पढ़ाओं लेकिन इसे कुछ याद ही नहीं होता इसलिए हम इसे अपने स्कूल से निकाल रहे हैं। आप इसका एडमिशन किसी दूसरे स्कूल में करवा दीजिये। अन्यथा इसे खुद ही घर में पढ़ाइए। पत्र को पढ़ते पढ़ते अल्बर्ट आइंस्टीन के आंखों से झर-झर आंसू गिरने लगे उन्हें समझ आ गया कि आज वे जो भी हैं यह उनके मां की सकारात्मक सोच का ही नतीजा है। दोस्तों आजकल अक्सर सुनने को मिलता है कि मां-बाप छोटी-छोटी बातों पर बच्चों को डांटते रहते हैं। तू किसी लायक नहीं है, तुझसे कुछ नहीं हो सकता, पढ़ाई-लिखाई तेरे बस की बात नहीं है। परीक्षा में कम नंबर आ गए तब तो शामत ही समझो। मां-बाप ताने मार-मार कर लोग बच्चों का आत्मविश्वास तोड़ देते हैं। इस तरह की नकारात्मक प्रतिक्रियाओं के प्रभाव से बच्चों के मन-मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है और उन्हें भी लगने लगता है कि जरुर उनके अंदर कोई कमी है। ऐसे बच्चे जीवन में कभी सफल नहीं हो पाते क्योंकि बचपन से ही नकारात्मक बातें सुन-सुनकर उनका आत्मविश्वास कमजोर हो चुका होता है। इसलिए हर मां बाप को अल्बर्ट आइंस्टीन की मां से सीख लेनी चाहिए।
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दोस्तों इसी प्रकार हमारे जीवन में भी कई बार ऐसी परिस्थिति आ जाती है जिससे हम दुखी हो जाते हैं, लेकिन अगर हम सकारात्मक दृष्टिकोण से देखेंगे तो हमें हर चीज का सकारात्मक पहलू भी दिख जाएगा, जो हमारे जीवन के दुखदाई पलों को भी सुखदाई बना देगा। इसलिए हमें जीवन में हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए क्योंकि सकारात्मक सोच ही हमें दुख के भंवर से निकाल सकता है, हमारे जीवन में खुशियां भर सकता है। जबकि नकारात्मक सोच केवल हमें दुख ही नहीं देती बल्कि हमारे जीवन को बर्बाद भी कर देती है। सकारात्मक सोच हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम की तरह होती है जो हमें अंदर से हिम्मत देती है। हमें टुटने नहीं देती है। परंतु एक सच्चाई यह भी है कि किसी दुखद घटना के वक्त सकारात्मक सोच पाना काफी मुश्किल होता है लेकिन अगर हम अपनी सोच को स्वभाविक रूप से सकारात्मक बना लें तो हम दुनिया की किसी भी मुसीबत को हरा कर दुख से बाहर निकाल सकते हैं।
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Bhut he badiya